विघ्ननिवारक श्री सिद्धिविनायक स्तोत्रम् अर्थ सहित (Shri Siddhivinayak Stotram)
श्री सिद्धिविनायक स्तोत्र मूलतः संस्कृत में है। सिद्धिविनायक, गणेश जी का ही एक नाम है, जिसका अर्थ 'आपकी इच्छा पूरी करने वाले गणेश' होता है। इस स्तोत्र में कुल आठ श्लोक हैं, जिनमें भक्तजन अपने कष्टों, विघ्नों का निवारण और इच्छा पूरी करने वाले गणेश जी की महिमा का बखान करते हुये स्तुति करते हैं।
विघ्ननिवारक श्री सिद्धिविनायक स्तोत्रम्
विघ्नेश विघ्नचयखण्डननामधेय
श्रीशंकरात्मज सुराधिपवन्द्यपाद।
दुर्गामहाव्रतफलाखिलमंगलात्मन्
विघ्नं
ममापहर सिद्धिविनायक त्वम्॥१॥
सत्पद्मरागमणिवर्णशरीरकान्ति:
श्रीसिद्धिबुद्धिपरिचर्चितकुंकुमश्री:।
दक्षस्तने
वलयितातिमनोज्ञशुण्डो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम्॥२॥
पाशांकुशाब्जपरशूंश्च दधच्चतुर्भि-
र्दोर्भिश्च
शोणकुसुमस्त्रगुमांगजात:।
सिन्दूरशोभितललाटविधुप्रकाशो
विघ्नं ममापहर
सिद्धिविनायक त्वम्॥३॥
कार्येषु विघ्नचयभीतविरंचिमुख्यै:
सम्पूजित: सुरवरैरपि मोदकाद्यै:।
सर्वेषु
च प्रथममेव सुरेषु पूज्यो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम्॥४॥
शीघ्रांचनस्खलनतुंगरवोर्ध्वकण्ठ-
स्थूलेन्दुरुद्रगणहासितदेवसंघ:।
शूर्पश्रुतिश्च
पृथुवर्तुलतुंगतुन्दो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम्॥५॥
यज्ञोपवीतपदलम्भितनागराजो
मासादिपुण्यददृशीकृतऋक्षराज:।
भक्ताभयप्रद
दयालय विघ्नराज
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम्॥६॥
सद्रत्नसारततिराजितसत्किरीट:
कौसुम्भचारुवसनद्वय ऊर्जितश्री:।
सर्वत्र
मंगलकरस्मरणप्रतापो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम्॥७॥
देवान्तकाद्यसुरभीतसुरार्तिहर्ता
विज्ञानबोधनवरेण तमोsपहर्ता।
आनन्दितत्रिभुवनेश
कुमारबन्धो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम्॥८॥
॥ इति श्रीमुद्गलपुराणे विघ्ननिवारकं श्रीसिद्धिविनायकस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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हिन्दी अर्थ
श्री सिद्धिविनायक स्तोत्र अर्थ सहित
विघ्नेश विघ्नचयखण्डननामधेय
श्रीशंकरात्मज सुराधिपवन्द्यपाद।
दुर्गामहाव्रतफलाखिलमंगलात्मन्
विघ्नं
ममापहर सिद्धिविनायक त्वम्॥१॥
हे विघ्नेश! हे सिद्धिविनायक! आपका नाम विघ्न-समूह का खण्डन करने वाला है। आप भगवान शंकर के सुपुत्र हैं। देवराज इन्द्र आपके चरणों की वन्दना करते हैं। आप पार्वती जी के महान् व्रत के उत्तम फल एवं निखिल मङ्गलरुप है। आप मेरे विघ्न का निवारण करें।
सत्पद्मरागमणिवर्णशरीरकान्ति:
श्रीसिद्धिबुद्धिपरिचर्चितकुंकुमश्री:।
दक्षस्तने
वलयितातिमनोज्ञशुण्डो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम्॥२॥
सिद्धिविनायक! आपके श्री विग्रह की कान्ति उत्तम पद्मराग मणि के समान अरुण वर्ण की है। श्री सिद्धि और बुद्धि देवियों ने अनुलेपन करके आपके श्री अङ्कों में कुङ्कुम की शोभा का विस्तार किया है। आपके दाहिने स्तन पर वलयाकार मुडा हुआ शुण्ड-दण्ड अत्यन्त मनोहर जान पड़ता है। आप मेरे हर विघ्न हर लीजिये।
