श्री हनुमान सठिका (हनुमत बंदी मोचन) हिन्दी अर्थ सहित (Shri Hanuman Sathika)

Hanuman Sathika or Hanumat Bandi Mochan Lyrics with Meaning in Hindi Title Image

श्री हनुमान साठिका या हनुमद बंदी मोचन गोस्वामी तुलसीदास के द्वारा रचित है। जिस प्रकार चालीसा में चालीसा 40 चौपाई होती हैं इसी प्रकार साठिका 60 चौपाइयों का संग्रह है। इसमें पवन पुत्र, महावीर हनुमान जी की महत्ता और प्रशंसा का वर्णन किया गया है।

हनुमान चालीसा की भांति हनुमान साठिका का पाठ भी अत्यंत शक्तिशाली है। हनुमान साठिका को हनुमत बंदी मोचन इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसके नियमित पाठ से कोर्ट कचहरी, विवाद के जेल (कारागृह) से मुक्ति मिलती है।

श्री हनुमान साठिका

॥ दोहा ॥

बीर बखानौं पवनसुत,जनत सकल जहान।
धन्य-धन्य अंजनि-तनय , संकर, हर, हनुमान्॥

॥ चौपाई ॥

जय जय जय हनुमान अडंगी।
महावीर विक्रम बजरंगी॥

जय कपीश जय पवन कुमारा।
जय जगबन्दन सील अगारा॥

जय आदित्य अमर अबिकारी।
अरि मरदन जय-जय गिरधारी॥

अंजनि उदर जन्म तुम लीन्हा।
जय-जयकार देवतन कीन्हा॥

बाजे दुन्दुभि गगन गम्भीरा।
सुर मन हर्ष असुर मन पीरा॥

कपि के डर गढ़ लंक सकानी।
छूटे बंध देवतन जानी॥

ऋषि समूह निकट चलि आये।
पवन तनय के पद सिर नाये॥

बार-बार अस्तुति करि नाना।
निर्मल नाम धरा हनुमाना॥

सकल ऋषिन मिलि अस मत ठाना।
दीन्ह बताय लाल फल खाना॥

सुनत बचन कपि मन हर्षाना।
रवि रथ उदय लाल फल जाना॥

रथ समेत कपि कीन्ह अहारा।
सूर्य बिना भए अति अंधियारा॥

विनय तुम्हार करै अकुलाना।
तब कपीस की अस्तुति ठाना॥

सकल लोक वृतान्त सुनावा।
चतुरानन तब रवि उगिलावा॥

कहा बहोरि सुनहु बलसीला।
रामचन्द्र करिहैं बहु लीला॥

तब तुम उन्हकर करेहू सहाई।
अबहिं बसहु कानन में जाई॥

असकहि विधि निजलोक सिधारा।
मिले सखा संग पवन कुमारा॥

खेलैं खेल महा तरु तोरैं।
ढेर करैं बहु पर्वत फोरैं॥

जेहि गिरि चरण देहि कपि धाई।
गिरि समेत पातालहिं जाई॥

कपि सुग्रीव बालि की त्रासा।
निरखति रहे राम मगु आसा॥

मिले राम तहं पवन कुमारा।
अति आनन्द सप्रेम दुलारा॥

मनि मुंदरी रघुपति सों पाई।
सीता खोज चले सिरु नाई॥

सतयोजन जलनिधि विस्तारा।
अगम अपार देवतन हारा॥

जिमि सर गोखुर सरिस कपीसा।
लांघि गये कपि कहि जगदीशा॥

सीता चरण सीस तिन्ह नाये।
अजर अमर के आसिस पाये॥

रहे दनुज उपवन रखवारी।
एक से एक महाभट भारी॥

तिन्हैं मारि पुनि कहेउ कपीसा।
दहेउ लंक कोप्यो भुज बीसा॥

सिया बोध दै पुनि फिर आये।
रामचन्द्र के पद सिर नाये॥

मेरु उपारि आप छिन माहीं।
बांधे सेतु निमिष इक मांहीं॥

लछमन शक्ति लागी उर जबहीं।
राम बुलाय कहा पुनि तबहीं॥

भवन समेत सुषेन लै आये।
तुरत सजीवन को पुनि धाये॥

