श्री राम रक्षा स्तोत्रम् हिन्दी अर्थ सहित (Shri Ram Raksha Stotram)

Ram Raksha Stotram, राम रक्षा स्तोत्रम् हिन्दी अर्थ सहित

श्री राम रक्षा स्तोत्रम्

विनियोग:

अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य। बुधकौशिक ऋषि:। श्रीसीतारामचंद्रोदेवता। अनुष्टुप् छन्द:। सीता शक्ति:। श्रीमद्हनुमान् कीलकम्। श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥

अथ ध्यानम्

ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं।
पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ॥

वामांकारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं।
नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलं रामचंद्रम् ॥
इति ध्यानम् ॥

॥ स्तोत्रम् ॥

चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥१॥

ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्।
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम् ॥२॥

सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम्।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥३॥

रामरक्षां पठेत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम्।
शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥

कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥

जिह्वां विद्यानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित:।
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥

करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित्।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥

सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु:।
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत् ॥८॥

जानुनी सेतुकृत्पातु जंघे दशमुखान्तक:।
पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोऽखिलं वपु: ॥९॥

एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठेत्।
स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥१०॥

पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्मचारिण:।
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥

रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन्।
नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥

जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्।
य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्धय: ॥१३॥

वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्।
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥१४॥

आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर:।
तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥

आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम्।
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान् स न: प्रभु: ॥१६॥

तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥

फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥

शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्।
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ॥१९॥

आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षयाशुगनिषंग सङ्गिनौ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रत: पथि सदैव गच्छताम् ॥२०॥

संनद्ध: कवची खड्गी चापबाणधरो युवा।
गच्छन्मनोरथोऽस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥

रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली।
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघूत्तम: ॥२२॥

वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम:।
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥२३॥

इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्त: श्रद्धयान्वित:।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥

रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम्।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥२५॥

रामं लक्ष्मण पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम्।
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्

राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम्।
वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥२६॥

रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे।
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥

श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥

श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥

माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र:।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र:।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर् ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥

दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् ॥३१॥

लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥

कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥३४॥

आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥३५॥

भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम्।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥३६॥

रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम:।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहम्।
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥

इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् ॥

॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥

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राम रक्षा स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

Ram Raksha stotra Path Vidhi: श्री राम रक्षा स्तोत्र का नियमित पाठ करना लाभकारी होता है। परंतु मंगलवार और गुरुवार को इसका पाठ विशेष रूप से करना चाहिए।

इसका पाठ आप मंदिर या घर पर कहीं भी कर सकते हैं।
यदि आप इस स्तोत्र का पाठ घर पर करते हैं, तो भगवान प्रभु श्री राम की प्रतिमा या छवि के सामने इसका पाठ करना चाहिए।

किसी विशेष मनोकामना पूर्ति के लिए इस स्तोत्र का पाठ नियमित ग्यारह मंगलवार करना चाहिए।

रामरक्षा स्तोत्र का क्या महत्व है?

Shri Ram Raksha Stotra Benefits: श्री राम चन्द्र जी की कृपा प्राप्ति और प्रसन्न करने के लिए श्री राम रक्षा स्तोत्रम् का नियमित पाठ भक्तजनों को करना चाहिए। इस पाठ से सभी शारीरिक समस्याओं और रोगों से मुक्ति मिलती है। साथ ही दैनिक जीवन में आ रही बाधाएं भी दूर हो जाती है। पाठ करने वाला व्यक्ति तनाव और चिंता मुक्त हो जाता है। व्यक्ति को आकस्मिक दुर्घटनाओं से मुक्ति मिलती है, तथा शत्रु और विरोधी परास्त और शांत हो जाते हैं।

रामरक्षा स्तोत्र में कितने श्लोक हैं?

