लो संभालो भोले अपनी काँवर - भजन (Lo Sambhalo Bhole Apni Kawar)
Kanwar Bhajan: Pagli - Kanwar Ki Mahima
Title: Chal Bhole
Ke Dwar
Singer: Lakhbir Singh Lakha
Music Director:
Jaswant Singh
Lyricist: Saral Kavi, Ramlal Sharma
Music Label: T-Series
Pagli (Kawar Ki Mahima) By Lakhbir Singh Lakkha
सुनिये सुना रहा हूँ एक दास्तान है,
सावन का महीना बड़ा पावन महान है।
सुनिये
सुना रहा हूँ एक दास्तान है,
सावन का महीना बड़ा पावन महान है।
लाखों कावड़िया जाते हैं श्री बाबा धाम को,
जपते हुए उमंग में बम बम के नाम
को,
इकलौता बेटा बाप का माता का नौनिहाल,
कांवड़ चढ़ाने के लिए वो भी
चला एक साल।
उसकी पत्नी बोली कि आपके संग में भी जाऊंगी,
कांवड़ आपके साथ में जाकर
चढ़ाउंगी,
खुशियों में झूमते हुए वो दोनों चल पड़े,
भोले को जल चढाने के
लिए घर से निकल पड़े।
सुल्तान गंज में पहुचकर जहा से जल भरा जाता है,
गंगा के किनारे खुश होकर
देखने लगे मेले के नज़ारे,
पति बोला, आ रहा हूँ में स्नान कर अभी फिर पीछे तू
नहाना,
आ जाऊँ में जभी और कूद पड़ा गंगा जी में डुबकी लगाया,
फिर वो लौट
कर वहाँ वापस नही आया।
पत्नी को छोड़ अकेली गया संसार में,
वो बह गया श्री गंगा जी की बीच धार
में,
चारो तरफ में जैसे एक चीत्कार मच गया,
गंगा के किनारे में हाहाकार
मच गया,
पत्नी पछाड़ खाती थी रोती थी जार जार,
की भोले तूने लूट लिया,
मेरा सोने का संसार।
कावड़ चढ़ाने आये थे खुशियों में झूमते,
हे कावड़ चढ़ाने आये थे खुशियों में
झूमते,
पर लूट गई अब भोले जी मैं तेरे द्वार में,
लो संभालो...
लो
संभालो प्रभु अपनी कांवर,
लुट गई में अभागन यहाँ पे,
लुट गई
में अभागन यहाँ पे,
लुट गई में अभागन यहाँ पे।
लो संभालो...
लो संभालो भोले अपनी कांवर,
लुट गई में अभागन यहाँ
पे,
लुट गई में अभागन यहाँ पे।
हो लूट लिया...
लूट लिया तुमने मेरे सोने के संसार को,
कर दिया वीरान
महकते हुए गुलजार को,
कौन कह रहा है के तू दानी दयावान है,
दीन और
निर्बल पर सदा रहता मेहरबान है,
आज सभी बात तेरी मैंने लिया जान है,
बस
निर्दयी कठोर है पत्थर का तू भगवान है।
अरे उठ गया विश्वास मेरा आज तेरे नाम से,
क्या कहूँगी दुनिया को जा करके
तेरे धाम से,
मैं भी चली जाउंगी दुनिया से नाता तोड़कर,
अब यही मर
जाउंगी पत्थर से सर को फोड़ कर।
तब देख के उस दुखिया को सब लोग तरस खाते थे,
कोई देता था तसल्ली और कई
समझाते थे,
पर नही था उसको अपनी दीन और दुनिया का ख्याल,
फाड़ती थी तन
के कपड़े नोचती थी सर के बाल,
और फिर कभी कहती थी भोले झूठ तेरा नाम है,
दीन
और दुखियों के आता नही काम है।
ये लो संभालो...