मग महं कालनेमि कहं मारा।
अमित सुभट निसिचर संहारा॥

आनि संजीवन गिरि समेता।
धरि दीन्हों जहं कृपा निकेता॥

फनपति केर सोक हरि लीन्हा।
वर्षि सुमन सुर जय जय कीन्हा॥

अहिरावण हरि अनुज समेता।
लै गयो तहां पाताल निकेता॥

जहां रहे देवि अस्थाना।
दीन चहै बलि काढ़ि कृपाना॥

पवनतनय प्रभु कीन गुहारी।
कटक समेत निसाचर मारी॥

रीछ कीसपति सबै बहोरी।
राम लषन कीने यक ठोरी॥

सब देवतन की बन्दि छुड़ाये।
सो कीरति मुनि नारद गाये॥

अछयकुमार दनुज बलवाना।
कालकेतु कहं सब जग जाना॥

कुम्भकरण रावण का भाई।
ताहि निपात कीन्ह कपिराई॥

मेघनाद पर शक्ति मारा।
पवन तनय तब सो बरियारा॥

रहा तनय नारान्तक जाना।
पल में हते ताहि हनुमाना॥

जहं लगि भान दनुज कर पावा।
पवन तनय सब मारि नसावा॥

जय मारुत सुत जय अनुकूला।
नाम कृसानु सोक सम तूला॥

जहं जीवन के संकट होई।
रवि तम सम सो संकट खोई॥

बन्दि परै सुमिरै हनुमाना।
संकट कटै धरै जो ध्याना॥

जाको बांध बामपद दीन्हा।
मारुत सुत व्याकुल बहु कीन्हा॥

सो भुजबल का कीन कृपाला।
अच्छत तुम्हें मोर यह हाला॥

आरत हरन नाम हनुमाना।
सादर सुरपति कीन बखाना॥

संकट रहै न एक रती को।
ध्यान धरै हनुमान जती को॥

धावहु देखि दीनता मोरी।
कहौं पवनसुत जुगकर जोरी॥

कपिपति बेगि अनुग्रह करहु।
आतुर आइ दुसइ दुख हरहु॥

राम सपथ मैं तुमहिं सुनाया।
जवन गुहार लाग सिय जाया॥

यश तुम्हार सकल जग जाना।
भव बन्धन भंजन हनुमाना॥

यह बन्धन कर केतिक बाता।
नाम तुम्हार जगत सुखदाता॥

करौ कृपा जय जय जग स्वामी।
बार अनेक नमामि नमामी॥

भौमवार कर होम विधाना।
धूप दीप नैवेद्य सुजाना॥

मंगल दायक को लौ लावे।
सुन नर मुनि वांछित फल पावे॥

जयति जयति जय जय जग स्वामी।
समरथ पुरुष सुअन्तरजामी॥

अंजनि तनय नाम हनुमाना।
सो तुलसी के प्राण समाना॥

॥ दोहा ॥

जय कपीस सुग्रीव तुम, जय अंगद हनुमान।
राम लषन सीता सहित, सदा करो कल्याण॥

बन्दौं हनुमत नाम यह, भौमवार परमान।
ध्यान धरै नर निश्चय, पावै पद कल्याण॥

जो नित पढ़ै यह साठिका, तुलसी कहैं बिचारि।
रहै न संकट ताहि को, साक्षी हैं त्रिपुरारि॥

॥ सवैया ॥

आरत बन पुकारत हौं कपिनाथ सुनो विनती मम भारी।
अंगद औ नल-नील महाबलि देव सदा बल की बलिहारी॥

जाम्बवन्त् सुग्रीव पवन-सुत दिबिद मयंद महा भटभारी।
दुःख दोष हरो तुलसी जन-को श्री द्वादश बीरन की बलिहारी॥

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हिन्दी अर्थ सहित

श्री हनुमान साठिका हिन्दी में अनुवाद

॥ दोहा ॥

बीर बखानौं पवनसुत,जनत सकल जहान।
धन्य-धन्य अंजनि-तनय , संकर, हर, हनुमान्॥

हे हनुमान जी! हे अंजनी पुत्र! हे पवन पुत्र! हे शंकर के अवतार! आप धन्य हैं। आपकी कीर्ति का मैं वर्णन करता हूँ। आपके बारे में संपूर्ण जगत जानता है।

