अन्नपूर्णा स्तोत्रम् - नित्यानन्दकरी वराभयकरी (Annapurna Stotram - Nityanandakari Varabhayakari)
नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौन्दर्यरत्नाकरी
निर्धूताखिलघोरपावनकरी
प्रत्यक्षमाहेश्वरी।
प्रालेयाचलवंशपावनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां
देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥१॥
नानारत्नविचित्रभूषणकरी हेमाम्बराडम्बरी
मुक्ताहारविलम्बमानविलसद्वक्षोजकुम्भान्तरी।
काश्मीरागरुवासिताङ्गरुचिरा
काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥२॥
योगानन्दकरी रिपुक्षयकरी धर्मार्थनिष्ठाकरी
चन्द्रार्कानलभासमानलहरी
त्रैलोक्यरक्षाकरी।
सर्वैश्वर्यसमस्तवाञ्छितकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां
देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥३॥
कैलासाचलकन्दरालयकरी गौरी उमा शङ्करी
कौमारी निगमार्थगोचरकरी
ओङ्कारबीजाक्षरी।
मोक्षद्वारकपाटपाटनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि
कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥४॥
दृश्यादृश्यविभूतिवाहनकरी ब्रह्माण्डभाण्डोदरी
लीलानाटकसूत्रभेदनकरी
विज्ञानदीपाङ्कुरी।
श्रीविश्वेशमनःप्रसादनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां
देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥५॥
उर्वीसर्वजनेश्वरी भगवती मातान्नपूर्णेश्वरी
वेणीनीलसमानकुन्तलहरी
नित्यान्नदानेश्वरी।
सर्वानन्दकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां
देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥६॥
आदिक्षान्तसमस्तवर्णनकरी शम्भोस्त्रिभावाकरी
काश्मीरात्रिजलेश्वरी त्रिलहरी
नित्याङ्कुरा शर्वरी।
कामाकाङ्क्षकरी जनोदयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां
देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥७॥
देवी सर्वविचित्ररत्नरचिता दाक्षायणी सुन्दरी
वामे स्वादुपयोधराप्रियकरी
सौभाग्यमाहेश्वरी।
भक्ताभीष्टकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां
देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥८॥
चन्द्रार्कानलकोटिकोटिसदृशा चन्द्रांशुबिम्बाधरी
चन्द्रार्काग्निसमानकुण्डलधरी
चन्द्रार्कवर्णेश्वरी।
मालापुस्तकपाशसाङ्कुशधरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां
देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥९॥
क्षत्रत्राणकरी महाऽभयकरी माता कृपासागरी
साक्षान्मोक्षकरी सदा शिवकरी
विश्वेश्वरश्रीधरी।
दक्षाक्रन्दकरी निरामयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां
देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥१०॥
अन्नपूर्णे सदापूर्णे शङ्करप्राणवल्लभे।
ज्ञानवैराग्यसिद्ध्यर्थं भिक्षां
देहि च पार्वति॥११॥
माता च पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः।
बान्धवाः शिवभक्ताश्च स्वदेशो
भुवनत्रयम्॥१२॥
- श्री शङ्कराचार्य कृतं
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हिन्दी अर्थ
अन्नपूर्णा स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित
नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौन्दर्यरत्नाकरी
निर्धूताखिलघोरपावनकरी
प्रत्यक्षमाहेश्वरी।
प्रालेयाचलवंशपावनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां
देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥१॥
हे देवी अन्नपूर्णा! आप सदैव सबका आनंद बढ़ाया करती हो, आपने अपने हाथ में वर तथा अभय मुद्रा धारण की है, आप ही सौंदर्य रूप रत्नों की खान हो, आप ही भक्तगणों के समस्त पाप विनाश करके उनको पवित्र करती हो। आप साक्षात माहेश्वरी हो और अपने ही हिमालय का वंश पवित्र किया है, आप काशीपुरी की अधीश्वरी देवी हो, आप अन्नपूर्णेश्वरी और जगत की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो।
