जानकी राघव षट्कम अर्थ सहित (Janki Raghav Shatakam)
जानकी राघव षट्कम (Janki Raghav Shatakam) भगवान श्रीराम और माता सीता की महिमा का गान करने वाला एक उत्कृष्ट स्तोत्र है। यह रचना न केवल भक्ति और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम है, बल्कि इसे गाने से जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि का अनुभव होता है। संस्कृत के सुंदर छंदों में रची गई इस स्तुति में राम और जानकी के दिव्य गुणों का वर्णन किया गया है, जो हर भक्त के हृदय को छू लेता है।
श्रीमज्जानकीराघव षट्कम
आञ्जनेयार्चितं जानकीरञ्जनं
भञ्जनारातिवृन्दारकञ्जाखिलम्।
कञ्जनानन्तखद्योतकञ्जारकं
गञ्जनाखण्डलं
खञ्जनाक्षं भजे ॥१॥
कुञ्जरास्यार्चितं कञ्जजेन स्तुतं
पिञ्जरध्वंसकञ्जारजाराधितम्।
कुञ्जगञ्जातकञ्जाङ्गजाङ्गप्रदं
मञ्जुलस्मेरसम्पन्नवक्त्रं
भजे ॥२॥
बालदूर्वादलश्यामलश्रीतनुं
विक्रमेणावभग्नत्रिशूलीधनुम्।
तारकब्रह्मनामद्विवर्णीमनुं
चिन्तयाम्येकतारिन्तनूभूदनुम्
॥३॥
कोशलेशात्मजानन्दनं चन्दना-
नन्ददिक्स्यन्दनं वन्दनानन्दितम्।
क्रन्दनान्दोलितामर्त्यसानन्ददं
मारुतिस्यन्दनं
रामचन्द्रं भजे ॥४॥
भीदरत्नाकरं हन्तृदूषिन्खरं
चिन्तिताङ्घ्र्याशनीकालकूटीगरम्।
यक्षरूपे
हरामर्त्यदम्भज्वरं
हत्रियामाचरं नौमि सीतावरम् ॥५॥
शत्रुहृत्सोदरं लग्नसीताधरं
पाणवैरिन्सुपर्वाणभेदिञ्छरम्।
रावणत्रस्तसंसारशङ्काहरं
वन्दितेन्द्रामरं
नौमि स्वामिन्नरम् ॥६॥
शङ्खदीपाख्यमालिन्सुधीसूचिका-
निर्मितं वाक्स्रजं चेदमिष्टप्रदम्।
स्रग्विणीछन्दसूत्रेण
सन्दानितं
द्वब्जिनीशाभवर्णीषडब्जैः युतम् ॥७॥
इति दासोपाख्य-शङ्खदीपरचितं श्रीमज्जानकीराघवषट्कं सम्पूर्णम्॥
हिन्दी अर्थ
जानकी राघव षट्कम अर्थ सहित
जानकीराघवौ जानकीराघवौ
जानकीराघवौ तौ मदन्त्याश्रयौ॥
सीताराम! सीताराम! सीताराम! यह दोनों हीं हैं मेरे अन्तिम आश्रय।
आञ्जनेयार्चितं जानकीरञ्जनं
भञ्जनारातिवृन्दारकञ्जाखिलम्।
कञ्जनानन्तखद्योतकञ्जारकं
गञ्जनाखण्डलं
खञ्जनाक्षं भजे ॥१॥
जो अंजना सुत हनुमान जी के द्वारा नित्य सेवित हैं, जनक किशोरी भगवती सीता जी को सदा आनन्द प्रदान करतें हैं, जो देवशत्रु असुरवृन्द का मर्दन करने वाले हैं, जिनकी रूप की मनोहर छटा ऐसी हैं मानो अनन्त जुगनूओं के समान कामदेवों के सम्मुख रश्मि के सागर भगवान सूर्य! जिनका त्रिभुवन विख्यात प्रताप देवनायक इन्द्र को भी निष्प्रभ कर देता हैं, मैं उन खंजनसम मृदु नेत्रधारी भगवान श्रीरामचन्द्र को भजता हूं जिनसे यह समग्र ब्रह्माण्ड उत्पन्न हुआ हैं।
जानकीराघवौ जानकीराघवौ
जानकीराघवौ तौ मदन्त्याश्रयौ॥
कुञ्जरास्यार्चितं कञ्जजेन स्तुतं
पिञ्जरध्वंसकञ्जारजाराधितम्।
कुञ्जगञ्जातकञ्जाङ्गजाङ्गप्रदं
मञ्जुलस्मेरसम्पन्नवक्त्रं
भजे ॥२॥
जो विघ्नहर्ता गजानन के द्वारा नित्य पूजित हें, जिनकी स्तुति पद्मसम्भव ब्रह्मा भी करतें हैं, जो देहरूप पिंजरा को नष्ट करनेवाले सूर्यनन्दन यमराज के द्वारा नित्य आराधित हैं, जिन्होने भगवान शिव की क्रोधाग्नि से भस्मीभूत कामदेव को पुनः देह प्रदान किया, मैं उन प्रमोदवन के कुंजविहारी भगवान श्रीरामचन्द्र को भजता हूं जिनके मुखारविन्द में सदा ही एक मनोहर मुस्कान विद्यमान हैं।
