श्री सिद्धिविनायक आरती - जय देव जय देव (Shri Siddhivinayak Aarti-Jai Dev Jai Dev)

Shri Siddhivinayak Aarti-Jai Dev Jai Dev

मुंबई के प्रसिद्ध गणेश भगवान के मंदिर, श्री सिद्धिविनायक मंदिर में गाई जाने वाली आरती के लिरिक्स निम्न प्रकार से हैं। इसमें कई अन्य स्तुतियाँ भी सम्मिलित हैं। इसके अतिरिक्त श्री सिद्धिविनायक मंदिर काकड़ आरती भी विशेष है।

॥ॐ श्री गणेशाय नमः॥

मंत्र - वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
         निर्विघ्नं कुरुमे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

॥ आरती सिद्धिविनायकाची ॥

सच्चिद्धन चिंतामणि जय जय ओंकारा।
विष्णुमहेश्वरजनका जय विश्वधारा।
विद्याऽविद्यारमणा सच्चीत सुखसारा।
स्वानंदेशा भगवन दे चरणी थारा ॥१॥

जय जय देव जय मंगलमूर्ती॥
तब दर्शनमात्रें हो भक्तेक्षितपूर्ति ॥
जय देव जय देव॥

आद्य ब्रह्माधीशा योगिहृदरामा।
करुणापारा वारा हे मंगलधामा।
मत्सरमुखदनुजारे परिपूरित कामा।
स्वामिन विघ्नाधीशा दे निजसुख आम्हां॥२॥

जय जय देव जय मंगलमूर्ती॥
तब दर्शनमात्रें हो भक्तेक्षितपूर्ति ॥
जय देव जय देव॥

श्रीमन्मुद्द्गलशुकमुख दत्तादिक योगी॥
नारायण गिरिजाधव रविमुख स्वर्भोगी॥
तैसे सत रत तव पदकमली भोगी॥
भववैद्या शरणांकुशधारी भवरोगी॥३॥

जय जय देव जय मंगलमूर्ती॥
तब दर्शनमात्रें हो भक्तेक्षितपूर्ति ॥
जय देव जय देव॥

श्रीमदगणेश दक्षा दक्षांकिवास।
त्रिनयनशशिभालत्वही शितपित सुवास।
विद्याविद्या तुम ही तत्त्वं पदवास।
अंकुशधारी असिपति गणमय करियास॥४॥

जय देवी जय देवी सिद्धि दी माते।
द्वंवाभेदे आरती करतो तुम्हाते॥
जय देव जय देव॥

॥ गणपतीची आरती ॥

सुख करता दुखहर्ता, वार्ता विघ्नाची।
नूर्वी पूर्वी प्रेम कृपा जयाची।
सर्वांगी सुन्दर उटी शेंदु राची।
कंठी झलके माल मुकताफळांची।
जय देव जय देव॥

जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति।
दर्शनमात्रे मनः कामना पूर्ति॥
जय देव जय देव॥

रत्नखचित फरा तुझ गौरीकुमरा।
चंदनाची उटी कुमकुम केशरा।
हीरे जडित मुकुट शोभतो बरा।
रुन्झुनती नूपुरे चरनी घागरिया।
जय देव जय देव॥

जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति।
दर्शनमात्रे मनः कामना पूर्ति॥
जय देव जय देव॥

लम्बोदर पीताम्बर फनिवर वंदना।
सरल सोंड वक्रतुंडा त्रिनयना।
दास रामाचा वाट पाहे सदना।
संकटी पावावे निर्वाणी, रक्षावे सुरवर वंदना।
जय देव जय देव॥

जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति।
दर्शनमात्रे मनः कामना पूर्ति॥
जय देव जय देव॥

॥ घालीन लोटांगण आरती ॥

घालीन लोटांगण, वंदीन चरण।
डोळ्यानं पाहीन रूप तुझे। (देवा)
प्रेमे आलिंगीन, आनंदे पूजीन।
भावे ओवळींन म्हणे नामा॥ (देवा)

त्वमेव माता, पिता त्वमेव।
त्वमेव बंधुश्च, सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या, द्रविणम त्वमेव।
त्वमेव सर्वंमम देव-देव॥

कायेनवाचा मनसेंद्रीयेरवा,
बुद्धयात्मनावा प्रकृती स्वभावा।
करोमियज्ञम सकलम परस्मे,
नारायणायति समर्पयामि॥

अच्युतम, केशवम, रामनारायणम,
कृष्णदामोदरम, वासुदेवम हरि।
श्रीधरम माधवं गोपिकावल्लभम,
जानकीनायकम रामचंद्रभजे॥

हरे राम, हरे राम, राम-राम हरे-हरे,
हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, राधा-कृष्ण हरे-हरे।

हरे राम, हरे राम, राम-राम हरे-हरे,
हरे हरे कृष्ण, हरे हरे कृष्ण, राधा-कृष्ण हरे-हरे।

हरे राम, हरे राम, राम-राम हरे-हरे,
हरे हरे कृष्ण, हरे हरे कृष्ण, राधा-कृष्ण हरे-हरे।

हरे राम, हरे राम, राम-राम हरे-हरे,
हरे हरे कृष्ण, हरे हरे कृष्ण, राधा-कृष्ण हरे-हरे।

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