माँ कैला देवी चालीसा: जय जय कैला मात भवानी (Maa Kaila Devi Chalisa)
माँ कैला देवी चालीसा
॥ दोहा ॥
जय जय केला भगवती, कला शक्ति अवतार।
जन रंजन भंजन विपत्ति, माता जग अधिकार॥
॥ चौपाई ॥
जय जय कैला मात भवानी,
आदि शक्ति रूपा कल्याणी॥
रूप तुम्हारो अदभुत अम्बा,
जग पालक तुम हो जगदम्बा॥२॥
तुम्हरी महिमा सब जग जानी,
सुर नर मुनि सबने तुम मानी॥
कलयुग कला शक्ति अवतारी,
त्रिभुवन महिमा विदित तुम्हारी॥४॥
तुमने दानव दैत्य पछारे,
लोहासुर से पापी मारे॥
केदार गिरी तप कीन्ह अपारा,
ता संग खेली चौपड़ सारा॥६॥
भक्त बहोरा अजा चराता,
निश दिन मन में तुमको ध्याता॥
ताके अम्बे कारज सारे,
भक्त शिरोमणि रखियो द्वारे॥८॥
भूत प्रेत की खोर हटाता,
माँ की भक्ति तुरत दिलाता॥
नृप खींची पर दया दिखाई,
सुत फांसी से लीन बचाई॥१०॥
तुम्हारो नृप ने थान बनायो,
नित पूजन का नियम चलायो॥
ज्योति अखंड जली जब माँ की,
चंद्र सेन नृप देखी झाँकी॥१२॥
यदुवंशिन कुल पूज्य भवानी,
समर विजय कर नृप ने जानी॥
चन्द्रवंश विस्तार बढ़ायो,
माँ को सुन्दर भवन बनायो॥१४॥
पूजा कीन्ह गुसाईं तुम्हारी,
जग कीरति आपन विस्तारी॥
तुम ही अम्बे दुर्गे काली,
वैष्णो देवी हैं विकराली॥१६॥
विंध्यवासिनी दैत्य विदरनी,
आदि शक्ति हे अरि दल दलनी॥
नवदुर्गा नित कला कराली,
गिरि त्रिकूट माँ शेरावाली॥१८॥
चामुंडा संग आप विराजी,
द्वारे नित प्रति नौबत बाजी॥
घनतान की ध्वनि होत अपारा,
भक्त करत माँ का जैकारा॥२०॥
घुटअन लांगुर चलत भवन में,
नाचत जोगिनि तेरे आँगन में॥
कलयुग कर कृपाण संभारि,
करता मात धर्म की ख्वारी॥२२॥
आपन प्रभाव आन विस्तारो,
माता तुम्हीं करो निस्तारो॥
खड्ग धारिणी भक्त उबारणी,
माता जन के काज संवारनी॥२४॥
कलियुग तुम्हीं एक अवलम्बा,
क्यों करती हो मात विलम्बा॥
केहरि वाहन सजके आओ,
कलि महिषा से आन छुड़ाओ॥२६॥
धूम्र विलोचन बाहु विशाला,
रक्तबीज भव कीन विहाला॥
जगदम्बा बन मात पधारो,
निज जन को तुम आन उबारो॥२८॥
बनिक भक्त की नाव बचाई,
मूल सिंह की लाज रखाई॥
भक्तन को सुख देत भवानी,
कोढ़ी काय बनी सुहानी॥३०॥
भक्तन को भक्ति की दाता,
मनवांछित फल देती माता॥
माता को मंदिर है अति सुन्दर,
ध्वजा पताका फहरे ऊपर॥३२॥
आगे लांगुर वीर विराजे,
गौरी सुत की झांकी साजे॥
दुर्गेश्वर शिव औघड़ दानी,
रहते तुम्हरे साथ भवानी॥३४॥
सूखा बांस हरा कर डारा,
पत्थर से प्रकटी जलधारा॥
कालीसिल तेहि नाम कहाता,
जो जन प्रेम से आनि नहाता॥३६॥
ध्वजा नारियल पान सुपारी,
माँ के रखते आनि अगारी॥
इच्छा माता पूरी करती,
गोदी खाली माता भरती॥३८॥
नित प्रति चालीसा जो है पढता,
भव सागर में फिर ना पड़ता॥
कृपा मूढ़ पर कर महारानी,
खड़ो द्वार जोड़ूँ दोउ प्राणी॥४०॥
॥ दोहा ॥
जग जननी मातेश्वरी, पुनि पुनि जोड़ूँ हाथ।
चालीसा पूरण करो, मूल मनोरथ साथ॥