श्री दामोदर अष्टकम (Shri Damodar Ashtakam)

श्री दामोदर अष्टकम (Shri Damodar Ashtakam with Lyrics and Meaning)

पावन कार्तिक मास में वैष्णव व भगवान श्री कृष्ण के अन्य भक्तों के द्वारा भी दामोदर अष्टकम का गायन और श्रवण किया जाता है। इस्कॉन के अनुयायी सभी प्रमुख उत्सवों पर इसका पाठ अवश्य करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के प्रिय कार्तिक मास में मुनि सत्यव्रत द्वारा रचित दामोदर अष्टकम का पाठ करने से असीम कृपा प्राप्त होती है।

श्री दामोदर अष्टकम

नमामीश्वरं सच्चिदानंदरूपं
लसत्कुण्डलं गोकुले भ्राजमानम्‌।
यशोदाभियोलूखलाद्धावमानं
परामृष्टमत्यं ततो द्रुत्य गोप्या॥१॥

रुदन्तं मुहुर्नेत्रयुग्मं मृजन्तं
कराम्भोज-युग्मेन सातङ्कनेत्रम्।
मुहुःश्वास कम्प-त्रिरेखाङ्ककण्ठ
स्थित ग्रैव-दामोदरं भक्तिबद्धम्॥२॥

इतीद्दक्‌स्वलीलाभिरानंद कुण्डे
स्वघोषं निमज्जन्तमाख्यापयन्तम्।
तदीयेशितज्ञेषु भक्तैर्जितत्वं
पुनः प्रेमतस्तं शतावृत्ति वन्दे॥३॥

वरं देव! मोक्षं न मोक्षावधिं वा
न चान्यं वृणेऽहं वरेशादपीह।
इदं ते वपुर्नाथ गोपाल बालं
सदा मे मनस्याविरस्तां किमन्यैः?॥४॥

इदं ते मुखाम्भोजमत्यन्तनीलै-
र्वृतं कुन्तलैः स्निग्ध-रक्तैश्च गौप्या।
मुहुश्चुम्बितं बिम्बरक्ताधरं मे
मनस्याविरस्तामलं लक्षलाभैः॥५॥

नमो देव दामोदरानन्त विष्णो!
प्रसीद प्रभो! दुःख जालाब्धिमग्नम्।
कृपाद्दष्टि-वृष्टयातिदीनं बतानु
गृहाणेश मामज्ञमेध्यक्षिदृश्यः॥६॥

कुबेरात्मजौ बद्धमूर्त्यैव यद्वत्‌
त्वया मोचितौ भक्तिभाजौकृतौ च।
तथा प्रेमभक्तिं स्वकां मे प्रयच्छ
न मोक्षे गृहो मेऽस्ति दामोदरेह॥७॥

नमस्तेऽस्तु दाम्ने स्फुरद्दीप्तिधाम्ने
त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने।
नमो राधिकायै त्वदीय-प्रियायै
नमोऽनन्त लीलाय देवाय तुभ्यम्॥८॥

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Damodarastakam By Madhvi Madhukar jha
Srimathumitha
Damodar Ashtakam with Lyrics and Meaning

हिन्दी अर्थ

दामोदर अष्टकम हिन्दी अर्थ सहित

नमामीश्वरं सच्चिदानंदरूपं
लसत्कुण्डलं गोकुले भ्राजमानम्‌।
यशोदाभियोलूखलाद्धावमानं
परामृष्टमत्यं ततो द्रुत्य गोप्या॥१॥

जिनका सर्वेश्वर सच्चिदानंद स्वरूप है, जिनके कपोलों पर मकराकृत कुंडल हिल-डुल रहे हैं, जो गोकुल नामक दिव्य धाम में परम शोभायमान हैं, जो (दधिभाण्ड फोड़ने के कारण) माँ यशोदा के डर से ऊखल से दूर दौड़ रहे हैं किन्तु जिन्हें माँ यशोदा ने उनसे भी अधिक तेज दौड़कर पकड़ लिया है- ऐसे भगवान दामोदर को मैं अपना विनम्र प्रणाम अर्पित करता हूँ।

रुदन्तं मुहुर्नेत्रयुग्मं मृजन्तं
कराम्भोज-युग्मेन सातङ्कनेत्रम्।
मुहुःश्वास कम्प-त्रिरेखाङ्ककण्ठ
स्थित ग्रैव-दामोदरं भक्तिबद्धम्॥२॥

(माँ के हाथ में लाठी देखकर) वे रोते-रोते बारम्बार अपनी आँखों को अपने दोनों हस्तकमलों से मसल रहे हैं। उनके नेत्र भय से विह्वल हैं, रूदन के आवेग से सिसकियाँ लेने के कारण उनके त्रिरेखायुक्त कण्ठ में पड़ी हुई मोतियों की माला कम्पित हो रही है। उन परमेश्वर भगवान दामोदर का, जिनका उदर रस्सियों से नहीं अपितु यशोदा माँ के वात्सल्य-प्रेम से बंधा है, मैं प्रणाम करता हूँ। 

