ऋषि पंचमी व्रत कथा (Rishi Panchami Vrat Katha)
ऋषि पंचमी में सप्त ऋषियों की पूजा की जाती है, इस व्रत और पूजा को मुख्यतः महिलाएं करती है। इस व्रत को करने से सभी जाने और अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिलती है। ऋषि पंचमी के दिन पूजा में महिलाओं को निम्न व्रत कथा का पाठ करना चाहिए।
ऋषि पंचमी की कथा (Rishi Panchami Ki Katha)
सिताश्व नामक एक राजा थे, उन्होने एक बार ब्रह्मा जी से पूछा -- "पितामह! सब व्रतों में श्रेष्ठ और तुरंत फल दायक व्रत का विधान बताइये?"
ब्रह्मा जी ने उत्तर देते हुये बताया, "राजन! ऋषि पंचमी का व्रत ऐसा ही है, इसके करने से जाने अनजाने में किए सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।"
विदर्भ देश में उत्तंक नामक एक सदाचारी ब्राह्मण देव रहते थे। उनकी पत्नी बड़ी पतिव्रता थी, जिसका नाम सुशीला था। उन ब्राह्मण के एक पुत्र तथा एक पुत्री दो संतान थी। विवाह योग्य होने पर उन्होने समान कुलशील वर के साथ कन्या का विवाह कर दिया। दैवयोग से कुछ दिनों बाद वह विधवा हो गई।
दुःखी ब्राह्मण दम्पति कन्या सहित गंगा तट पर कुटिया बनाकर रहने लगे। एक दिन ब्राह्मण कन्या सो रही थी कि उसका शरीर कीड़ों से भर गया। कन्या ने सारी बात माँ से कही। माँ ने पति से सब कहते हुए पूछा- "प्राणनाथ! मेरी साध्वी कन्या की यह गति होने का क्या कारण है?"
उत्तंक जी ने समाधि द्वारा इस घटना का पता लगाकर बताया- पूर्व जन्म में भी यह कन्या ब्राह्मणी थी। इसने रजस्वला होते ही बर्तन छू दिए थे। इस जन्म में भी इसने लोगों की देखा-देखी भाद्रपद शुक्ल पंचमी अर्थात ऋषि पंचमी का व्रत नहीं किया। इसलिए इसके शरीर में कीड़े पड़े हैं।
धर्म-शास्त्रों की मान्यता है कि रजस्वला स्त्री पहले दिन चाण्डालिनी, दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी तथा तीसरे दिन धोबिन के समान अपवित्र होती है। वह चौथे दिन स्नान करके शुद्ध होती है। यदि यह शुद्ध मन से अब भी ऋषि पंचमी का व्रत करें तो इसके सारे दुःख दूर हो जाएंगे और अगले जन्म में अटल सौभाग्य प्राप्त करेगी।
पिता की आज्ञा से पुत्री ने विधिपूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत एवं पूजन किया। व्रत के प्रभाव से वह सारे दुःखों से मुक्त हो गई। अगले जन्म में उसे अटल सौभाग्य सहित अक्षय सुखों का भोग मिला।