श्री मयूरेश्वर स्तोत्रम - परब्रह्मरूपं चिदानन्दरूपं (Shri Mayureshwar Stotram)
श्री मयूरेश्वर स्तोत्रम
परब्रह्मरूपं चिदानन्दरूपं
परेशं सुरेशं गुणाब्धिं गुणेशम्।
गुणातीतमीशं
मयूरेशवन्द्यं गणेशं
नता: स्मो नता: स्मो नता: स्म:॥१॥
जगद्वन्द्यमेकं पराकारमेकं
गुणानां परं कारणं निर्विकल्पम्।
जगत्पालकं
हारकं तारकं तं
मयूरेशवन्द्यं नता: स्मो नता: स्म:॥२॥
महादेवसूनुं महादैत्यनाशं
महापूरुषं सर्वदा विघ्ननाशम्।
सदा
भक्तपोषं परं ज्ञानकोषं
मयूरेशवन्द्यं नता: स्मो नता: स्म:॥३॥
अनादिं गुणादिं सुरादिं शिवाया
महातोषदं सर्वदा सर्ववन्द्यम।
सुरार्यन्तकं
भुक्तिमुक्तिप्रदं तं
मयूरेशवन्द्यं नता: स्मो नता: स्म:॥४॥
परं मायिनं मायिनामप्यगम्यं
मुनिध्येयमाकाशकल्पं जनेशम्।
असंख्यावतारं
निजाज्ञाननाशं
मयूरेशवन्द्यं नता: स्मो नता: स्म:॥५॥
अनेकक्रियाकारकं श्रुत्यगम्यं
त्रयीबोधितानेककर्मादिबीजम्।
क्रियासिद्धिहेतुं सुरेन्द्रादिसेव्यं
मयूरेशवन्द्यं नता: स्मो नता:
स्म:॥६॥
महाकालरूपं निमेषादिरूपं
कलाकल्परूपं सदागम्यरूपम्।
जनज्ञानहेतुं
नृणां सिद्धिदं तं
मयूरेशवन्द्यं नता: स्मो नता: स्म:॥७॥
महेशादिदेवै: सदा ध्येयपादं
सदा रक्षकं तत्पदानां हतारिम्।
मुदा
कामरूपं कृपावारिधिं तं
मयूरेशवन्द्यं नता: स्मो नता: स्म:॥८॥
सदा भक्तिं नाथे प्रणयपरमानन्दसुखदो
यतस्त्वं लोकानां परमकरुणामाशु
तनुषे।
षडूर्मीनां वेगं सुरवर विनाशं नय विभो
ततो भक्ति: श्रल्ग्या तव
भजनतोऽनन्यसुखदा ॥९॥
किमस्माभि: स्तोत्रं गजवदन ते शक्यमतुलं
विधातुं वा रम्यं गुणनिधिरसि प्रेम
जगताम।
न चास्माकं शक्तिस्तव गुणगणं वर्णितुमहो
त्वदियोअयं
वारांनिधिरिव जगत्सर्जनविधिः ॥१०॥
मयूरेशं नमस्कृत्य ततो देवोऽब्रविंच तान्।
य इदं पठते स्तोत्रं स
कामाँल्लभतेऽखिलान्॥११॥
सर्वत्र जयमाप्रोति मानमायु: श्रियं परम्।
पुत्रवान् धनसम्पन्नो वश्यतामखिलं
नयेत्॥१२॥
सहस्त्रावर्तनात्काराग्रह्स्थं मोचयेज्जनम्।
नियुतावर्तनान्मर्योऽसाध्यं
यत्सायेत्क्षणात्॥१३॥
॥ इति श्रीगणेशपुराणे श्रीमयूरेश्वरस्तोत्रं सम्पूर्णं ॥
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हिन्दी अर्थ
मयूरेश्वर स्तोत्रम हिन्दी अर्थ सहित
परब्रह्मरूपं चिदानन्दरूपं
परेशं सुरेशं गुणाब्धिं गुणेशम्।
गुणातीतमीशं
मयूरेशवन्द्यं गणेशं
नता: स्मो नता: स्मो नता: स्म:॥१॥
जो परब्रहमरूप हैं, चिदानन्दस्वरूप (ज्ञान व सुखस्वरूप) हैं, जो सर्वश्रेस्ठ देवों के देव हैं, जो गुणों के सागर, गुणधीश, गुणातीत, परमेश्वर स्वरूप हैं, उन वंदनीय मयूरेश्वर श्रीगणेशजी को नतमस्तक होकर बारंबार नमस्कार करते हैं।