॥ चौपाई ॥

जय जय जय हनुमान अडंगी।
महावीर विक्रम बजरंगी॥

हे परम वीर हनुमान जी! आपको कोई नहीं रोक सकता। आपके मार्ग में कोई बाधा नहीं डाल सकता। आपके अंग वज्र के समान मजबूत हैं। आपकी जय हो ।

जय कपीश जय पवन कुमारा।
जय जगबन्दन सील अगारा॥

हे कपीश! हे पवन कुमार! सारा संसार आपको प्रणाम करता है। आप गुणों के भंडार हैं। आपकी जय हो।

जय आदित्य अमर अबिकारी।
अरि मरदन जय-जय गिरधारी॥

हे हनुमान जी! आप कान्ति में आदित्य के समान हैं। आप अमर हैं। आप में क्रोध जैसे विकार नहीं हैं।आप शत्रुओं का विनाश करते हैं। आप में इतनी शक्ति है कि आपने द्रोणाचल को उठाया। आपकी जय हो।

अंजनि उदर जन्म तुम लीन्हा।
जय-जयकार देवतन कीन्हा॥

हे हनुमान जी! जब आप ने अंजनी के गर्भ से जन्म लिया तब देवताओं ने आपकी जय - जयकार की थी।

बाजे दुन्दुभि गगन गम्भीरा।
सुर मन हर्ष असुर मन पीरा॥

आकाश में दुन्दुभी जैसे वाद्य बजे। देवता लोग खुश हुए। असुर भय से पीडित हो गये।

कपि के डर गढ़ लंक सकानी।
छूटे बंध देवतन जानी॥

आप से लंका के सारे राक्षस डरे। आपके कारण देवता मुक्त हो गये।

ऋषि समूह निकट चलि आये।
पवन तनय के पद सिर नाये॥

ऋषि जन आपके पास आये। उन्होंने आपका प्रणाम किया।

बार-बार अस्तुति करि नाना।
निर्मल नाम धरा हनुमाना॥

सब ने आपकी स्तुति की। आपका नाम हनुमान रखा गया।

सकल ऋषिन मिलि अस मत ठाना।
दीन्ह बताय लाल फल खाना॥

ऋषियों ने आपको लाल रंग का फल खाने को कहा।

सुनत बचन कपि मन हर्षाना।
रवि रथ उदय लाल फल जाना॥

लाल रंग का फल का नाम सुनकर आप बहुत खुश हुए। सूर्य को ही आप ने लाल रंग का फल समझा।

रथ समेत कपि कीन्ह अहारा।
सूर्य बिना भए अति अंधियारा॥

आपने रथ समेत सूर्य को फल समझकर अपना आहार बना लिया, जिससे चारों तरफ अँधियारा हो गया।

विनय तुम्हार करै अकुलाना।
तब कपीस की अस्तुति ठाना॥

सूर्य के बिना सब देवता और मुनि व्याकुल होकर आपकी स्तुति करने लगे।

सकल लोक वृतान्त सुनावा।
चतुरानन तब रवि उगिलावा॥

सारे संसार की दशा सुनकर ब्रह्माजी ने सूर्य को मुक्त करने के लिए आपको मनाया।

कहा बहोरि सुनहु बलसीला।
रामचन्द्र करिहैं बहु लीला॥

तब आपसे विनती की, हे महावीर! सुनिये। श्री रामचंद्र जी महान लीला करेंगे।

तब तुम उन्हकर करेहू सहाई।
अबहिं बसहु कानन में जाई॥

तब आप उनकी सहायता करियेगा।अभी तो आप वन में जाकर रहिये।

असकहि विधि निजलोक सिधारा।
मिले सखा संग पवन कुमारा॥

यह कहकर ब्रह्माजी अपने लोक को चले गए और हे पवनकुमार। आप अपने सखाओं में मिल गए।

खेलैं खेल महा तरु तोरैं।
ढेर करैं बहु पर्वत फोरैं॥

खेल-खेल में आपने बड़े-बड़े वृक्ष तोड़ डाले और पर्वतों को फोड़-फोड़ कर मार्ग बनाया।