पाशांकुशाब्जपरशूंश्च दधच्चतुर्भि-
र्दोर्भिश्च
शोणकुसुमस्त्रगुमांगजात:।
सिन्दूरशोभितललाटविधुप्रकाशो
विघ्नं ममापहर
सिद्धिविनायक त्वम्॥३॥
आप आपके चार हाथों में क्रमशः पाश, अङ्कुश, कमल और परशु धारण करते हैं, आप लाल फूलों की माला से अलंकृत हैं और उमा के अङ्ग से उत्पन्न हुए है तथा आपके सिन्दूर शोभित ललाट में चन्द्रमा का प्रकाश फैल रहा है, सिद्धिविनायक! आप मेरे विघ्नों का अपहरण कीजिये।
कार्येषु विघ्नचयभीतविरंचिमुख्यै:
सम्पूजित: सुरवरैरपि मोदकाद्यै:।
सर्वेषु
च प्रथममेव सुरेषु पूज्यो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम्॥४॥
सभी कार्यों मे विघ्न समूह के आ पड़ने की आशङ्का से भयभीत हुए ब्रह्मा आदि श्रेष्ठ देवताओं ने भी आपकी मोदक आदि मिष्टान्नों से भलीभॉंति पूजा की है। आप समस्त देवताओं में सबसे पहले पूजनीय हैं। सिद्धिविनायक! आप मेरे विघ्न समूह का निवारण कीजिये।
शीघ्रांचनस्खलनतुंगरवोर्ध्वकण्ठ-
स्थूलेन्दुरुद्रगणहासितदेवसंघ:।
शूर्पश्रुतिश्च
पृथुवर्तुलतुंगतुन्दो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम्॥५॥
आप जल्दी जल्दी चलने, लडखडाने, उच्चस्वर से शब्द करने, ऊर्ध्वकण्ठ, स्थूल शरीर होने से चन्द्र, रुद्रगण आदि समस्त देवता समुदाय को हँसाते रहते हैं। आपके कान सूप के समान जान पड़ते हैं, आप मोटा गोलाकार और ऊँचा तुन्द धारण करते हैं। आप मेरे विघ्नों का हरण कीजिये।
यज्ञोपवीतपदलम्भितनागराजो
मासादिपुण्यददृशीकृतऋक्षराज:।
भक्ताभयप्रद
दयालय विघ्नराज
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम्॥६॥
आपने नागराज को यज्ञोपवित का स्थान दे रखा है, आप बालचन्द्र को मस्तक पर धारण कर दर्शनार्थियों को पुण्य प्रदान करते हैं। भक्तों को अभय देने वाले दयाधाम विघ्नराज! सिद्धिविनायक! आप मेरे विघ्नों को हर लीजिये।
सद्रत्नसारततिराजितसत्किरीट:
कौसुम्भचारुवसनद्वय ऊर्जितश्री:।
सर्वत्र
मंगलकरस्मरणप्रतापो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम्॥७॥
आपका सुन्दर किरीट उत्तम रत्नों के सार भागों की श्रेणियों से उद्दीप्त होता है। आप कुसुम्भी रंग के दो मनोहर वस्त्र धारण करते हैं, आपकी शोभा कान्ति बहुत बढी-चढी है और सर्वत्र आपके स्मरण का प्रताप सबका मंगल करने वाला है। सिद्धिविनायक! आप मेरे विघ्न हरण करें।
देवान्तकाद्यसुरभीतसुरार्तिहर्ता
विज्ञानबोधनवरेण तमोsपहर्ता।
आनन्दितत्रिभुवनेश
कुमारबन्धो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम्॥८॥
सिद्धिविनायक! आप देवान्तक आदि असुरों से डरे हुए देवताओं की पीडा दूर करने वाले तथा विज्ञान बोध के वरदान से सबके अज्ञानान्धकार को हर लेने वाले हैं।
॥ इति श्रीमुद्गलपुराणे विघ्ननिवारकं श्रीसिद्धिविनायकस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