रवि प्रदोष व्रत कथा (Ravi Pradosh Vrat Katha)

Ravi Pradosh Vrat Katha

एक बार सभी प्राणियों के हित और मंगल के लिए ऋषि-मुनियों द्वारा पावन भागीरथी के तट पर विशाल गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें सभी ऋषि और सज्जन आमंत्रित थे। इस सभा में व्यास जी के परम प्रिय शिष्य पुराणवेत्ता सूतजी महाराज भी हरि कीर्तन करते हुए पधारे। सूत जी को सभी ऋषि-मुनियों ने प्रणाम किया और सम्मान से आसन पर बैठाया। महाज्ञानी सूत जी ने भी सभी ऋषियों को प्रणाम किया और शिष्यों को आशीर्वाद दिया। विद्वान ऋषिगण और सभी शिष्य आसन पर विराजमान हो गए और चर्चा शुरू हुई- 

रवि प्रदोष व्रत के बारे में शौनकादि ऋषि ने पूछा- "हे पूज्यवर महामते! कृपया यह बताने का कष्ट करें कि मंगलप्रद, कष्ट निवारक यह व्रत सबसे पहले किसने किया और उसे क्या फल प्राप्त हुआ?"

तब श्री सूतजी बोले- "आप सभी शिव के परम और अनन्य भक्त हैं, आपकी भक्ति को देखकर मैं व्रती मनुष्यों की कथा कहता हूं। ध्यान से सुनो।"

रवि प्रदोष व्रत कथा - Ravi Pradosh Vrat Katha

एक गांव में अति दीन ब्राह्मण निवास करता था। उसकी साध्वी स्त्री प्रदोष व्रत किया करती थी। उसे एक ही पुत्ररत्न था। एक समय की बात है, वह पुत्र गंगा स्नान करने के लिए गया। दुर्भाग्यवश मार्ग में चोरों ने उसे घेर लिया और वे कहने लगे कि हम तुम्हें मारेंगे नहीं, तुम अपने पिता के गुप्त धन के बारे में हमें बता दो।

बालक दीनभाव से कहने लगा कि बंधुओं! हम अत्यंत दु:खी दीन हैं। हमारे पास धन कहां है? तब चोरों ने कहा कि तेरे इस पोटली में क्या बंधा है? बालक ने नि:संकोच कहा कि मेरी मां ने रास्ते में खाने के लिए लिए रोटियां दी हैं। 

यह सुनकर चोरों ने अपने साथियों से कहा कि साथियों! यह बहुत ही दीन-दु:खी मनुष्य है, अत: हम किसी और को लूटेंगे। इतना कहकर चोरों ने उस बालक को जाने दिया। 

बालक वहां से चलते हुए एक नगर में पहुंचा। नगर के पास एक बरगद का पेड़ था। वह बालक उसी बरगद के वृक्ष की छाया में सो गया। उसी समय उस नगर के सिपाही चोरों को खोजते हुए उस बरगद के वृक्ष के पास पहुंचे और बालक को चोर समझकर बंदी बना राजा के पास ले गए। राजा ने उसे कारावास में बंद करने का आदेश दे दिया।

ब्राह्मणी का लड़का जब घर नहीं लौटा, तब ब्राह्मणी माँ को अपने पुत्र की बड़ी चिंता हुई। अगले दिन प्रदोष व्रत था। ब्राह्मणी ने प्रदोष व्रत किया और भगवान शंकर से मन-ही-मन अपने पुत्र की कुशलता की प्रार्थना करने लगी।

भगवान शंकर ने उस ब्राह्मणी की प्रार्थना स्वीकार कर ली। उसी रात भगवान शंकर ने उस राजा को स्वप्न में आदेश दिया कि वह बालक चोर नहीं है, उसे प्रात:काल छोड़ दें अन्यथा उसका सारा राज्य-वैभव नष्ट हो जाएगा।

प्रात:काल राजा ने शिवजी की आज्ञानुसार उस बालक को कारावास से मुक्त कर दिया। बालक ने अपनी सारी कहानी राजा को सुनाई। 

सारा वृत्तांत सुनकर राजा ने अपने सिपाहियों को उस बालक के घर भेजा और उसके माता-पिता को राज-दरबार में बुलाया। बालक के माता-पिता बहुत ही भयभीत थे। राजा ने उन्हें भयभीत देखकर कहा कि आप भयभीत न हो। आपका बालक निर्दोष है। राजा ने ब्राह्मण को पांच गांव दान में दिए जिससे कि वे सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर सकें। 

भगवान शिव की कृपा से ब्राह्मण परिवार की दरिद्रता दूर हो गई और वह आनंद से रहने लगे। अत: जो मनुष्य रवि प्रदोष व्रत को करता है, वह सुखपूर्वक और निरोगी होकर अपना पूर्ण जीवन व्यतीत करता है तथा उसके जीवन में सुख और समृद्धि आती है। 

✾ प्रदोष व्रत, प्रत्येक महीने के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथियों को रखा जाता है। जब यह प्रदोष व्रत रविवार के दिन पड़ता है तो इसे रवि प्रदोष व्रत (Ravi Pradosh Vrat) नाम दे दिया जाता है।

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