जेहि गिरि चरण देहि कपि धाई।
गिरि समेत पातालहिं जाई॥

हे हनुमान जी! जिस पर्वत पर आपने चरण रखे वह प्रकाशमान होकर रसातल में चला गया।

कपि सुग्रीव बालि की त्रासा।
निरखति रहे राम मगु आसा॥

सुग्रीव जी बाली से डरे हुए थे। श्री रामचन्द्र की प्रतीक्षा करते हुए निर्भय रहते थे।

मिले राम तहं पवन कुमारा।
अति आनन्द सप्रेम दुलारा॥

हे पवनकुमार! आपने लाकर उन्हें श्री रामचन्द्र जी से मिला दिया। और हे पवनपुत्र! आपको इसमें बहुत आनन्द हुआ।

मनि मुंदरी रघुपति सों पाई।
सीता खोज चले सिरु नाई॥

हे हनुमान जी! श्री राघवेंद्र से आपको मणि जड़ित अंगूठी मिली जिसे लेकर आप श्री सीता जी की खोज करने चले।

सतयोजन जलनिधि विस्तारा।
अगम अपार देवतन हारा॥

सौ योजन का विशाल, अथाह, समुद्र जिसे देवता और मुनि भी पार नहीं कर सकते थे।

जिमि सर गोखुर सरिस कपीसा।
लांघि गये कपि कहि जगदीशा॥

हे हनुमान जी!उसे आपने 'जय श्रीराम' कहकर बिना थके हुए सहज हीं गऊ के खुर के समान लाँघ लिया।

सीता चरण सीस तिन्ह नाये।
अजर अमर के आसिस पाये॥

सीता जी के पास पहुँचकर उनके चरण कमल में सिर नवाया जिस पर सीताजी से आपने अजर अमर होने का आशीर्वाद पाया।

रहे दनुज उपवन रखवारी।
एक से एक महाभट भारी॥

एक-से-एक भयंकर योद्धा, राक्षस वाटिका की रखवाली करते थे।

तिन्हैं मारि पुनि कहेउ कपीसा।
दहेउ लंक कोप्यो भुज बीसा॥

उन्हें आपने मारा, उपवन को नष्ट किया , लंका को जलाया जिससे रावण भयभीत होकर काँप गया।

सिया बोध दै पुनि फिर आये।
रामचन्द्र के पद सिर नाये॥

आपने सीता जी को धीरज दिया और लौट कर श्री रामचन्द्र के चरणों में सिर नवाया।

मेरु उपारि आप छिन माहीं।
बांधे सेतु निमिष इक मांहीं॥

बड़े-बड़े पर्वतों को लाकर आपने पलभर में समुद्र पर पुल बँधाया।

लछमन शक्ति लागी उर जबहीं।
राम बुलाय कहा पुनि तबहीं॥

जब लक्ष्मण जी को शक्ति लगी तब श्रीरामचंद्र ने बहुत विलाप किया।

भवन समेत सुषेन लै आये।
तुरत सजीवन को पुनि धाये॥

आप सुषेन वैद्य को भवन समेत ही उठा लाए आप बड़े वेग से संजीवनी बूटी लेने गए।

मग महं कालनेमि कहं मारा।
अमित सुभट निसिचर संहारा॥

रास्ते में कालनेमि को मारा और असंख्य योद्धा- निशाचरों को नष्ट किया।

आनि संजीवन गिरि समेता।
धरि दीन्हों जहं कृपा निकेता॥

आपने पर्वत सहित संजीवनी को लाकर करुणानिधान श्रीरामचंद्र के पास रख दिया।

फनपति केर सोक हरि लीन्हा।
वर्षि सुमन सुर जय जय कीन्हा॥

आपने शेषनाग अवतार लक्ष्मण जी के संकट को दूर कर दिया। देवताओं ने पुष्प-वर्षा करके जय-जयकार की।