ये लो संभालो प्रभु अपनी कांवर,
लुट गई में अभागन
यहाँ पे,
लुट गई में अभागन यहाँ पे।
लो संभालो भोले अपनी कांवर,
लुट गई में अभागन यहाँ पे,
लुट गई में
अभागन यहाँ पे।
पाँव में छाले पड़े कुम्भला,
(जो लोग कभी काँवड़ उठा के बाबा को जल चढ़ाने गए हैं, वो जानते हैं कि पैरों की
हालत क्या होती है। और ऐसे भी सच्चाई तो ये है)
इरादे सैकड़ो बनते है बनके टूट जाते है,
इरादे सैकड़ो बनते है बनके टूट
जाते है,
और वही कांवर वही उठाते है जिन्हें भोले बुलाते है।
पाँव में छाले पड़े कुम्भला गया कोमल बदन,
मारे भूख प्यास के होती थी कंठ में
जलन,
और बाल थे बिखरे हुए कपड़े बदन के तार तार,
राह में गिर पड़ती थी
बेहोश हो के बार बार,
तब देख के हाल एक संत को आयी दया,
और पानी पिला
करके पूछने लगे बेटी बता।
अरे हाल जरा अपना सुना दे यहाँ पे बैठकर,
किस लिए तू...
किस लिए
तू...
किस लिए तू फिर रही है मारी मारी दर बदर,
रो के वो कहने लगी बस
फूट गया भाग है,
आज इस दुनिया में लूट गया है सुहाग है।
संत बोले ,
संत बोले बेटी तू हिम्मत से जरा काम ले,
एक दफा भोले प्रभु
का प्रेम से तू नाम ले,
देते है सबको सहारा तू उन्ही को याद कर,
जो भी
तुझको कहना है चलके वही फरियाद कर।
वो चीख करके कहने लगी झूठा तेरा ज्ञान है,
इस जगत में कोई भी ईश्वर है ना
भगवान है,
मारने उस संत को पत्थर उठा आगे बड़ी,
और थरथराके इस तरह कहते
हुए वो गिर पड़ी।
ये लो संभालो...
ये लो संभालो भोले अपनी कांवर,
लुट गई में अभागन
यहाँ पे,
लुट गई में अभागन यहाँ पे।
हो लो संभालो प्रभू अपनी कांवर,
लुट गई में अभागन यहाँ पे,
लुट गई
में अभागन यहाँ पे।
फिर सैकड़ो हाँ........आ.... (आखिर उस पति पत्नी का मिलाप भोले के दरबार में कैसे हुआ और वो संत कौन थे)
फिर सैकड़ो कावड़ियो की कावड़ झपट तोड़ दी,
मार के पत्थर ना जाने कितनो के सर
फोड़ दी,
और पीछे पीछे पीछे... आ गई वो भोले जी द्वार में,
गिर पड़ी वो
ओंधे मुह शिव शम्भू के दरबार में,
और बोली चीख मारके क्या तू ही वो भगवान
है,
अरे कर दिया बगिया को मेरे तूने तो वीरान है।
क्या मिला ओ निर्दयी सुहाग मेरा लूटकर,
रोने लगी हिचकियाँ लेले के फूट-फूट
कर,
के है अगर भगवान तो क्यों सामने आता नही,
बिजली आसमान से क्यों
मुझपे गिराता नही,
और सर को पटकने लगी शिव लिंग पे वो बार बार,
बहने
लगी सर से उसके चारो तरफ खून की धार।
के आज,
अरे आज तो प्रीतम को अपने लेके में घर जाउंगी,
वरना तेरे धाम
में सर फोड़ के मर जाउंगी,
फिर हो गई बेहोश तो कुछ लोगे ने मिलकर उसे,
एक
जगह लिटा दिया मंदिर के ला बाहर उसे,
लोगो ने समझा ये किनारा जगत से कर
गई,
ये कौन थी बेचारी आज आके यहाँ मर गई।
फिर आई एक आवाज अरे भाग्यवान जरा आँख खोल,
फिर आई एक आवाज भाग्यवान जरा आँख
खोल,
प्रेम से शिव भोले जी के नाम की जयकार बोल,
अरे प्रेम से शिव भोले
जी के नाम की जयकार बोल।
वो चौंककर देखने को खोली जब अपनी नजर,
चौंककर देखने को खोली जब अपनी नजर,
उसके
पति ही की गोद में रखा था उसका सर,
बोली पति से लिपट ये कैसा चमत्कार है,
हंस
के पति बोला ये शिव भोले का दरबार है,
अरे सूखे हुए बाग़ हृदय के यही खिल
जाते है,
मुद्दतो से बिछड़े हुए भी यही मिल जाते है।
अरे मैं तो बह गया था, बह गया था, बह गया था...
