सरस्वती स्तोत्रम् - रवि रुद्र पितामह (Saraswati Stotram Ravi Rudra Pitamah)

देवी सरस्वती को ज्ञान, विद्या,संगीत, कला और अधिगम की देवी कहा जाता है। देवी सरस्वती को माता पार्वती और माता लक्ष्मी के साथ त्रिदेविओं में स्थान प्राप्त है। माता सरस्वती की वंदना, बसंत पंचमी पर मुख्य रूप से की जाती है।
सरस्वती वंदना - रवि रुद्र पितामह
रवि रुद्र पितामह विष्णु नुतं,
हरि चन्दन कुंकुम पंक युतम्,
मुनि वृन्द
गजेन्द्र समान युतं,
तव नौमि सरस्वति! पाद युगम्॥०१॥
शशि शुद्ध सुधा हिम धाम युतं,
शरदम्बर बिम्ब समान करम्,
बहु रत्न मनोहर
कान्ति युतं,
तव नौमि सरस्वति! पाद युगम् ॥०२॥
कनकाब्ज विभूषित भीति युतं,
भव भाव विभावित भिन्न पदम्,
प्रभु चित्त
समाहित साधु पदं,
तव नौमि सरस्वति! पाद युगम् ॥०३॥
भव सागर मज्जन भीति नुतं,
प्रति पादित सन्तति कारमिदम्,
विमलादिक-शुद्ध-विशुद्ध-पदं,
तव
नौमि सरस्वति! पाद-युगम् ॥०४॥
मति-हीन-जनाश्रय-पारमिदं,
सकलागम-भाषित-भिन्न-पदम्।
परि-पूरित-विशवमनेक-भवं,
तव
नौमि सरस्वति! पाद-युगम् ॥०५॥
परिपूर्ण-मनोरथ-धाम-निधिं,
परमार्थ-विचार-विवेक-विधिम्।
सुर-योषित-सेवित-पाद-तलं,
तव
नौमि सरस्वति! पाद-युगम् ॥०६॥
सुर-मौलि-मणि-द्युति-शुभ्र-करं,
विषयादि-महा-भय-वर्ण-हरम्।
निज-कान्ति-विलोमित-चन्द्र-शिवं,
तव
नौमि सरस्वति! पाद-युगम् ॥०७॥
गुणनैक-कुल-स्थिति-भीति-पदं,
गुण-गौरव-गर्वित-सत्य-पदम्।
कमलोदर-कोमल-पाद-तलं,
तव
नौमि सरस्वति! पाद-युगम् ॥०८॥
इसे भी पढ़ें
हिन्दी अर्थ
रवि रुद्र पितामह हिन्दी अर्थ सहित
रवि रुद्र पितामह विष्णु नुतं,
हरि चन्दन कुंकुम पंक युतम्,
मुनि वृन्द
गजेन्द्र समान युतं,
तव नौमि सरस्वति! पाद युगम्॥०१॥
सूर्य, शिव, ब्रह्मा और विष्णु ने जिनका स्तवन ( स्तुतिगान) किया है, हरिचन्दन और केसर (उटी) से जिनका विलेपन किया है, मुनिगण और ऐरावत जिनके नित्य सान्निध्य में रहते हैं, हे माते सरस्वति ! ऐसे आपके चरणयुगल को मैं प्रणाम करता हूँ ॥०१॥
शशि शुद्ध सुधा हिम धाम युतं,
शरदम्बर बिम्ब समान करम्,
बहु रत्न मनोहर
कान्ति युतं,
तव नौमि सरस्वति! पाद युगम् ॥०२॥
जो शीतल चन्द्रमा के समान शुद्ध, अमृत, और हिमगिरी के समान शुभ्र ध्वल से युक्त हिमालय में निवास करती हैं, जो शरद पूर्णिमा के शीतल चन्द्रमा की प्रभा (प्रकाशमय) के समान हैं, रत्न समुदाय की मनोहर कान्तिवाले, हे माते सरस्वति ! आपके चरणयुगल को मैं प्रणाम करता हूँ ॥०२॥
कनकाब्ज विभूषित भीति युतं,
भव भाव विभावित भिन्न पदम्,
प्रभु चित्त
समाहित साधु पदं,
तव नौमि सरस्वति! पाद युगम् ॥०३॥
