त्रिवेणी दशक स्तोत्रम् - आदि शंकराचार्य विरचित (Shri Triveni Stotram)

त्रिवेणी स्तोत्रम्, Triveni Sangam Stotra - Adi Shankaracharya

श्री त्रिवेणी स्तोत्रम्

मुक्तामयालङ्कृतमुद्रवेणी
भक्ताभयत्राणसुबद्धवेणी।
मत्तालिगुञ्जन्मकरन्दवेणी
श्रीमत्प्रयागे जयति त्रिवेणी ॥१॥

लोकत्रयैश्वर्यनिदानवेणी
तापत्रयोच्चाटनबद्धवेणी।
धर्मा-ऽर्थकामाकलनैकवेणी
श्रीमत्प्रयागे जयति त्रिवेणी ॥२॥

मुक्ताङ्गनामोहन-सिद्धवेणी
भक्तान्तरानन्द-सुबोधवेणी।
वृत्त्यन्तरोद्वेगविवेकवेणी
श्रीमत्प्रयागे जयति त्रिवेणी ॥३॥

दुग्धोदधिस्फूर्जसुभद्रवेणी
नीलाम्रशोभाललिता च वेणी।
स्वर्णप्रभाभासुरमध्यवेणी
श्रीमत्प्रयागे जयति त्रिवेणी ॥४॥

विश्वेश्वरोत्तुङ्गकपर्दिवेणी
विरिञ्चिविष्णुप्रणतैकवेणी।
त्रयीपुराणा सुरसार्धवेणी
श्रीमत्प्रयागे जयति त्रिवेणी ॥५॥

माङ्गल्यसम्पत्तिसमृद्धवेणी
मात्रान्तरन्यस्तनिदानवेणी।
परम्परापातकहारिवेणी
श्रीमत्प्रयागे जयति त्रिवेणी ॥६॥

निमज्जदुन्मज्जमनुष्यवेणी
त्रयोदयोभाग्यविवेकवेणी।
विमुक्तजन्माविभवैकवेणी
श्रीमत्प्रयागे जयति त्रिवेणी ॥७॥

सौन्दर्यवेणी सुरसार्धवेणी
माधुर्यवेणी महनीयवेणी।
रत्नैकवेणी रमणीयवेणी
श्रीमत्प्रयागे जयति त्रिवेणी ॥८॥ 

सारस्वताकार-विघातवेणी
कालिन्दकन्यामयलक्ष्यवेणी।
भागीरथीरूप-महेशवेणी
श्रीमत्प्रयागे जयति त्रिवेणी ॥९॥

श्रीमद्भवानीभवनैकवेणी
लक्ष्मीसरस्वत्यभिमानवेणी।
माता त्रिवेणी त्रयीरत्नवेणी
श्रीमत्प्रयागे जयति त्रिवेणी ॥१०॥

फलश्रुति

त्रिवेणीदशकं स्तोत्रं प्रातर्नित्यं पठेन्नरः।
तस्य वेणी प्रसन्ना स्याद् विष्णुलोकं स गच्छति॥

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हिन्दी अर्थ

श्री त्रिवेणी स्तोत्रम्

मुक्तामयालङ्कृतमुद्रवेणी
भक्ताभयत्राणसुबद्धवेणी।
मत्तालिगुञ्जन्मकरन्दवेणी
श्रीमत्प्रयागे जयति त्रिवेणी ॥१॥

मुक्ता मणियों से अलंकृत वेणी, भक्तों को अभय और रक्षा प्रदान करने वाली वेणी, मत्त भ्रमरों से गुंजित मधुकोश समान सुगंधित वेणी, श्रीप्रयागराज में स्थित त्रिवेणी की जय हो॥१॥

लोकत्रयैश्वर्यनिदानवेणी
तापत्रयोच्चाटनबद्धवेणी।
धर्मा-ऽर्थकामाकलनैकवेणी
श्रीमत्प्रयागे जयति त्रिवेणी ॥२॥

तीन लोकों के ऐश्वर्य प्रदान करने वाली वेणी, तीनों प्रकार के दुखों को हरने वाली वेणी, धर्म अर्थ और काम का आकलन करने वाली वेणी, श्रीप्रयागराज में स्थित त्रिवेणी की जय हो॥२॥

मुक्ताङ्गनामोहन-सिद्धवेणी
भक्तान्तरानन्द-सुबोधवेणी।
वृत्त्यन्तरोद्वेगविवेकवेणी
श्रीमत्प्रयागे जयति त्रिवेणी ॥३॥