नानारत्नविचित्रभूषणकरी हेमाम्बराडम्बरी
मुक्ताहारविलम्बमानविलसद्वक्षोजकुम्भान्तरी।
काश्मीरागरुवासिताङ्गरुचिरा
काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥२॥
हे देवी अन्नपूर्णा! आप अनेक प्रकार के विचित्र रत्नों से जुड़े हुए आभूषण धारण करती हो, आप ही ने स्वर्ण रचित वस्त्र पहन करके मुक्तामय हार द्वारा दोनों स्तन सुशोभित किए हैं, सारे शरीर पर कुमकुम और अगर का लेपन करके अपनी शोभा बढ़ाई है। आप काशीपुरी की अधीश्वरी देवी हो आप ही अन्नपूर्णेश्वरी और जगत की माता हो, हे भगवती अन्नपूर्णा, आप कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो।
योगानन्दकरी रिपुक्षयकरी धर्मार्थनिष्ठाकरी
चन्द्रार्कानलभासमानलहरी
त्रैलोक्यरक्षाकरी।
सर्वैश्वर्यसमस्तवाञ्छितकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां
देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥३॥
हे देवी आप योगी जनों को आनंद प्रदान करती हो, आप ही भक्तगणों के शत्रुओं का विनाश करती हो। आप ही धर्मार्थ साधन में प्रीति बढ़ाती हो। आपने ही चंद्र, सूर्य और अग्नि की आभा धारण कर रखी है, आप ही तीनों भुवनों की रक्षा करती हो, आपके भक्तगण जो इच्छा करते हैं आप उनका वही सब ऐश्वर्य प्रदान करती हो। हे माता भगवती अन्नपूर्णा! आप काशीपुरी की अधीश्वरी देवी और जगत की माता हो, कृपा करके मुझे भिक्षा प्रदान करो।
कैलासाचलकन्दरालयकरी गौरी उमा शङ्करी
कौमारी निगमार्थगोचरकरी
ओङ्कारबीजाक्षरी।
मोक्षद्वारकपाटपाटनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि
कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥४॥
हे अन्नपूर्णा! आप ही ने कैलाश पर्वत की कंदरा में अपना निवास स्थापित किया है। हे माता आप ही गौरी, आप ही उमा और आप ही शंकरी हो, आप ही कौमारी हो। वेद के गूढ़ अर्थ को बताने वाली हो, आप ही बीज मंत्र ओंकार की देवी हो और आप मोक्ष-द्वार के दरवाजे खोलती हो, आप काशीपुरी की अधीश्वरी देवी और जगत की माता हो, हे जननी भगवती अन्नपूर्णा कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो।
दृश्यादृश्यविभूतिवाहनकरी ब्रह्माण्डभाण्डोदरी
लीलानाटकसूत्रभेदनकरी
विज्ञानदीपाङ्कुरी।
श्रीविश्वेशमनःप्रसादनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां
देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥५॥
हे देवी आप ही स्थूल और सूक्ष्म समस्त जीवों को पवित्रता प्रदान करती हो। यह ब्रह्मांड आपके ही उदर में स्थित है, आपकी लीला में संपूर्ण जीव अपना-अपना कार्य करते हैं, आप ही ज्ञानरूप प्रदीप का स्वरूप हो आप ही श्री विश्वनाथ का संतोषवर्धन करती हो, हे माता अन्नपूर्णेश्वरी! आप काशीपुरी की अधीश्वरी देवी और जगत की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो।
उर्वीसर्वजनेश्वरी भगवती मातान्नपूर्णेश्वरी
वेणीनीलसमानकुन्तलहरी
नित्यान्नदानेश्वरी।
सर्वानन्दकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां
देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥६॥
हे अन्नपूर्णा! आप पृथ्वी मंडल स्थित जनसमूह की ईश्वरी हो, आप षडैश्वर्यशालिनी हो, आप ही जगत की माता हो, आप सबको अन्न प्रदान करती हो, आपके नील वर्ण केश वेणी रूप से शोभा पाते हैं, आप ही प्रानीगण को नित्य अन्न प्रदान करती हो और आप ही लोगों को अवस्था की उन्नति प्रदान करती हो, हे माता! आप ही काशीपुरी की अधीश्वरी देवी और जगत की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो।
आदिक्षान्तसमस्तवर्णनकरी शम्भोस्त्रिभावाकरी
काश्मीरात्रिजलेश्वरी त्रिलहरी
नित्याङ्कुरा शर्वरी।
कामाकाङ्क्षकरी जनोदयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां
देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥७॥