जगद्वन्द्यमेकं पराकारमेकं
गुणानां परं कारणं निर्विकल्पम्।
जगत्पालकं
हारकं तारकं तं
मयूरेशवन्द्यं नता: स्मो नता: स्म:॥२॥
जो जगत में एकमात्र पूजनीय हैं, साकार मूर्ति (सगुण रूप) हैं, त्रिगुण के मूल कारण हैं, जो निर्विकार हैं, जगत पालनकर्ता, विघ्न्हर्ता, भव सागर से पार लगाने वाले हैं, उन वंदनीय मयूरेश्वर श्री गणेश जी को नतमस्तक होकर बारंबार नमस्कार करते हैं।
महादेवसूनुं महादैत्यनाशं
महापूरुषं सर्वदा विघ्ननाशम्।
सदा
भक्तपोषं परं ज्ञानकोषं
मयूरेशवन्द्यं नता: स्मो नता: स्म:॥३॥
जो शंकर जी के पुत्र हैं, महादैत्य का नाश करने वाले हैं, महापुरुषों के विघ्नों का सदैव नाश करने वाले हैं, भक्तों की सदा रक्षा करने वाले हैं, जो ज्ञान के भंडार हैं, उन वंदनीय मयूरेश्वर श्री गणेश जी को नतमस्तक होकर बारंबार नमस्कार करते हैं।
अनादिं गुणादिं सुरादिं शिवाया
महातोषदं सर्वदा सर्ववन्द्यम।
सुरार्यन्तकं
भुक्तिमुक्तिप्रदं तं
मयूरेशवन्द्यं नता: स्मो नता: स्म:॥४॥
जो अनादि हैं, त्रिगुणों के आदि कारण हैं, देवताओं के अग्रभाग हैं, माँ पार्वती को आनंद देने वाले हैं, जो सदैव सर्वजनों द्वारा वंदनीय हैं, असुरों का नाश करने वाले हैं, भोग और मुक्ति प्रदान करने वाले हैं, उन वंदनीय मयूरेश्वर श्री गणेश जी को नतमस्तक होकर बारंबार नमस्कार करते हैं।
परं मायिनं मायिनामप्यगम्यं
मुनिध्येयमाकाशकल्पं जनेशम्।
असंख्यावतारं
निजाज्ञाननाशं
मयूरेशवन्द्यं नता: स्मो नता: स्म:॥५॥
जो महामाया से लिप्त मनुष्य को अगम्य हैं, उन श्रेष्ठ मायाधीश का ऋषिमुनि ध्यान करते हैं, जो व्योमवत व्याप्त हैं, लोकों के स्वामी हैं, असंख्य अवतार के रूप में अवतरित हुये हैं, जो निज अज्ञान का नाश करने वाले है, उन वंदनीय मयूरेश्वर श्री गणेश जी को नतमस्तक होकर बारंबार नमस्कार करते हैं।
अनेकक्रियाकारकं श्रुत्यगम्यं
त्रयीबोधितानेककर्मादिबीजम्।
क्रियासिद्धिहेतुं सुरेन्द्रादिसेव्यं
मयूरेशवन्द्यं नता: स्मो नता:
स्म:॥६॥
जो अनेक क्रिया कर्म (कर्मकाण्ड) के कारण है, श्रुति के अगम्य हैं, श्रुति भी जिसका आकलन नहीं कर सकती, जो तीन वेदों के द्वारा प्रतिपादित हैं, अनेक कर्मों के मूल कारण हैं। कार्य सिद्धि के हेतु हैं, जो इंद्रादि देवताओं से सेवित है, उन वंदनीय मयूरेश्वर श्री गणेश जी को बारंबार नमस्कार करते हैं।
महाकालरूपं निमेषादिरूपं
कलाकल्परूपं सदागम्यरूपम्।
जनज्ञानहेतुं
नृणां सिद्धिदं तं
मयूरेशवन्द्यं नता: स्मो नता: स्म:॥७॥