जानकीराघवौ जानकीराघवौ
जानकीराघवौ तौ मदन्त्याश्रयौ॥
बालदूर्वादलश्यामलश्रीतनुं
विक्रमेणावभग्नत्रिशूलीधनुम्।
तारकब्रह्मनामद्विवर्णीमनुं
चिन्तयाम्येकतारिन्तनूभूदनुम्
॥३॥
जिनके श्रीशरीर की शोभा नवदूर्वादल के समान श्यामल हैं, जिन्होने अति विक्रम सहित त्रिशूलधारी महादेव की पिनाक धनुष का खण्डन किया, "राम" — जिनका यह दो अक्षरी नाम साक्षात् भवबन्धनहारी तारकब्रह्म महामंत्र हैं, मैं उन्हीं भगवान श्रीसाकेतपति का चिंतन करता हूं जो दानवकुल के एकमात्र तारणहार हैं।
जानकीराघवौ जानकीराघवौ
जानकीराघवौ तौ मदन्त्याश्रयौ॥
कोशलेशात्मजानन्दनं चन्दना-
नन्ददिक्स्यन्दनं वन्दनानन्दितम्।
क्रन्दनान्दोलितामर्त्यसानन्ददं
मारुतिस्यन्दनं
रामचन्द्रं भजे ॥४॥
जो कोशलनरेश की कन्या महारानी कौशल्या जी के प्रिय पुत्र हैं, चक्रवर्ती सम्राट दशरथ जी के हृदय को आनन्ददायी शीतल चंदन हैं, रावण के भय से आतुर क्रन्दनार्त देवताओं को आनन्दप्रदाता उन मारुतिवाहन भगवान श्रीरामचन्द्र को मैं भजता हूं जो भक्ति से किए जानेवाले वन्दनाओं से सदा आनन्दित होते हैं।
जानकीराघवौ जानकीराघवौ
जानकीराघवौ तौ मदन्त्याश्रयौ॥
भीदरत्नाकरं हन्तृदूषिन्खरं
चिन्तिताङ्घ्र्याशनीकालकूटीगरम्।
यक्षरूपे
हरामर्त्यदम्भज्वरं
हत्रियामाचरं नौमि सीतावरम् ॥५॥
जिन्होने दर्पी समुद्रदेव के मन में भय का संचार किया, खर ओर दूषण का वध किया, जिनके पदसरोज का चिन्तन हलाहलपायी स्वयं देवाधिदेव महादेव भी करते हैं, जिन्होने यक्ष का स्वरूप धारण कर देवताओं के अहंकार रूपी ज्वर का हरण किया, निशाचरों के संहारक मैं उन सीतावल्लभ भगवान श्रीरामभद्र को प्रणाम करता हूं।
जानकीराघवौ जानकीराघवौ
जानकीराघवौ तौ मदन्त्याश्रयौ॥
शत्रुहृत्सोदरं लग्नसीताधरं
पाणवैरिन्सुपर्वाणभेदिञ्छरम्।
रावणत्रस्तसंसारशङ्काहरं
वन्दितेन्द्रामरं
नौमि स्वामिन्नरम् ॥६॥
जो शत्रुघ्न जी के सहोदर हैं, वामभाग में स्थिता भगवती जानकी जी को धारण किए हुए हैं, जिनके करकमल में असुरकुल का भेदन करनेवाला बाण विद्यमान हैं, तथा जिन्होने रावण के भयसे संत्रस्त संसार का भयनाश किया हैं, मैं उन नरकुलपति भगवान श्रीराघवेन्द्र को प्रणाम करता हूं जिनकी वन्दना स्वयं देवनाथ इन्द्र भी करते हैं।
जानकीराघवौ जानकीराघवौ
जानकीराघवौ तौ मदन्त्याश्रयौ॥
शङ्खदीपाख्यमालिन्सुधीसूचिका-
निर्मितं वाक्स्रजं चेदमिष्टप्रदम्।
स्रग्विणीछन्दसूत्रेण
सन्दानितं
द्वब्जिनीशाभवर्णीषडब्जैः युतम्॥७॥
यह सर्वेष्टदायी वाक्कुसुममालिका शङ्खदीप नामक माली के शुभ बुद्धि स्वरूप सुई के द्वारा प्रस्तुत किया गया हैं। सूर्ययुगलसमप्रभ (२४ अक्षरान्वित) छः पद्म रूपी श्लोकों से युक्त यह मालिका स्रग्विणी छन्द स्वरूप धागे के द्वारा ग्रथित हैं।
जानकीराघवौ जानकीराघवौ
जानकीराघवौ तौ मदन्त्याश्रयौ॥
इति दासोपाख्य-शङ्खदीपरचितं श्रीमज्जानकीराघवषट्कं सम्पूर्णम्॥
इस प्रकार शङ्खदीप-दास विरचित श्रीमज्जानकीराघवषट्कम् सम्पूर्ण हुआ।