हे देवी अन्नपूर्णा! लोग तंत्रविद्या में दीक्षित होकर जो कुछ शिक्षा करते हैं वह आप ही ने वर्णन करके उपदेश प्रदान किया है आप ही ने सदा शिव के तीनों भाव (सत्, रज, तम) का विधान किया है, आप ही कश्मीर वासिनी शारदा, अंबा, भगवती हो, आप ही स्वर्ग, मृत्यु और पाताल इन तीनों लोकों में ईश्वरी रूप में विद्यमान रहती हो। आप गंगा यमुना और सरस्वती इन तीन रूपों से पृथ्वी में प्रवाहित रहती हो। नित्य वस्तु भी सब आप ही से अंकुरित होती हैं, आप ही शर्वरी (रात्रि) के समान चित्त के सभी व्यापारों को शांत करने वाली हो, आप ही सकाम भक्तों को इच्छा अनुसार फल प्रदान करती हो और आप ही सभी जनों का उन्नति साधन करती हो। हे जननी! केवल आप ही काशीपुरी की अधीश्वरी देवी और जगत की माता हो, हे माता अन्नपूर्णेश्वरी! आप कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो।
देवी सर्वविचित्ररत्नरचिता दाक्षायणी सुन्दरी
वामे स्वादुपयोधराप्रियकरी
सौभाग्यमाहेश्वरी।
भक्ताभीष्टकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां
देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥८॥
हे देवी! आप सर्वप्रकार के विचित्र रत्नों से विभूषित हो, आप ही दक्षराज के गृह में पुत्री रूप से प्रकट हुई थी, आप ही केवल, जगत की सुंदरी हो, आप ही ने अपने सुस्वादु पयोधर प्रदान करके जगत का प्रिय कार्य करती हो। आप सबको सौभाग्य प्रदान करके माहेश्वरी रूप में विदित हुई हो। तुम ही भक्तगणों को वांछित फल प्रदान करती हो और उनकी बुरी अवस्था को शुभ रूप में बदल देती हो। हे माता! केवल आप ही काशीपुरी की अधीश्वरी देवी हो आप ही अन्नपूर्णेश्वरी और जगत की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो।
चन्द्रार्कानलकोटिकोटिसदृशा चन्द्रांशुबिम्बाधरी
चन्द्रार्काग्निसमानकुण्डलधरी
चन्द्रार्कवर्णेश्वरी।
मालापुस्तकपाशसाङ्कुशधरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां
देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥९॥
हे देवी! आप कोटि-कोटि चंद्र, सूर्य और अग्नि के समान उज्जवल प्रभाशालनी हो, आप चंद्र किरणों के तथा बिम्ब फल के समान अधरों से युक्त हो, आप ही चंद्र, सूर्य और अग्नि के समान उज्जवल कुंडल धारिणी हो, आपने ही चंद्र, सूर्य के समान वर्ण धारण किया है, हे माता! आप ही चतुर्भुज हो, अपने चारों हाथों में माला, पुस्तक, पाश और अंकुश धारण किया है, हे अन्नपूर्णा, आप काशीपुरी की अधीश्वरी देवी और जगत की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो।
क्षत्रत्राणकरी महाऽभयकरी माता कृपासागरी
साक्षान्मोक्षकरी सदा शिवकरी
विश्वेश्वरश्रीधरी।
दक्षाक्रन्दकरी निरामयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां
देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥१०॥
हे माता अन्नपूर्णा! आप क्षत्रियों की रक्षा करती हो, आप सबको अभय प्रदान करती हो, प्राणियों की माता हो, आप कृपा का सागर हो, आप ही भक्तगणों को मोक्ष प्रदान करती हो, और सर्वदा सभी का कल्याण करती हो, हे माता! आप ही विश्वेश्वरी हो, आप ही संपूर्ण श्री को धारण करती हो, हे अन्नपूर्णा! आप ही काशीपुरी की अधीश्वरी और जगत की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो।
अन्नपूर्णे सदापूर्णे शङ्करप्राणवल्लभे।
ज्ञानवैराग्यसिद्ध्यर्थं भिक्षां
देहि च पार्वति॥११॥
हे अन्नपूर्णा! आप सर्वदा पूर्ण रूप से हो, आप ही महादेव के प्राणों के समान प्रिय पत्नी पार्वती हो, आप ही ज्ञान और वैराग्य की सिद्धि के निमित्त दीक्षा प्रदान करो, जिसके द्वारा मैं संसार से प्रीति त्याग कर, मुक्ति प्राप्त कर सकूं, मुझको यही भिक्षा प्रदान करो।
माता च पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः।
बान्धवाः शिवभक्ताश्च स्वदेशो
भुवनत्रयम्॥१२॥
हे जननी पार्वती देवी मेरी माता, देवाधिदेव महेश्वर मेरे पिता, शिव भक्तगण मेरे बांधव और तीनों भुवन मेरा स्वदेश है, इस प्रकार का ज्ञान सदा मेरे मन में विद्यमान रहे, यही प्रार्थना है।