श्री राम रक्षा स्तोत्र में कुल 38 श्लोक हैं साथ में विनियोग और ध्यान भी है। इस स्तोत्र के कीलक श्री हनुमान जी हैं और यह चमत्कारी स्तोत्र बुधकौशिक ऋषि से द्वारा रचित है। ऐसी मान्यता है कि इस कल्याणकारी स्तोत्र को भगवान् शिव ने बुधकौशिक ऋषि को स्वप्न में उपदेश के रूप में बताया था।

हिन्दी भावार्थ

श्री रामरक्षा स्तोत्र हिन्दी में

विनियोग:

अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य। बुधकौशिक ऋषि:। श्रीसीतारामचंद्रोदेवता। अनुष्टुप् छन्द:। सीता शक्ति:। श्रीमद्हनुमान् कीलकम्। श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥

इस राम रक्षा स्तोत्र मंत्र के रचयिता बुध कौशिक ऋषि हैं, सीता और रामचंद्र देवता हैं, अनुष्टुप छंद हैं, सीता शक्ति हैं, हनुमान जी कीलक है तथा श्री रामचंद्र जी की प्रसन्नता के लिए राम रक्षा स्तोत्र के जप में विनियोग किया जाता हैं।

अथ ध्यानम्

ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं।
पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ॥

वामांकारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं।
नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलं रामचंद्रम् ॥

इति ध्यानम् ॥

जो धनुष-बाण धारण किए हुए हैं, बद्ध पद्मासन की मुद्रा में विराजमान हैं और पीतांबर पहने हुए हैं, जिनके आलोकित नेत्र नए कमल दल के समान स्पर्धा करते हैं, जो बायें ओर स्थित सीता जी के मुख कमल से मिले हुए हैं- उन आजानु बाहु, मेघश्याम, विभिन्न अलंकारों से विभूषित तथा जटाधारी श्रीराम का ध्यान करें।

॥ स्तोत्रम् ॥

चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥१॥

श्री रघुनाथजीका चरित्र सौ कोटि विस्तारवाला हैं। उसका एक-एक अक्षर महापातकों को नष्ट करने वाला है।

ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्।
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम् ॥२॥

नीले कमल के श्याम वर्ण वाले, कमल नेत्र वाले , जटाओं के मुकुट से सुशोभित, जानकी तथा लक्ष्मण सहित ऐसे भगवान् श्रीराम का स्मरण कर,

सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम्।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥३॥

जो अजन्मा एवं सर्वव्यापक, हाथों में खड्ग, तुणीर, धनुष-बाण धारण किए राक्षसों के संहार तथा अपनी लीलाओं से जगत रक्षा हेतु अवतीर्ण श्रीराम का स्मरण कर,

रामरक्षां पठेत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम्।
शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥

मैं सर्वकामप्रद और पापों को नष्ट करने वाले राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करता हूं। राघव मेरे सिर की और दशरथ के पुत्र मेरे ललाट की रक्षा करें।

कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥

कौशल्या नंदन मेरे नेत्रों की, विश्वामित्र के प्रिय मेरे कानों की, यज्ञ रक्षक मेरे घ्राण की और सुमित्रा के वत्सल मेरे मुख की रक्षा करें।

जिह्वां विद्यानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित:।
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥

विद्या निधि मेरी जिह्वा की रक्षा करें, कंठ की भरत-वंदित, कंधों की दिव्यायुध और भुजाओं की महादेव जी का धनुष तोड़ने वाले भगवान् श्रीराम रक्षा करें।

करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित्।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥

मेरे हाथों की सीता पति श्रीराम रक्षा करें, हृदय की जमदग्नि ऋषि के पुत्र (परशुराम) को जीतने वाले, मध्य भाग की खर के (नामक राक्षस) वधकर्ता और नाभि की जांबवान के आश्रयदाता रक्षा करें।

सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु:।
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत् ॥८॥

मेरे कमर की सुग्रीव के स्वामी, हडियों की हनुमान के प्रभु और रानों की राक्षस कुल का विनाश करने वाले रघुकुल श्रेष्ठ रक्षा करें।

जानुनी सेतुकृत्पातु जंघे दशमुखान्तक:।
पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोऽखिलं वपु: ॥९॥

मेरे जानुओं की सेतुकृत, जंघाओ की दशानन वधकर्ता, चरणों की विभीषण को ऐश्वर्य प्रदान करने वाले और सम्पूर्ण शरीर की श्रीराम रक्षा करें।

एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठेत्।
स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥१०॥

शुभ कार्य करने वाला जो भक्त भक्ति एवं श्रद्धा के साथ रामबल से संयुक्त होकर इस स्तोत्र का पाठ करता हैं, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान, विजयी और विनयशील हो जाता हैं।

पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्मचारिण:।
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥

जो जीव पाताल, पृथ्वी और आकाश में विचरते रहते हैं अथवा छद्दम वेश में घूमते रहते हैं , वे राम नामों से सुरक्षित मनुष्य को देख भी नहीं पाते।

रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन्।
नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥

राम, रामभद्र तथा रामचंद्र आदि नामों का स्मरण करने वाला रामभक्त पापों से लिप्त नहीं होता, इतना ही नहीं, वह अवश्य ही भोग और मोक्ष दोनों को प्राप्त करता है।

जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्।
य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्धय: ॥१३॥

जो संसार पर विजय करने वाले मंत्र राम-नाम से सुरक्षित इस स्तोत्र को कंठस्थ कर लेता हैं, उसे सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं।

वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्।
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥१४॥

जो मनुष्य वज्रपंजर नामक इस राम कवच का स्मरण करता हैं, उसकी आज्ञा का कहीं भी उल्लंघन नहीं होता तथा उसे सदैव विजय और मंगल की ही प्राप्ति होती हैं।

आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर:।
तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥

भगवान् शंकर ने स्वप्न में इस राम रक्षा स्तोत्र का आदेश बुध कौशिक ऋषिको दिया था, उन्होंने प्रातः काल जागने पर उसे वैसा ही लिख दिया।

आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम्।
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान् स न: प्रभु: ॥१६॥

जो कल्प वृक्षों के बाग के समान विश्राम देने वाले हैं, जो समस्त विपत्तियों को दूर करने वाले हैं और जो तीनो लोकों में सुंदर हैं, वही श्रीमान राम हमारे प्रभु हैं।

तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥

जो युवा, सुन्दर, सुकुमार, महाबली और कमल के (पुण्डरीक) समान विशाल नेत्रों वाले हैं, मुनियों की समान वस्त्र एवं काले मृग का चर्म धारण करते हैं।

फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥

जो फल और कंद का आहार ग्रहण करते हैं, जो संयमी, तपस्वी एवं ब्रह्रमचारी हैं, वे दशरथ के पुत्र राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें।

शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्।
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ॥१९॥

ऐसे महाबली – रघुश्रेष्ठ मर्यादा पुरूषोतम समस्त प्राणियों के शरणदाता, सभी धनुर्धारियों में श्रेष्ठ और राक्षसों के कुलों का समूल नाश करने में समर्थ हमारा रक्षण करें।

आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षयाशुगनिषंग सङ्गिनौ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रत: पथि सदैव गच्छताम् ॥२०॥

संघान किए धनुष धारण किए, बाण का स्पर्श कर रहे, अक्षय बाणो से युक्त तुणीर लिए हुए राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करने के लिए मेरे आगे चलें।

संनद्ध: कवची खड्गी चापबाणधरो युवा।
गच्छन्मनोरथोऽस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥

हमेशा तत्पर, कवचधारी, हाथ में खडग, धनुष-बाण तथा युवावस्था वाले भगवान् राम लक्ष्मण सहित आगे-आगे चलकर हमारी रक्षा करें।

रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली।
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघूत्तम: ॥२२॥

भगवान का कथन है कि श्रीराम, दाशरथी, शूर, लक्ष्मनाचुर, बली, काकुत्स्थ , पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघुतम,

वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम:।
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥२३॥

वेदान्त्वेघ, यज्ञेश, पुराण पुरूषोतम, जानकी वल्लभ, श्रीमान और अप्रमेय पराक्रम आदि नामों का

इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्त: श्रद्धयान्वित:।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥

नित्यप्रति श्रद्धापूर्वक जप करने वाले को निश्चित रूप से अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक फल प्राप्त होता हैं।

रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम्।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥२५॥

दूर्वादल के समान श्याम वर्ण, कमल-नयन एवं पीतांबर धारी श्रीराम की उपरोक्त दिव्य नामों से स्तुति करने वाला संसार चक्र में नहीं पड़ता।