बह गया था श्री गंगा जी की
धार में,
लोग कुछ नहा रहे थे घाट के उस पार में,
एक संत की पड़ी बहते
हुए मुझपे नज़र,
कहते है कुछ लोग वही लाया मुझे तैरकर।
होश में लाकर मुझे बतलाया वो तेरी खबर,
और बोला सीधे जा चला तू बाबा धाम की
डगर।
अरे पत्नी तेरी कर रही है बस तेरा ही इंतजार,
तेरी जुदाई में हो
गई है बेचारी बे हाल,
और बह रही थी सन्त के सर से,
खून की एक मोटी सी धार,
पूछा मेने संत से
ये देख करके बार बार,
क्या... हे बाबा, हे बाबा...
हे बाबा कैसे चोट
लगी है मुझे बताइये,
मुझसे कोई बात अपने दिल की ना छुपाइये।
वो संत बोले,
अरे मेरी एक बेटी है गुस्से में आज हारकर,
फोड़ दिया सर
मेरा पत्थर से मार मार कर,
और मुस्कुराके कहने लगे उसका ये उपहार है,
पर
मेरी पगली बेटी को मुझसे बड़ा ही प्यार है,
पर है बड़ी जिद्दी अभी दुनिया से
वो नादान है,
पर कुछ भी हो मैं हूँ पिता और वो मेरी संतान है,
पर कुछ
भी हो मैं हूँ पिता और वो मेरी संतान है,
तब तो वो घबरा गई सुनकर पति देव के
बयान को,
के नाथ में भी तो मार बैठी थी एक संत दयावान को।
और पत्नी बोली,
फिर पत्नी बोली नाथ अब कांवड़ अभी मंगाइये,
फिर पत्नी
बोली नाथ अब कांवड़ अभी मंगाइये,
और मेरे साथ भोले जी को चल के जल चढ़ाइये,
हाथ
में जल पात्र लिए जब दोनों आगे बढ़े,
देखा मुस्कुराते हुए संत को वहां
खड़े,
और देखके उनको वहां हो गए हैरान है,
क्या दिव्य रूप उनका है चेहरा
प्रकाशवान है।
फिर उन्हें दिखलाई पड़ा बहती है जटा से गंग,
और भोले बाबा थे खड़े हँसते हुए
गौरी के संग,
थामने को शिव चरण वो दोनों जब आगे बढ़े,
लोप हो गए भोले जी
शिव लिंग पे वो गिर पड़े,
तब रो के वो कहने लगे गलती क्षमा कर दीजिये,
आप
की शरण में है बाबा दया कर दीजिये,
धन्य है माया तेरी तू दानी दयावान है,
चरणों
में अपनाइये हम मूर्ख है नादान है।
ओ भोले तेरा भेद कोई पाया नही पार है,
पूजता है तुमको तभी सभी संसार है,
फिर
दोनों प्राणी भोले को कांवर चढ़ा हुए प्रसन्न,
फिर दोनों प्राणी भोले को
कांवर चढ़ा हुए प्रसन्न।
और गाने लगे...
ओए गाने लगे ‘शर्मा’ जल चढ़ा के प्रेम से भजन,
क्या...
ये
लो संभालो लो संभालो लो संभालो,
लो संभालो भोले अपनी कांवर,
बन गई मै
सुहागन यहाँ पे, बन गई मै सुहागन यहाँ पे,
यहाँ पे, यहाँ पे, बन गई मै
सुहागन यहाँ पे,
बन गई मै सुहागन यहाँ पे, बन गई मै सुहागन यहाँ पे॥