श्री नरसिंह चालीसा: हे प्रभु नरसिंह विश्व के स्वामी (Shri Narsingh Chalisa- He Prabhu Narsingh Vishwa Ke Swami)

Shri Narsingh Chalisa

श्री नरसिंह चालीसा

॥ दोहा ॥

दुष्ट दलन भय भंजना, हे नरसिंह भगवान।
अंजलि बांधे हम खड़े, कर दीजो कल्याण॥

भजते तुम्हारा नाम हम, हर पल आठों याम।
ऐसा आशीष दो हमें, पूरन हों सब काम॥

॥ चौपाई ॥

हे प्रभु नरसिंह विश्व के स्वामी।
करुणा के सागर अंतर्यामी॥

तुम पतितों को पावन करते।
सुख रत्नों से झोलियाँ भरते॥२॥

हिरण्यकश्यप के तुम संहारक।
भवभय भंजन कष्ट निवारक॥

जो तेरी चरण शरण में आते।
मनवांछित वो फल पा जाते॥४॥

हम दुखियों की सुध भी लेना।
यहाँ वहाँ ना भटकने देना॥

काम क्रोध मद लोभ को हरना।
हम पे दया की दृष्टि करना॥६॥

बाधा विघ्न अवरोध हटा दो।
दुख के कांटे फूल बना दो॥

तुम्ही हो विष को अमृत करते।
सबके कष्ट कलेश हो हरते॥८॥

सिंह मुख वाले हे परमेश्वर।
करो अनुकंपा दृष्टि हम पर॥

उज्जवल करना भाग्य हमारे।
ऋणी रहेंगे सदा ही तुम्हारे॥१०॥

विष्णु के अवतार अनूठे।
अनुग्रह तेरा कभी ना रूठे॥

धन धान्य समृद्धि देना।
कामना की हमें सिद्धि देना॥१२॥

बसे हो तुम प्रहलाद के मन में।
झलक तुम्हारी है कण कण में॥

तुम बलियों में महा बलिदाता।
भक्तों के रक्षक भाग्य विधाता॥१४॥

दीन दुःखी के तुम रखवाले।
दुष्टों को दंड देने वाले॥

दुर्गम काज को सुगम बनाते।
भक्तन घर खुशहाली लाते॥१६॥

विष्णु रूप तुम चक्रधारी।
अपरंपार है लीला तुम्हारी॥

अभय दान हो देते जिनको।
यमों का भय ना रहता उनको॥१८॥

कल्पवृक्ष हैं तेरी कलाएं।
तेरे गुण गायें दसों दिशाएँ॥

सच्चिदानंद आनन्द के सागर।
विकट रूप हे न्याय दिवाकर॥२०॥

रखना सिरों पे हाथ हमारे।
हे त्रिजग के सिरजन हारे॥

हे सुख करता हे दुःख मोचन।
करते हम तेरा मन से चिंतन॥२२॥

सारथी बनो मेरे जीवन रथ के।
पथिक बना दो सत्य के पथ के॥

सिंह मुखी तुम देव निराले।
राई का पर्वत करने वाले॥२४॥

करो साकार हर भक्त का सपना।
डोले कभी विश्वास ना अपना॥

सौ सूरज सम तेज तुम्हारा।
दूर हमारा करो अँधियारा॥२६॥

जब तेरी करुणा खेल रचाती।
दुर्लभ वस्तु सुलभ हो जाती॥

खम्बा फाड़ के आने वाले।
दूर करो संकट घन काले॥२८॥

रस अनुकंपा का बरसाना।
भवसागर से पार लगाना॥

तोड़ना दुःख संताप के बंधन।
माटी छू कर करदो चन्दन॥३०॥

हम निर्बल हैं बल दो दाता।
प्यासे मन को जल दो दाता॥

मनोकामना कर दो पूरी।
रहे ना इच्छा कोई अधूरी॥३२॥

सिद्ध मनोरथ हो जाये सारे।
तुम्हें भजें हम साँझ सकारे॥

हर लीजो प्रभु कुटिल कुबुद्धि।
अन्तःकरण की करना शुद्धि॥३४॥

असुर निकंदन तुम्हीं नारायण।
कृपा तुम्हारी दिव्य रसायन॥

हर एक पग पर हमें संभालो।
माया नदी से बाहर निकालो॥३६॥

मधु से मीठी कर दो वाणी।
बनें कभी ना हम अभिमानी॥

सहनशीलता का धन देना।
छाया तले छुपा हमें लेना॥३८॥

नस नस में सद्भावना भरना।
जनम जनम के पाप प्रभु हरना॥

तेरा चालीसा हो फलदायी।
निर्दोषों का सदा सहाई॥४०॥

॥ दोहा ॥

शीश हमारे रखना सदा ही, निज करुणा का हाथ।
जीवन की हर डगर पे रहियो, सदा हमारे साथ॥

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