माँ नर्मदा चालीसा: नमो नमो रेवा महारानी (Maa Narmada Chalisa)

Maa Narmada Chalisa, माँ नर्मदा चालीसा

माँ नर्मदा (रेवा) चालीसा

॥ दोहा ॥

श्री शंभू को सुमिरि के, विनय करूँ कर ज़ोर।
गणपति चरण मनाय के, विनती करूँ बहोरि॥

॥ चौपाई ॥

नमो नमो रेवा महारानी।
नमो नमो जय शक्ति सुहानी॥

आदिशक्ति जगदंब भवानी।
करहुं कृपा मम सेवक जानी॥२॥

जो कोई सेवा करे माँ तुम्हारी।
वांछित फल देवे त्रिपुरारी॥

तट तेरे बरु सिद्ध सुरारी।
तप करके वे होय सुखारी॥४॥

जो कोई माता तुमको ध्यावे।
चार पदार्थ घर में पावे॥

अमरकंठ से चली भवानी।
देव मुनिन ने स्तुति ठानी॥६॥

घाट घाट बहे निर्मल नीरा।
सुन्दर सुखद बहुत गंभीरा॥

शिव काया से जन्म तुम्हारा।
महिमा तुमरी बहुत अपारा॥८॥

परिक्रमा करते नर नारी।
होत तपस्या तुमरी भारी॥

मगरमच्छ पर तुम असवारा।
शोभा बरने के कपि पारा॥१०॥

बड़े बड़े तपसी सन्यासी।
करते सेवा तुमरी खासी॥

तुमरे तट पर सदा बिहारी।
तिनकी काया रहे माँ सुखारी॥१२॥

निर्मल नीर है ज्योति तुम्हारी।
तिहुँ लोक फैली उजियारी॥

रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत माँ अति सुख पावे॥१४॥

तुम संसार शक्ति लय कीन्हा।
पालन हेतु अन्न धन दीन्हा॥

प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिव शंकर प्यारी॥१६॥

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
ब्रह्मा तुम्हरे तट पर आवे॥

हाथ चक्र त्रिशूल विराजे।
जाको देख काल डर भाजे॥२०॥

सोहे और अस्त्र त्रिशूला।
जात उठत शत्रु हिय शूला॥

अमरकंठ में तुम्हीं विराजत।
तिहुँ लोक में डंका बाजत॥२२॥

भेड़ा घाट में करत विलासा।
दया दीन पे कीजे आशा॥

ब्रह्मन घाट में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित ना जाय बखानी॥२४॥

श्री रेवा जी तुम जग तारण।
निर्मल जल भव दुःख निवारण॥

ग्राह के वाहन सो है भवानी।
तुम्हरी महिमा अमित बखानी॥२६॥

परी भीड़ संतन पर जब जब।
भई सहाय मातु तुम तब तब॥

माड़ो घाट में ज्योत तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजें नर नारी॥२८॥

प्रेम भक्ति से जो जस गावे।
दुःख दरिद्र निकट नहिं आवे॥

ध्यावहिं तुम्हहिं जो मन लाई।
जनम मरण सो छुटि जाई॥३०॥

योगी सुर नर मुनि कहत पुकारी।
योग ना हो बिन शक्ति तुम्हारी॥

शरणागत हो कीर्ति बखानी।
जय जय जय रेवा महारानी॥३२॥

होय प्रसन्न आदि जगदम्बा।
देव शक्ति नहिं करो विलम्बा॥

तुम्हरे भजन जो शिव को पावें।
जन्म जन्म के दुःख बिसरावें॥३४॥

मोको मातु जी कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरे दुःख मेरो॥

आशा तृष्णा निपट सतावे।
रिपु मूरख मोहिं नित डर पावे॥३६॥

शत्रु नाश कीजे महारानी।
सुमिरौं एकचित तुम्हहिं भवानी॥

जो जन तुमको नित ही ध्यावे।
पूजा करे अति सुख पावे॥३८॥

करो कृपा हे मातु दयाला।
रिद्धि सिद्धि दे करहुं निहाला॥

जब लग जिऊँ दया फल पाऊं।
तुमरो जस मैं सदा सुनाऊँ॥४०॥

रेवा चालीसा जो गावे।
सब सुख भोग परमपद पावे॥

मैं मूरख माँ शरण निज जानी।
करहुं कृपा जगदम्ब भवानी॥४२॥

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