विनय चालीसा: जय जय नीब करौरी बाबा (Vinay Chalisa- Jay Jay Neem Karoli Baba)

Vinay Chalisa- Jay Jay Neem Karoli Baba

विनय चालीसा

॥ दोहा ॥

मैं हूँ बुद्धि मलीन अति, श्रद्धा भक्ति विहीन॥
करूँ विनय कछु आपकी, हो सब ही विधि दीन॥

॥ चौपाई ॥

जय जय नीब करोली बाबा।
कृपा करहु आवै सद्भावा ॥

कैसे मैं तव स्तुति बखानू।
नाम ग्राम कछु मैं नहीं जानूँ ॥२॥

जापे कृपा द्रिष्टि तुम करहु।
रोग शोक दुःख दारिद हरहु ॥

तुम्हरौ रूप लोग नहीं जानै।
जापै कृपा करहु सोई भानै ॥४॥

करि दे अर्पन सब तन मन धन।
पावै सुख अलौकिक सोई जन ॥

दरस परस प्रभु जो तव करई।
सुख सम्पति तिनके घर भरई ॥६॥

जय जय संत भक्त सुखदायक।
रिद्धि सिद्धि सब सम्पति दायक ॥

तुम ही विष्णु राम श्री कृष्णा।
विचरत पूर्ण कारन हित तृष्णा ॥८॥

जय जय जय जय श्री भगवंता।
तुम हो साक्षात् हनुमंता ॥

कही विभीषण ने जो बानी।
परम सत्य करि अब मैं मानी ॥१०॥

बिनु हरि कृपा मिलहि नहीं संता।
सो करि कृपा करहि दुःख अंता ॥

सोई भरोस मेरे उर आयो।
जा दिन प्रभु दर्शन मैं पायो ॥१२॥

जो सुमिरै तुमको उर माहि।
ताकि विपति नष्ट ह्वै जाहि ॥

जय जय जय गुरुदेव हमारे।
सबहि भाँति हम भये तिहारे ॥१४॥

हम पर कृपा शीघ्र अब करहु।
परम शांति दे दुःख सब हरहु ॥

रोक शोक दुःख सब मिट जावै।
जपै राम रामहि को ध्यावै ॥१६॥

जा विधि होई परम कल्याणा।
सोई सोई आप देहु वरदाना ॥

सबहि भाँति हरि ही को पूजे।
राग द्वेष द्वंदन सो जूझे ॥१८॥

करै सदा संतन की सेवा।
तुम सब विधि सब लायक देवा ॥

सब कुछ दे हमको निस्तारो।
भवसागर से पार उतारो ॥२०॥

मैं प्रभु शरण तिहारी आयो।
सब पुण्यन को फल है पायो ॥

जय जय जय गुरुदेव तुम्हारी।
बार बार जाऊं बलिहारी ॥२२॥

सर्वत्र सदा घर घर की जानो।
रूखो सूखो ही नित खानो ॥

भेष वस्त्र है सादा ऐसे।
जाने नहीं कोउ साधू जैसे ॥२४॥

ऐसी है प्रभु रहनी तुम्हारी।
वाणी कहो रहस्यमय भारी ॥

नास्तिक हूँ आस्तिक ह्वै जावै।
जब स्वामी चेटक दिखलावै ॥२६॥

सब ही धर्मन के अनुयायी।
तुम्हे मनावै शीश झुकाई ॥

नहीं कोउ स्वारथ नहीं कोउ इच्छा।
वितरण कर देउ भक्तन भिक्षा ॥२८॥

केही विधि प्रभु मैं तुम्हे मनाऊँ।
जासो कृपा-प्रसाद तव पाऊँ ॥

साधु सुजन के तुम रखवारे।
भक्तन के हो सदा सहारे ॥३०॥

दुष्टऊ शरण आनी जब परई।
पूरण इच्छा उनकी करई ॥

यह संतन करि सहज सुभाऊ।
सुनी आश्चर्य करई जनि काउ ॥३२॥

ऐसी करहु आप अब दाया।
निर्मल होई जाइ मन और काया ॥

धर्म कर्म में रूचि होई जावे।
जो जन नित तव स्तुति गावै ॥३४॥

आवे सद्गुन तापे भारी।
सुख सम्पति सोई पावे सारी ॥

होय तासु सब पूरन कामा।
अंत समय पावै विश्रामा ॥३६॥

चारि पदारथ है जग माहि।
तव कृपा प्रसाद कछु दुर्लभ नाही ॥

त्राहि त्राहि मैं शरण तिहारी।
हरहु सकल मम विपदा भारी ॥३८॥

धन्य धन्य बड़ भाग्य हमारो।
पावै दरस परस तव न्यारो ॥

कर्महीन अरु बुद्धि विहीना।
तव प्रसाद कछु वर्णन कीन्हा ॥४०॥

॥ दोहा ॥

श्रद्धा के यह पुष्प कछु, चरणन धरी सम्हार॥
कृपासिन्धु गुरुदेव प्रभु, करी लीजै स्वीकार॥

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