जो बिछड़े बिलखत फिरे केवट होके निषाद - भजन (Jo Bichhadhe Bilkhat Phire Kevat Hoke Nishad)

Jo Bichhadhe Bilkhat Phire Kevat Hoke Nishad

जो बिछड़े बिलखत फिरे,
केवट हो के निषाद।
धीर वीर रघुवीर उर,
ना कछु अर्श विषाद॥

गहरी नदिया बांस का बेड़ा,
लखन के हाथों मे पतवार।
आगे बन है पथ निर्जन है,
ना कोई संगी ना आधार॥

विधना तेरे लेख किसी की, समझ ना आते है।
जन जन के प्रिय राम लखन सिय, बन को जाते है।
जन जन के प्रिय राम लखन सिय, बन को जाते है॥

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