इतीद्दक्‌स्वलीलाभिरानंद कुण्डे
स्वघोषं निमज्जन्तमाख्यापयन्तम्।
तदीयेशितज्ञेषु भक्तैर्जितत्वं
पुनः प्रेमतस्तं शतावृत्ति वन्दे॥३॥

जो ऐसी बाल्य-लीलाओं के द्वारा गोकुलवासियों को आनन्द-सरोवरों में डुबोते रहते हैं, और अपने ऐश्वर्य-ज्ञान में मग्न अपने भावों के प्रति यह तथ्य प्रकाशित करते हैं कि उन्हें भय-आदर की धारणाओं से मुक्त अंतरंग प्रेमी भक्तों द्वारा ही जीता जा सकता है, उन भगवान दामोदर को मं कोटि-कोटि प्रणाम करता हूँ।

वरं देव! मोक्षं न मोक्षावधिं वा
न चान्यं वृणेऽहं वरेशादपीह।
इदं ते वपुर्नाथ गोपाल बालं
सदा मे मनस्याविरस्तां किमन्यैः?॥४॥

हे प्रभु, यद्यपि आप हर प्रकार के वर देने में समर्थ हैं, तथापि मैं आपसे न तो मोक्ष अथवा मोक्ष के चरम सीमारूप वैकुण्ठ में शाश्वत जीवन और ही (नवधा भक्ति द्वारा प्राप्त) कोई अन्य वरदान माँगता हूँ। हे नाथ! मेरी तो बस इतनी ही इच्छा है कि आपका यह वृंदावन का बालगोपाल रूप मेरे हृदय में सदा प्रकाशित रहे, क्योंकि इसके सिवा मुझे किसी अन्य वरदान से प्रयोजन ही क्या है? 

इदं ते मुखाम्भोजमत्यन्तनीलै-
र्वृतं कुन्तलैः स्निग्ध-रक्तैश्च गौप्या।
मुहुश्चुम्बितं बिम्बरक्ताधरं मे
मनस्याविरस्तामलं लक्षलाभैः॥५॥

हे प्रभु! लालिमायुक्त कोमल श्यामवर्ण के घुँघराले बालों से घिरा हुआ आपका मुखकमल माँ यशोदा के द्वारा बारंबार चुम्बित हो रहा है और आपके होंठ बिम्बफल की भांति लाल हैं। आपके मुखमंडल का यह सुन्दर दृश्य मेरे हृदय में सदा विराजित रहे। मुझे लाखों प्रकार के दूसरे लाभों की कोई आवश्यकता नहीं।

नमो देव दामोदरानन्त विष्णो!
प्रसीद प्रभो! दुःख जालाब्धिमग्नम्।
कृपाद्दष्टि-वृष्टयातिदीनं बतानु
गृहाणेश मामज्ञमेध्यक्षिदृश्यः॥६॥

हे भगवान्‌, मैं आपको प्रणाम करता हूँ। हे दामोदर, हे अनंत, हे विष्णु, हे नाथ, मेरे प्रभु, मुझ पर प्रसन्न हो जाइये! मैं दुःखों के सागर में डूबा जा रहा हूँ। मेरे ऊपर अपनी कृपादृष्टि की वर्षा करके मुझ दीन-हीन शरणागत का उद्वार कीजिए और मेरे नेत्रों के समक्ष प्रकट हो जाइये।

कुबेरात्मजौ बद्धमूर्त्यैव यद्वत्‌
त्वया मोचितौ भक्तिभाजौकृतौ च।
तथा प्रेमभक्तिं स्वकां मे प्रयच्छ
न मोक्षे गृहो मेऽस्ति दामोदरेह॥७॥

हे भगवान! दामोदर, जिस प्रकार आपने दामोदर रूप से नलकूबर और मणिग्रीव नामक कुबेरपुत्रों को नारद जी के शाप से मुक्तकर उन्हें अपना महान भक्त बना लिया था, उसी प्रकार मुझे भी आप अपनी प्रेम भक्ति प्रदान कर दीजिए। यही मेरा एकमात्र आग्रह है मुझे किसी भी प्रकार के मोक्ष की कोई इच्छा नहीं है।

नमस्तेऽस्तु दाम्ने स्फुरद्दीप्तिधाम्ने
त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने।
नमो राधिकायै त्वदीय-प्रियायै
नमोऽनन्त लीलाय देवाय तुभ्यम्॥८॥

हे भगवान्‌ दामोदर, मैं सर्वप्रथम आपके उदर को बाँधने वाली दीप्तिमान रस्सी को प्रणाम करता हूँ। आपकी प्रियतमा श्रीमती राधारानी के चरणों में मेरा सादर प्रणाम है, और अनंत लीलायें करने वाले आप परमेश्वर को मेरा प्रणाम है।

दामोदर अष्टकम किसने लिखा है?

दामोदर अष्टकम पद्म पुराण का अंश है, जो सत्यव्रत मुनि के द्वारा रचित है। दामोदर अष्टकम मुनि सत्यव्रत द्वारा कहा गया और वेदव्यास जी ने इसे लिपिबद्ध किया है।

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