निर्मुक्त जनों को मोहन सिद्धि देने वाली वेणी, भक्तों के अंतःकरण में आनंद का बोध कराने वाली वेणी, मनोवृति के द्वंद्वों में विवेकरूपा वेणी, श्री प्रयागराज में स्थित त्रिवेणी कीजय हो॥३॥

दुग्धोदधिस्फूर्जसुभद्रवेणी
नीलाम्रशोभाललिता च वेणी।
स्वर्णप्रभाभासुरमध्यवेणी
श्रीमत्प्रयागे जयति त्रिवेणी ॥४॥

शुभ्र समुद्र के समान सुंदर वेणी, नीलमेघ के समान सुंदर वेणी, स्वर्ण आभा के समान सुंदर वेणी, श्री प्रयागराज में स्थित त्रिवेणी की जय हो ॥४॥

विश्वेश्वरोत्तुङ्गकपर्दिवेणी
विरिञ्चिविष्णुप्रणतैकवेणी।
त्रयीपुराणा सुरसार्धवेणी
श्रीमत्प्रयागे जयति त्रिवेणी ॥५॥

विश्वेश्वर भगवान्‌ शिव की वेणी, ब्रह्मा और विष्णु द्वारा बंदित वेणी, वेदों से प्राचीन देवताओं की वेणी, श्री प्रयागराज में स्थित त्रिवेणी की जय हो ॥५॥

माङ्गल्यसम्पत्तिसमृद्धवेणी
मात्रान्तरन्यस्तनिदानवेणी।
परम्परापातकहारिवेणी
श्रीमत्प्रयागे जयति त्रिवेणी ॥६॥

मंगलमयी संपत्ति से समृद्ध वेणी, इंद्रियों में स्थित द्ंद्वों से निदान प्रदान करने वाली वेणी, परंपरा से संचित पापों को हरने वाली वेणी, श्री प्रयागराज में स्थित त्रिवेणी की जय हो॥६॥

निमज्जदुन्मज्जमनुष्यवेणी
त्रयोदयोभाग्यविवेकवेणी।
विमुक्तजन्माविभवैकवेणी
श्रीमत्प्रयागे जयति त्रिवेणी ॥७॥

गोता लगाने वाले मनुष्यों की वेणी, फल, भाग्य और विवेक की वेणी, मोक्ष और वैभव प्रदात्री वेणी, श्री प्रयागराज में स्थित त्रिवेणी की जय हो ॥७॥

सौन्दर्यवेणी सुरसार्धवेणी
माधुर्यवेणी महनीयवेणी।
रत्नैकवेणी रमणीयवेणी
श्रीमत्प्रयागे जयति त्रिवेणी ॥८॥

सुंदर वेणी, देवताओं की वेणी, मधुर वेणी, श्रेष्ठ वेणी, रत्नस्वरूपा वेणी, रमणीय वेणी, श्री प्रयागराज में स्थित त्रिवेणी की जय हो॥८॥

सारस्वताकार-विघातवेणी
कालिन्दकन्यामयलक्ष्यवेणी।
भागीरथीरूप-महेशवेणी
श्रीमत्प्रयागे जयति त्रिवेणी ॥९॥

सरस्वती रूप में गुप्त वेणी, यमुना रूप में दृष्ट वेणी, गंगा रूप में शिव की वेणी, श्री प्रयागराज में स्थित त्रिवेणी की जय हो ॥९॥

श्रीमद्भवानीभवनैकवेणी
लक्ष्मीसरस्वत्यभिमानवेणी।
माता त्रिवेणी त्रयीरत्नवेणी
श्रीमत्प्रयागे जयति त्रिवेणी ॥१०॥

मां पार्वती के भवन में स्थित वेणी, लक्ष्मी और सरस्वती की अभिमानरूपा वेणी, त्रिवेणी माता त्रिरत्नरूपा वेणी, श्री प्रयागराज में स्थित त्रिवेणी की जय हो ॥१०॥

फलश्रुति 

त्रिवेणीदशकं स्तोत्रं प्रातर्नित्यं पठेन्नरः।
तस्य वेणी प्रसन्ना स्याद् विष्णुलोकं स गच्छति॥

जो नर प्रातःकाल सदा इस त्रिवेणी दशक स्तोत्र का पाठ करता है, उसकी यह त्रिवेणी प्रसन्न होती है और वह वैकुंठलोक को जाता है ॥

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