लघु दुर्गा सप्तशती -मार्कण्डेय कृत (Laghu Durga Saptshati)

माँ दुर्गा के पूजा और व्रत के लिए नवरात्रि सबसे पावन दिन होते हैं, इन दिनों में भक्तजन माता को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न उपाय व मंत्र का जाप करते है, इसी क्रम में श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ भी किया जाता है। जिससे अत्यंत फलदायी परिणाम मिलते हैं।

परंतु आज व्यस्तता के समय में श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ सभी भक्तजन नहीं कर पाते हैं, क्यूंकी इसके पाठ में पर्याप्त समय लगता है, इसमें कुल 13 अध्याय हैं। इसलिए इसकी जगह पर मार्कण्डेय मुनि के द्वारा रचित लघु दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से भी समान फल प्राप्त होता है। क्यूंकी लघु दुर्गा सप्तशती में बीज मंत्र समाहित है। इसलिए समय के अभाव में लघु दुर्गा सप्तशती का पाठ कर सकते हैं।

Laghu Durga Saptshati

मार्कण्डेय कृत लघु सप्तशती दुर्गा स्तोत्रं पाठ

ॐ वीं वीं वीं वेणुहस्ते स्तुतिविधवटुके हां तथा तानमाता
स्वानन्देनन्दरूपे अविहतनिरुते भक्तिदे मुक्तिदे त्वम्।
हंसः सोऽहं विशाले वलयगतिहसे सिद्धिदे वाममार्गे
ह्रीं ह्रीं ह्रीं सिद्धलोके कष कष विपुले वीरभद्रे नमस्ते ॥१॥

ॐ ह्रींकारं चोच्चरन्ती ममहरतु भयं चर्ममुण्डे प्रचन्डे
खां खां खां खड्गपाणे ध्रकध्रकध्रकिते उग्ररूपे स्वरूपे।
हुंहुंहुंकारनादे गगनभुवि तथा व्यापिनी व्योमरूपे
हं हं हंकारनादे सुरगणनमिते राक्षसानां निहंत्री ॥२॥

ऐं लोके कीर्तयन्ति मम हरतु भयं चण्डरुपे नमस्ते
घ्रांघ्रांघ्रां घोररूपे घघघघघटिते घर्घरे घोररावे।
निर्मांसे काकजङ्घे घसितनखनखाधूम्रनेत्रे त्रिनेत्रे
हस्ताब्जे शुलमुण्डे कलकुलकुकुले श्रीमहेशी नमस्ते ॥३॥

क्रीं क्रीं क्रीं ऐं कुमारी कुहकुहमखिले कोकिले
मानुरागे मुद्रासंज्ञत्रिरेखां कुरु कुरु सततं श्रीमहामारी गुह्ये।
तेजोंगे सिद्धिनाथे मनुपवनचले नैव आज्ञा निधाने
ऐंकारे रात्रिमध्ये शयितपशुजने तंत्रकांते नमस्ते ॥४॥

ॐ व्रां व्रीं व्रुं व्रूं कवित्ये दहनपुरगते रुक्मरूपेण चक्रे
त्रिः शक्त्या युक्तवर्णादिककरनमिते दादिवंपूर्णवर्णे।
ह्रींस्थाने कामराजे ज्वल ज्वल ज्वलिते कोशितैस्तास्तुपत्रे
स्वच्छदं कष्टनाशे सुरवरवपुषे गुह्यमुंडे नमस्ते ॥५॥

ॐ घ्रां घ्रीं घ्रूं घोरतुण्डे घघघघघघघे घर्घरान्यांघ्रिघोषे
ह्रीं क्री द्रं द्रौं च चक्र र र र र रमिते सर्वबोधप्रधाने।
द्रीं तीर्थे द्रीं तज्येष्ठ जुगजुगजजुगे म्लेच्छदे कालमुण्डे
सर्वाङ्गे रक्तघोरामथनकरवरे वज्रदण्डे नमस्ते ॥६॥

ॐ क्रां क्रीं क्रूं वामभित्ते गगनगडगड़े गुह्ययोन्याहिमुण्डे
वज्राङ्गे वज्रहस्ते सुरपतिवरदे मत्तमातङ्गरूढे।
सुतेजे शुद्धदेहे ललललललिते छेदिते पाशजाले
कुण्डल्याकाररूपे वृषवृषभहरे ऐन्द्रि मातर्नमस्ते ॥७॥

ॐ हुंहुंहुंकारनादे कषकषवसिनी माँसि वैतालहस्ते
सुंसिद्धर्षैः सुसिद्धिर्ढढढढढढढ़ः सर्वभक्षी प्रचन्डी।
जूं सः सौं शांतिकर्मे मृतमृतनिगडे निःसमे सीसमुद्रे
देवि त्वं साधकानां भवभयहरणे भद्रकाली नमस्ते ॥८॥

ॐ देवि त्वं तुर्यहस्ते करधृतपरिघे त्वं वराहस्वरूपे
त्वं चेंद्री त्वं कुबेरी त्वमसि च जननी त्वं पुराणी महेन्द्री ।
ऐं ह्रीं ह्रीं कारभूते अतलतलतले भूतले स्वर्गमार्गे
पाताले शैलभृङ्गे हरिहरभुवने सिद्धिचंडी नमस्ते ॥९॥

हँसि त्वं शौंडदुःखं शमितभवभये सर्वविघ्नान्तकार्ये
गांगींगूंगैंषडंगे गगनगटितटे सिद्धिदे सिद्धिसाध्ये।
क्रूं क्रूं मुद्रागजांशो गसपवनगते त्र्यक्षरे वै कराले
ॐ हीं हूं गां गणेशी गजमुखजननी त्वं गणेशी नमस्ते ॥१०॥

॥ श्री मार्कण्डेयकृत लघुसप्तशती दुर्गा स्तोत्रं सम्पूर्णं ॥

❀ सर्वप्रथम माँ दुर्गा की प्रतिमा/फोटो के सामने धूपबत्ती करें और गाय के घी का दीपक प्रज्ज्वलित करें। तत्पश्चात 9 बार लघु दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।

❀ यह पाठ करने से सभी कामनाएं सिद्ध हो जाती हैं, और शत्रु बाधा, नवग्रहों की बाधा इत्यादि भी शांत हो जाती है।

Next Post Previous Post