जन जन के प्रिय राम लखन - भजन (Jan Jan Ke Priye Ram Lakhan Lyrics)

Jan Jan Ke Priye Ram Lakhan

Jan Jan Ke Priye Ram Lakhan Siya Van Ko Jaate Hain

व्याकुल दशरथ के लगे,
रथ के पथ पर नैन।
रथ बिहीन बन बन फिरे,
राम सिया दिन रैन॥

बिधिना तेरे लेख किसी की,
समझ न आते हैं।
जन जन के प्रिय राम लखन सिय,
बन को जाते हैं।

जन जन के प्रिय राम लखन सिय,
बन को जाते हैं॥

हो...ओ... बिधिना तेरे लेख किसी की,
समझ न आते हैं।

एक राजा के राज दुलारे,
बन-बन फिरते मारे-मारे।

एक राजा के राज दुलारे,
बन-बन फिरते मारे-मारे।
होनी हो कर रहे कर्म गति,
टरे नहीं काहू के टारे।
सबके कष्ट मिटाने वाले,
कष्ट उठाते हैं।
जन जन के प्रिय राम लखन सिय,
बन को जाते हैं॥

हो...ओ... बिधिना तेरे लेख किसी की,
समझ न आते हैं।

उभय बीच सिया सोहती कैसे,
ब्रह्म जीव बीच माया जैसे।
फूलों से चरणों में काँटे,
विधिना क्यूँ दुःख दिने ऐसे।

पग से बहे लहू की धारा,
हरी चरणों से गंगा जैसे।
संकट सहज भाव से सहते,
और मुसकाते हैंं।

जन जन के प्रिय राम लखन सिय,
बन को जाते हैं॥

हो...ओ... बिधिना तेरे लेख किसी की,
समझ न आते हैं।
जन जन के प्रिय राम लखन सिय,
बन को जाते हैं।

जन जन के प्रिय राम लखन सिय,
बन को जाते हैं॥

------------- Full Bhajan --------------


व्याकुल दशरथ के लगे,
रथ के पथ पर नैन।
रथ बिहीन बन बन फिरे,
राम सिया दिन रैन॥

बिधिना तेरे लेख किसी के,
समझ न आते हैं।

बिधिना तेरे लेख किसी के,
समझ न आते हैं।
जन जन के प्रिय राम लखन सिय,
बन को जाते हैं।

जन जन के प्रिय राम लखन सिय,
बन को जाते हैं।
बिधिना तेरे लेख किसी के,
समझ न आते हैं।

राजमहल में पाया जीवन,
फूलों में हुआ लालन पालन।

राजमहल में पाया जीवन,
फूलों में हुआ लालन पालन।
त्याग सभी महलों के सुख,
त्याग सभी महलों के सुख,
त्याग अयोध्या का सिंहासन।

सब के कष्ट मिटाने वाले,
सब के कष्ट मिटाने वाले,
कष्ट उठाते हैं।
जन जन के प्रिय राम लखन सिय, 
बन को जाते हैं।
बिधिना तेरे लेख किसी के, 
समझ न आते हैं।

सुनते हैं देवों ने आकर,
सुनते हैं देवों ने आकर,
भील की रात का भेष बनाकर।

सुनते हैं देवों ने आकर,
भील की रात का भेष बनाकर।
पर्णकुटी रहने को प्रभु के,
रख दी हाथों हाथ बनाकर।

सुनते हैं देवों ने आकर,
भील की रात का भेष बनाकर,
भील की रात का भेष बनाकर।
पर्णकुटी रहने को प्रभु के,
रख दी हाथों हाथ बनाकर,
रख दी हाथों हाथ बनाकर।

राम सिया की सेवा कर सब,
पुण्य कमाते हैं।

राम सिया की सेवा कर सब,
पुण्य कमाते हैं।
जन जन के प्रिय राम लखन सिय, 
बन को जाते हैं।

महलों के वासी जंगल में,
कुटी बनाते हैं।

बिधिना तेरे लेख किसी के, 
समझ न आते हैं।
समझ न आते हैं,
समझ न आते हैं......

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