रामं लक्ष्मण पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम्।
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्

राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम्।
वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥२६॥

लक्ष्मण जी के पूर्वज, सीता जी के पति, काकुत्स्थ, कुल-नंदन, करुणा के सागर, गुण-निधान, विप्र भक्त, परम धार्मिक, राजराजेश्वर, सत्यनिष्ठ, दशरथ के पुत्र, श्याम और शांत मूर्ति, सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, रघुकुल तिलक, राघव एवं रावण के शत्रु भगवान् राम की मैं वंदना करता हूं।

रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे।
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥

राम, रामभद्र, रामचंद्र, विधात स्वरूप , रघुनाथ, प्रभु एवं सीता जी के स्वामी की मैं वंदना करता हूं।

श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥

हे रघुनन्दन श्रीराम! हे भरत के अग्रज भगवान् राम! हे रणधीर, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम! आप मुझे शरण दीजिए।

श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥

मैं एकाग्र मन से श्री रामचंद्र जी के चरणों का स्मरण और वाणी से गुणगान करता हूं, वाणी द्वारा और पूरी श्रद्धा के साथ भगवान् रामचन्द्र के चरणों को प्रणाम करता हुआ मैं उनके चरणों की शरण लेता हूँ।

माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र:।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र:।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर् ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥

श्रीराम मेरे माता, मेरे पिता , मेरे स्वामी और मेरे सखा हैं। इस प्रकार दयालु श्रीराम मेरे सर्वस्व हैं, उनके सिवा मैं किसी दुसरे को नहीं जानता।

दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् ॥३१॥

जिनके दाईं और लक्ष्मण जी, बाईं और जानकी जी और सामने हनुमान ही विराजमान हैं, मैं उन्ही रघुनाथ जी की वंदना करता हूं।

लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥

मैं सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर तथा रणक्रीडा में धीर, कमलनेत्र, रघुवंश नायक, करुणा की मूर्ति और करुणा के भण्डार रुपी श्रीराम की शरण में हूँ।

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥

जिनकी गति मन के समान और वेग वायु के समान (अत्यंत तेज) है, जो परम जितेन्द्रिय एवं बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, मैं उन पवन-नंदन वानारग्रगण्य श्रीराम दूत की शरण लेता हूं।

कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥३४॥

मैं कवितामयी डाली पर बैठकर, मधुर अक्षरों वाले ‘राम-राम’ के मधुर नाम को कूजते हुए वाल्मीकि रुपी कोयल की वंदना करता हूं।

आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥३५॥

मैं इस संसार के प्रिय एवं सुन्दर , उन भगवान् राम को बार-बार नमन करता हूं, जो सभी आपदाओं को दूर करने वाले तथा सुख-सम्पति प्रदान करने वाले हैं।

भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम्।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥३६॥

‘राम-राम’ का जप करने से मनुष्य के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं। वह समस्त सुख-सम्पति तथा ऐश्वर्य प्राप्त कर लेता हैं। राम-राम की गर्जना से यमदूत सदा भयभीत रहते हैं।

रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम:।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहम्।
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥

राजाओं में श्रेष्ठ श्री राम सदा विजय को प्राप्त करते हैं। मैं लक्ष्मीपति भगवान् श्रीराम का भजन करता हूं। सम्पूर्ण राक्षस सेना का नाश करने वाले श्रीराम को मैं नमस्कार करता हूं। श्रीराम के समान अन्य कोई आश्रयदाता नहीं। मैं उन शरणागत वत्सल का दास हूँ। मैं सद्सिव श्रीराम में ही लीन रहूं। हे श्रीराम! आप मेरा (इस संसार सागर से) उद्धार करें।

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥

शिव पार्वती से बोले – हे सुमुखी ! राम- नाम ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ के समान हैं। मैं सदा राम का स्तवन करता हूं और राम-नाम में ही रमण करता हूं।

इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् ॥

इस प्रकार बुध कौशिक द्वारा रचित श्रीराम रक्षा स्तोत्र सम्पूर्ण होता है।

॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥

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