माँ तुलसी चालीसा: नमो नमो तुलसी गुणकारी (Namo Namo Tulsi Gunkari, Tulsi Chalisa)

Namo Namo Tulsi Gunkari, Tulsi Chalisa Video

माँ तुलसी चालीसा

॥ दोहा ॥

वृक्ष रूपिणी पावनी, तुलसी है तव नाम।
विश्‍वपूजिता कृष्‍ण जीवनी। वृंन्‍दा तुम्‍हें प्रणाम ॥

॥ चौपाई ॥

नमो नमो तुलसी गुणकारी।
तुम त्रिलोक में शुभ हितकारी॥

वन उपवन में शोभा तुम्‍हारी।
वृक्ष रूप में हो अवतारी॥२॥

देवी देवता अरु नर नारी।
गावत महिता मात तुम्‍हारी॥

जहॉं चरण हो तुम्‍हरे माता।
स्‍थान वही पावन हो जाता॥४॥

गोपी तुम्‍हीं गौ लोक निवासी।
तुलसी नाम कृष्‍ण की दासी॥

अंश रूप थी तुम भगवन की।
प्राण प्रिये जैसी मोहन की॥६॥

मुरलीधर संग तुमको पाया।
क्रोध राधे को तुम पर आया॥

कहा राधा ने श्राप है मेरा।
मनुज योनि में जन्‍म हो तेरा॥८॥

हरि बोले तुलसी तुम जाओ।
भरत खंड जा ध्‍यान लगाओ॥

ब्रह्मा के वरदान फलेंगे।
नारायण पति रूप मिलेंगे॥१०॥

राजा धर्मध्‍वज माधवी रानी।
जन्‍मी बनकर सुता सयानी॥

उपमा कोई काम न आई।
तब से तुम तुलसी कहलाई॥१२॥

बद्रिका आश्रम का पथ लीन्‍हा।
उत्‍तम तप वहॉं जाकर कीन्‍हा॥

फलदाई दिन वो भी आया।
जब ब्रह्मा का दर्शन पाया॥१४॥

कहा ब्रह्मा ने मांगो तुम वर।
तुमने कहा दे दो मुरलीधर॥

ब्रह्मा जी ने राह बताई।
तुमको तब ये कथा सुनाई॥१६॥

ब्रह्मा बोले सुन हे बाला।
शंखचूड़ है दैत्‍य निराला॥

मोहित है तुझ पर वो तब से।
देखा है गौ लोक में जबसे॥१८॥

था ग्‍वाला वो नाम सुदामा।
क्रोधित थी उस पर भी श्‍यामा॥

श्राप मिला पृथ्‍वी पर आया।
शंखचूड़ है वो कहलाया॥२०॥

पहले तू उसको ब्‍याहेगी।
नारायण को फिर पायेगी॥

नारायण के श्राप से पावन।
बन जायेगी तू वृन्‍दावन॥२२॥

वृक्षों में देवी बन जायेगी।
वृन्‍दावनी तू कहलायेगी॥

पूजा होगी तुझ बिन निशफल।
संग रहेंगे विष्‍णु हर पल॥२४॥

राधा मंत्र तब दिया निराला।
तात ने सौलह अक्षर वाला॥

जब कर तुमने सिद्धि पाई।
लक्ष्‍मी सम सिद्धा कहलाई॥२६॥

शंखचूड़ से ब्‍याह रचाया।
सती के जैसा धर्म निभाया॥

शंखचूड़ पर ईर्ष्‍या आई।
देवगणों की मति भरमाई॥२८॥

शंखचूड़ को छल से मारा।
काम किया ये शिव ने सारा॥

शंखचूड़ का रूप धरा था।
हरि ने सती का शील हरा था॥३०॥

श्राप दिया तुलसी ने रोकर।
नाथ रहो तुम पत्‍थर होकर॥

हरि बोले अ‍ब ये तन छोड़ो।
तुम मेरे संग नाता जोड़ो॥३२॥

क्‍या कहूँ आये तुम्‍हरा सरीरा।
बने दंड की निर्मल नीरा॥

वृक्ष हो तुलसी केश तुम्‍हारे।
स्‍थान हो तुमसे पावन सारे॥३४॥

वर देकर फिर बोले भगवन।
धन्‍य हो तुमसे सबके जीवन॥

चरण जहॉं तव पड़ जायेंगे।
तीर्थ स्‍थान वे कहलायेंगे॥३६॥

तुलसीयुक्‍त जल से जो नहाये।
यज्ञ आदि का वो फल पाये॥

विष्‍णु को प्रिय तुलसी चढ़ाये।
कोटि चढ़ावों का फल पाये॥३८॥

जो फल दे दो दान हजारा।
दे कार्तिक में दान तुम्‍हारा॥

भरत है भैया दास तुम्‍हारा।
अपनी शरण का दे दो सहारा॥४०॥

॥ दोहा ॥

कलियुग में महिमा तेरी, है मॉं अपरम्‍पार।
दिशा दिशा मे हो रही, तेरी जय जयकार॥

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