जो महाकाल स्वरूप हैं, तत्क्षण ही सूक्ष्म रूप धारण करने वाले हैं, विभिन्न कलाओं के अधिष्ठाता है, सदा अगम्य स्वरूप हैं, जो लोगों के लिए ज्ञान के हेतु हैं, भक्तजनों को सिद्धि प्रदान करने वाले हैं, उन वंदनीय मयूरेश्वर श्री गणेश जी को नतमस्तक होकर बारंबार नमस्कार करते हैं।
महेशादिदेवै: सदा ध्येयपादं
सदा रक्षकं तत्पदानां हतारिम्।
मुदा
कामरूपं कृपावारिधिं तं
मयूरेशवन्द्यं नता: स्मो नता: स्म:॥८॥
जो महेशादि देवताओं द्वारा वंदनीय हैं, शत्रुओं का नाश करके उनकी सदैव रक्षा करने वाले हैं, जो प्रसन्नतापूर्वक मनोकामना पूर्ण करने वाले हैं, कृपावृष्टि करने वाले हैं, उन वंदनीय मयूरेश्वर श्री गणेश जी को नतमस्तक होकर बारंबार नमस्कार करते हैं।
सदा भक्तिं नाथे प्रणयपरमानन्दसुखदो
यतस्त्वं लोकानां परमकरुणामाशु
तनुषे।
षडूर्मीनां वेगं सुरवर विनाशं नय विभो
ततो भक्ति: श्रल्ग्या तव
भजनतोऽनन्यसुखदा ॥९॥
हे सुरश्रेस्थ! आप सदा भक्तजनों के लिए हठात परमानंदमय सुख देने वाले हैं; क्योंकि आप संसार के जीवों पर शीघ्र परम करुणा का विस्तार करते हैं। हे प्रभो! काम-क्रोधादि छह प्रकार की उर्मियों के वेग को शांत कीजिये; क्योंकि आपके अनंत सुखदायक भजन की अपेक्षा मुक्ति भी स्पृहनीय नहीं है।
किमस्माभि: स्तोत्रं गजवदन ते शक्यमतुलं
विधातुं वा रम्यं गुणनिधिरसि
प्रेम जगताम।
न चास्माकं शक्तिस्तव गुणगणं वर्णितुमहो
त्वदियोअयं
वारांनिधिरिव जगत्सर्जनविधिः ॥१०॥
हे गजानन! क्या हम आपके योग्य कोई उत्तम या सुंदर स्तवन कर सकते हैं? आप समस्त गुणों की निधि और सम्पूर्ण जगत के प्रेमपात्र हैं। आपके गुण समूहों का वर्णन करने की शक्ति हममें नहीं है। आपका जो यह जगत की सृष्टि-रचना का क्रम है, वह समुद्र के समान अपार है।
य इदं पठते स्तोत्रं स कामाँल्लभतेऽखिलान्॥११॥
जो इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह सम्पूर्ण मनोवांछित कामनाओं को प्राप्त कर लेता है।
सर्वत्र जयमाप्रोति मानमायु: श्रियं परम्।
पुत्रवान् धनसम्पन्नो
वश्यतामखिलं नयेत्॥१२॥
उसे सर्वत्र विजय प्राप्त होती है। परम दुर्लभ लक्ष्मी उपलब्ध होती है। वह पुत्रवान और धनवान होता है, तथा सबको वश में कर लेता है।
सहस्त्रावर्तनात्काराग्रह्स्थं मोचयेज्जनम्।
नियुतावर्तनान्मर्योऽसाध्यं
यत्सायेत्क्षणात्॥१३॥
इसकी एक सहस्र आवृत्ति करने से मनुष्य कैद में पड़े हुये अपने स्वजन को भी मुक्त कर सकता है। दस हजार बार इसका पाठ करने से मनुष्य असाध्य वस्तु को भी क्षण मात्र में सिद्ध कर लेता है।