हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी -माँ सरस्वती वंदना (Hey Hans Vahini Gyan Dayini)
हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी (माँ सरस्वती वंदना)
हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥
जग
सिरमौर बनाएँ भारत,
वह बल विक्रम दे। वह बल विक्रम दे॥१॥
हे हंसवाहिनी….
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥
साहस शील हृदय में भर दे,
जीवन त्याग-तपोमर कर दे,
संयम सत्य स्नेह का
वर दे,
स्वाभिमान भर दे। स्वाभिमान भर दे॥२॥
हे हंसवाहिनी….
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥
लव-कुश, ध्रुव, प्रहलाद बनें हम
मानवता का त्रास हरें हम,
सीता,
सावित्री, दुर्गा मां,
फिर घर-घर भर दे। फिर घर-घर भर दे॥३॥
हे हंसवाहिनी….
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥
हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी अम्ब विमल मति दे |
हे, हंस पर विराजमान, ज्ञान देने वाली माँ आपसे प्रार्थना है कि हमें विशुद्ध, निर्मल बुद्धि प्रदान करो । हे माँ, हमें ऐसा बल, शौर्य प्रदान करो जिसे प्राप्त कर हम भारतवर्ष को फिर से समस्त विश्व से श्रेष्ठ बना सकें॥1॥
हमारे हृदय में साहस, विनय के श्रेष्ठ गुण भर दो जिससे हम त्याग और तपस्या के मार्ग पर चलते हुए अपना जीवन यापन करें। हे माँ आप हमें सयम में रहने का, सत्यपथ पर चलने का, सबके प्रति स्नेह भाव रखने का वरदान दें ताकि हम स्वाभिमानपूर्वक इस संसार में रहें ॥2॥
हे माँ, आप हमें वह शक्ति प्रदान करो कि हम भी लव-कुश के समान शौर्यवान एवँ विक्रमी, ध्रुव के समान दृढ़ आस्थावान , प्रहलाद के समान प्रभु की अनन्य भक्ति करते हुए सम्पूर्ण मानव जाति के कष्टों का निवारण कर सकें। हे माँ, सीता के समान चरित्रवान, सावित्री के समान पतिव्रता तथा दुर्गा के समान अन्याय-अत्याचार का विनाश करने वाली पवित्र स्त्रियाँ भारत के प्रत्येक घर में जन्म लें, ऐसा वरदान दें। हे माँ, आप हमें निर्मल बुद्धि प्रदान करें।