श्री राणी सती (दादी जी) चालीसा: नमो नमो श्री सती भवानी (Shri Rani Sati Dadi Ji Chalisa)
राणी सती दादी जी का मंदिर राजस्थान के झुंझनू जिले में स्थित है, जिसे भारत का सबसे बड़ा मंदिर माना जाता है। मान्यताओं व कथाओं के अनुसार- "राणी सती दादी जी एक रानी थीं, जिन्होने अपने पति की मृत्यु पर सती (आत्मदाह) किया था।" इन्हें नारायणी देवी व दादी जी भी कहा जाता है।
राजस्थान और अन्य जगह पर राणी सती दादी के कई मंदिर है, जिनमें उनकी विशेष पूजा और उत्सव भी मनाए जाते हैं। जिसमें चालीसा का पाठ भी किया जाता है।
राणी सती दादी जी चालीसा
॥ दोहा ॥
श्री गुरु पद पंकज नमन, दुषित भाव सुधार।
राणी सती सू विमल यश, बरणौ मति अनुसार॥
काम क्रोध मद लोभ मै, भरम रह्यो संसार।
शरण गहि करूणामई, सुख सम्पति संसार॥
॥ चौपाई ॥
नमो नमो श्री सती भवानी।
जग विख्यात सभी मन मानी॥
नमो नमो संकट कू हरनी।
मनवांछित पूरण सब करनी॥२॥
नमो नमो जय जय जगदंबा।
भक्तन काज न होय विलंबा॥
नमो नमो जय जय जगतारिणी।
सेवक जन के काज सुधारिणी॥४॥
दिव्य रूप सिर चूनर सोहे।
जगमगात कुन्डल मन मोहे॥
मांग सिंदूर सुकाजर टीकी।
गजमुक्ता नथ सुंदर नीकी॥६॥
गल वैजंती माल विराजे।
सोलहूं साज बदन पे साजे॥
धन्य भाग गुरसामलजी को।
महम डोकवा जन्म सती को॥८॥
तनधनदास पति वर पाये।
आनंद मंगल होत सवाये॥
जालीराम पुत्र वधु होके।
वंश पवित्र किया कुल दोके॥१०॥
पति देव रण मॉय जुझारे।
सति रूप हो शत्रु संहारे॥
पति संग ले सद् गती पाई।
सुर मन हर्ष सुमन बरसाई॥१२॥
धन्य भाग उस राणा जी को।
सुफल हुवा कर दरस सती का॥
विक्रम तेरह सौ बावन कूं।
मंगसिर बदी नौमी मंगल कूं॥१४॥
नगर झून्झूनू प्रगटी माता।
जग विख्यात सुमंगल दाता॥
दूर देश के यात्री आवै।
धुप दिप नैवैध्य चढावे॥१६॥
उछाङ उछाङते है आनंद से।
पूजा तन मन धन श्रीफल से॥
जात जङूला रात जगावे।
बांसल गोत्री सभी मनावे॥१८॥
पूजन पाठ पठन द्विज करते।
वेद ध्वनि मुख से उच्चरते॥
नाना भाँति भाँति पकवाना।
विप्र जनो को न्यूत जिमाना॥२०॥
श्रद्धा भक्ति सहित हरसाते।
सेवक मनवांछित फल पाते॥
जय जय कार करे नर नारी।
श्री राणी सतीजी की बलिहारी॥२२॥
द्वार कोट नित नौबत बाजे।
होत सिंगार साज अति साजे॥
रत्न सिंघासन झलके नीको।
पलपल छिनछिन ध्यान सती को॥२४॥
भाद्र कृष्ण मावस दिन लीला।
भरता मेला रंग रंगीला॥
भक्त सूजन की सकल भीङ है।
दरशन के हित नही छीङ है॥२६॥
अटल भुवन मे ज्योति तिहारी।
तेज पूंज जग मग उजियारी॥
आदि शक्ति मे मिली ज्योति है।
देश देश मे भवन भौति है॥२८॥
नाना विधी से पूजा करते।
निश दिन ध्यान तिहारो धरते॥
कष्ट निवारिणी दुख: नासिनी।
करूणामयी झुन्झुनू वासिनी॥३०॥
प्रथम सती नारायणी नामा।
द्वादश और हुई इस धामा॥
तिहूं लोक मे कीरति छाई।
राणी सतीजी की फिरी दुहाई॥३२॥
सुबह शाम आरती उतारे।
नौबत घंटा ध्वनि टंकारे॥
राग छत्तीसों बाजा बाजे।
तेरहु मंड सुन्दर अति साजे॥३४॥
त्राहि त्राहि मै शरण आपकी।
पुरी मन की आस दास की॥
मुझको एक भरोसो तेरो।
आन सुधारो मैया कारज मेरो॥३६॥
पूजा जप तप नेम न जानू।
निर्मल महिमा नित्य बखानू॥
भक्तन की आपत्ति हर लिनी।
पुत्र पौत्र सम्पत्ति वर दीनी॥४०॥
पढे चालीसा जो शतबारा।
होय सिद्ध मन माहि विचारा॥
टिबरिया ली शरण तिहारी।
क्षमा करो सब चूक हमारी॥४२॥
॥ दोहा ॥
दुख आपद विपदा हरण, जन जीवन आधार।
बिगङी बात सुधारियो, सब अपराध बिसार॥
॥ इति श्री राणी सती दादी चालीसा सम्पूर्ण ॥