अहिरावण हरि अनुज समेता।
लै गयो तहां पाताल निकेता॥

अहिरावण श्रीराम को उनके छोटे भाई लक्ष्मण समेत को बंदी बनाकर पाताल में ले गया।

जहां रहे देवि अस्थाना।
दीन चहै बलि काढ़ि कृपाना॥

वहाँ देवी जी के स्थान पर उनकी बलि देने के लिए अहिरावण ने तलवार निकाल ली।

पवनतनय प्रभु कीन गुहारी।
कटक समेत निसाचर मारी॥

उसी समय हे हनुमान जी! आपने वहाँ पहुँच कर उस राक्षस को ललकारा और उसे सेना समेत मार डाला।

रीछ कीसपति सबै बहोरी।
राम लषन कीने यक ठोरी॥

जहाँ जामवंत और सुग्रीव थे, वहाँ आप श्री राम और लक्ष्मण को लौटा लाए।

सब देवतन की बन्दि छुड़ाये।
सो कीरति मुनि नारद गाये॥

आपने सब देवताओं को बंधन से छुड़ा दिया। जिससे नारद मुनि ने आपका यशगान किया है।

अछयकुमार दनुज बलवाना।
कालकेतु कहं सब जग जाना॥

अक्षयकुमार राक्षस बहुत बलवान था। जिसे कालकेतु कहते हैं यह सब संसार जानता है।

कुम्भकरण रावण का भाई।
ताहि निपात कीन्ह कपिराई॥

रावण का भाई कुम्भकरण था। हे हनुमान जी ! इन सबका आपने विनाश किया।

मेघनाद पर शक्ति मारा।
पवन तनय तब सो बरियारा॥

आपने युद्ध में मेघनाद को पछाड़ा। हे पवनकुमार! आपके समान कौन बलवान है ?

रहा तनय नारान्तक जाना।
पल में हते ताहि हनुमाना॥

मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाले नारान्तक नामक रावण के पुत्र को हे हनुमानजी! आपने क्षण भर में परास्त कर दिया।

जहं लगि भान दनुज कर पावा।
पवन तनय सब मारि नसावा॥

जहाँ – जहाँ आपने राक्षसों को पाया, हे शिव अवतार! आपने उन्हें मारकर ढकेल दिया।

जय मारुत सुत जय अनुकूला।
नाम कृसानु सोक सम तूला॥

हे पवनपुत्र! आपकी जय हो। आप सेवकों के कार्य-सिद्ध में सहायक हुए। उनके शोक रूपी रूई को जलाने में आपका नाम अग्नि के समान है।

जहं जीवन के संकट होई।
रवि तम सम सो संकट खोई॥

जिसके जीवन में कोई संकट हो, आप उसे वैसे ही दूर कर देते हैं जैसे अँधेरे को सूर्य।

बन्दि परै सुमिरै हनुमाना।
संकट कटै धरै जो ध्याना॥

हे हनुमान जी! बंदी होने पर जो आपका स्मरण करता है उसकी रक्षा करने के लिये आप गदा और चक्र लेकर चल पड़ते हैं।

जाको बांध बामपद दीन्हा।
मारुत सुत व्याकुल बहु कीन्हा॥

यमराज को भी ऊपर दिशा में फेंक देते हैं और मृत्यु को भी बाँधकर उनकी बुरी दशा करते हैं।

सो भुजबल का कीन कृपाला।
अच्छत तुम्हें मोर यह हाला॥

हे कृपासागर ! आपकी वह शारीरिक शक्ति कहाँ गयी जो आपके रहते मेरी यह दशा हो रही है।

आरत हरन नाम हनुमाना।
सादर सुरपति कीन बखाना॥

हे हनुमानजी ! आपका नाम संकटमोचन है। श्री सरस्वती जी और देवराज इंद्र ऐसा वर्णन करते हैं।

संकट रहै न एक रती को।
ध्यान धरै हनुमान जती को॥

जो व्यकि ब्रह्मचारी हनुमानजी आपका ध्यान धरता है उसका एक रत्ती के बराबर भी संकट नहीं रह सकता।

धावहु देखि दीनता मोरी।
कहौं पवनसुत जुगकर जोरी॥

आप मेरी दीनता देखकर अति तीव्र गति से आइये और मेरे बंधनों को काट दीजिए। मैं हाथ जोड़कर विनती करता हूँ।