सुवर्णकमल से शोभा देने वाले, जगत् का कल्याण करने वाले, और जगत में सांसारिक विकारों का नाश करने वाले (अथवा प्रपंचादि, रागादि विकार से भिन्न रहने वाले), जिनका मन ईश्वर में समाहित हुआ है उनके लिए सुयोग्य आश्रय स्थल रहने वाले, हे माते सरस्वति ! उन चरण युगल को मैं प्रणाम करता हूँ ॥०३॥
भव सागर मज्जन भीति नुतं,
प्रति पादित सन्तति कारमिदम्,
विमलादिक-शुद्ध-विशुद्ध-पदं,
तव
नौमि सरस्वति! पाद-युगम् ॥०४॥
संसार रूपी सागर में डूब जाने के भय से जिनका स्तवन किया जाता है, अखण्ड, विमल, पवित्र और विशुद्ध ऐसा जिनका वर्णन किया गया है, हे माते सरस्वति ! आपके उन चरण युगल को मैं प्रणाम करता हूँ ॥०४॥
मति-हीन-जनाश्रय-पारमिदं,
सकलागम-भाषित-भिन्न-पदम्।
परि-पूरित-विशवमनेक-भवं,
तव
नौमि सरस्वति! पाद-युगम् ॥०५॥
बुद्धिहीन लोगों के लिए आपके चरण ही आश्रयस्थान हैं, सम्पूर्ण वेद आपके पदों का वर्णन करतें हैं, आपके चरणद्वय वर्णनातीत (भिन्न स्वरूप) हैं, यह जगत विविध प्रकार से आपके चरण कमलों से व्याप्त है, सम्पूर्ण जगत् में आपके पवित्र चरणों का अस्तित्व है, हे माते सरस्वति! आपके उन चरण युगल को मैं प्रणाम करता हूँ ॥०५॥
परिपूर्ण-मनोरथ-धाम-निधिं,
परमार्थ-विचार-विवेक-विधिम्।
सुर-योषित-सेवित-पाद-तलं,
तव
नौमि सरस्वति! पाद-युगम् ॥०६॥
हे माते सरस्वति ! मनोकामना परिपूर्ण होने के लिए आपके पादयुग्म प्रकाश निधान हैं, पारमार्थिक विचारों के लिए सदसद विवेक बुद्धि को क्रियाशील करने वाले है, देव और देवङ्ग्नाएँ भी जिन चरणकमलों की सेवा करती हैं, हे माते सरस्वति! आपके उन चरणयुगल को मैं प्रणाम करता हूँ ॥०६॥
सुर-मौलि-मणि-द्युति-शुभ्र-करं,
विषयादि-महा-भय-वर्ण-हरम्।
निज-कान्ति-विलोमित-चन्द्र-शिवं,
तव
नौमि सरस्वति! पाद-युगम् ॥०७॥
जो नतमस्तक हुए देवताओं के मुकुट में जड़ित रत्नों के शुभ्र तेज से युक्त हैं, विषय और विकार के अत्यन्त भय के कारण निस्तेज हुए रुप (भयवर्ण) को हरण करने वाले, तेज प्रदान करने वाले, स्वयं की प्रभा से मुकुट पर विराजित कल्याणकारी चन्द्रमा को विलेपन करने वाले हैं, हे माते सरस्वति! आपके चरणयुगल को मैं प्रणाम करता हूँ ॥०७॥
गुणनैक-कुल-स्थिति-भीति-पदं,
गुण-गौरव-गर्वित-सत्य-पदम्।
कमलोदर-कोमल-पाद-तलं,
तव
नौमि सरस्वति! पाद-युगम् ॥०८॥
अनेक गुण समूह होते हुए, ऐहिक भय वाले लोगों के जो आश्रय स्थान हैं ऐसे आपके गुणगौरव युक्तचरण शाश्वत पद हैं, आपके चरणपद कमल के गर्भ के समान मृदुकमल हैं, हे माते सरस्वती! मैं आपके चरणयुगल को प्रणाम करता हूँ ॥०८॥