कपिपति बेगि अनुग्रह करहु।
आतुर आइ दुसइ दुख हरहु॥

हे हनुमान जी! शीघ्र कृपा कीजिये। मुझ दीन का दुःख दूर करने के लिए आप उतावले होकर आइये।

राम सपथ मैं तुमहिं सुनाया।
जवन गुहार लाग सिय जाया॥

हे शिव अवतार! यदि आप मेरी पुकार सुनकर न आओ तो मैं आपको श्रीराम की शपथ देता हूं।

यश तुम्हार सकल जग जाना।
भव बन्धन भंजन हनुमाना॥

आपका यश सारा संसार जानता है, हे हनुमान जी, आप संसार में बार-बार जन्म लेने के भय को भी दूर कर देते हैं।

यह बन्धन कर केतिक बाता।
नाम तुम्हार जगत सुखदाता॥

फिर मेरा यह बंधन कितना सा है? आपका जगत् सुखदाता नाम है।

करौ कृपा जय जय जग स्वामी।
बार अनेक नमामि नमामी॥

हे जग के स्वामी! आपकी जय हो। आप कृपा कीजिये। मैं अनेक बार आपको नमस्कार करता हूँ।

भौमवार कर होम विधाना।
धूप दीप नैवेद्य सुजाना॥

जो कोई मंगलवार को विधिपूर्वक हवन करे , धूप – दीप-नैवद्य समर्पित करे।

मंगल दायक को लौ लावे।
सुन नर मुनि वांछित फल पावे॥

मंगलकारक श्री हनुमान जी में लगन लगावे, वह चाहे देवता हो या मनुष्य हो या मुनि हो, तुरंत ही उसका फल पायेगा।

जयति जयति जय जय जग स्वामी।
समरथ पुरुष सुअन्तरजामी॥

हे जगत के स्वामी! आपकी जय हो, जय हो, जय हो, जय हो! हे हनुमान जी! आप समर्थ विश्वात्मा सभी के मन की बात जानने वाले हो।

अंजनि तनय नाम हनुमाना।
सो तुलसी के प्राण समाना॥

हे अंजनी पुत्र! हे हनुमान जी! आप तुलसीदास के लिए प्राण के समान हैं।

॥ दोहा ॥

जय कपीस सुग्रीव तुम, जय अंगद हनुमान।
राम लषन सीता सहित, सदा करो कल्याण॥

सुग्रीव जी की जय हो। अंगद जी की जय हो। हनुमान जी की जय हो। श्रीराम जी लक्ष्मण जी और सीता जी सहित हनुमान जी सदा हमारा कल्याण कीजिए।

बन्दौं हनुमत नाम यह, भौमवार परमान।
ध्यान धरै नर निश्चय, पावै पद कल्याण॥

मंगलवार के दिन इसका पाठ जो भी करता है वह अवश्य ही कल्याणकारी पद को प्राप्त कर लेता है।

जो नित पढ़ै यह साठिका, तुलसी कहैं बिचारि।
रहै न संकट ताहि को, साक्षी हैं त्रिपुरारि॥

तुलसीदास यह घोषणा करते हैं कि जो इस हनुमान साठिका का नित्य पाठ करेगा वह कभी संकट में नहीं पड़ेगा। स्वयं शिव जी इसके साक्षी हैं।

॥ सवैया ॥

आरत बन पुकारत हौं कपिनाथ सुनो विनती मम भारी।
अंगद औ नल-नील महाबलि देव सदा बल की बलिहारी॥

जाम्बवन्त् सुग्रीव पवन-सुत दिबिद मयंद महा भटभारी।
दुःख दोष हरो तुलसी जन-को श्री द्वादश बीरन की बलिहारी॥

श्री तुलसीदास जी कहते हैं – मैं विपत्ति में आपको पुकार रहा हूँ। आप मेरी प्रार्थना सुनिये। अंगद, नल, नील, महादेव, राजा बलि, भगवान राम, बलराम, शूरवीर जांबवंत, सुग्रीव, पवन पुत्र हनुमान, द्विविद और मयन्द – इन बारह वीरों को मैं बलिहारी (न्यौछावर) हूँ । कृपा करके भक्त के दुःख और दोष को दूर कीजिये।

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