श्री यमुना अष्टकम अर्थ सहित (Shri Yamuna Ashtakam)

Shri Yamuna Ashtakam Lyrics with meaning

हिंदू धर्म में 'श्री यमुनाष्टकम्' पवित्र नदी देवी यमुना को समर्पित एक भक्ति गीत व स्तुति है। जो आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा संस्कृत भाषा में आठ श्लोकों (अष्टकम्) में विरचित है।

इस स्तोत्र में देवी यमुना की पवित्रता, पापों से मुक्त करने की शक्ति और भगवान श्रीकृष्ण के साथ उनके संबंध का वर्णन किया गया है। भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं में अधिकतर यमुना जी का वर्णन मिलता है।

श्री यमुनाष्टकम्

मुरारिकायकालिमाललामवारिधारिणी
तृणीकृतत्रिविष्टपा त्रिलोकशोकहारिणी।
मनोऽनुकूलकूलकुञ्जपुञ्जधूतदुर्मदा
धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा॥१॥

मलापहारिवारिपूरभूरिमण्डितामृता
भृशं प्रपातकप्रवञ्चनातिपण्डितानिशम्।
सुनन्दनन्दनाङ्गसङ्गरागरञ्जिता हिता
धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा॥२॥

लसत्तरङ्गसङ्गधूतभूतजातपातका
नवीनमाधुरीधुरीणभक्तिजातचातका।
तटान्तवासदासहंससंसृता हि कामदा
धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा॥३॥

विहाररासखेदभेदधीरतीरमारुता
गता गिरामगोचरे यदीयनीरचारुता।
प्रवाहसाहचर्यपूतमेदिनीनदीनदा
धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा॥४॥

तरङ्गसङ्गसैकताञ्चितान्तरा सदासिता
शरन्निशाकरांशुमञ्जुमञ्जरीसभाजिता।
भवार्चनाय चारुणाम्बुनाधुना विशारदा
धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा॥५॥

जलान्तकेलिकारिचारुराधिकाङ्गरागिणी
स्वभर्तुरन्यदुर्लभाङ्गसङ्गतांशभागिनी।
स्वदत्तसुप्तसप्तसिन्धुभेदनातिकोविदा
धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा॥६॥

जलच्युताच्युताङ्गरागलम्पटालिशालिनी
विलोलराधिकाकचान्तचम्पकालिमालिनी।
सदावगाहनावतीर्णभर्तृभृत्यनारदा
धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा॥७॥

सदैव नन्दनन्दकेलिशालिकुञ्जमञ्जुला
तटोत्थफुल्लमल्लिकाकदम्बरेणुसूज्ज्वला।
जलावगाहिनां नृणां भवाब्धिसिन्धुपारदा
धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा॥८॥


हिन्दी अर्थ

श्री यमुना अष्टक हिन्दी अर्थ सहित

मुरारिकायकालिमाललामवारिधारिणी
तृणीकृतत्रिविष्टपा त्रिलोकशोकहारिणी।
मनोऽनुकूलकूलकुञ्जपुञ्जधूतदुर्मदा
धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा॥१॥

श्रीकृष्ण मुरारि की श्यामल श्रीअंगकान्ति से (रंजित होकर) आभूषण स्वरूप हुए जलौघ को धारण करनेवाली, त्रिलोक-शोकहारिणी होने के कारण जिसके सामने स्वर्गपुरी भी तृणवत्‌ तुच्छ है, निज तीरस्थित मनोरम कुंजवन (के दर्शन के प्रभाव) द्वारा (अन्तःकरण) कलुष धोनेवाली कलिन्दराज-कन्या (कालिन्दी) यमुना मेरे मन की मलिनता का सर्वदा प्रक्षालन करे॥१॥

मलापहारिवारिपूरभूरिमण्डितामृता
भृशं प्रपातकप्रवञ्चनातिपण्डितानिशम्।
सुनन्दनन्दनाङ्गसङ्गरागरञ्जिता हिता
धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा॥२॥

कलुषहारी परिपूर्ण जल से सुशोभित अमृतस्वरूपिणी, अतिप्रबल पापराशि की अहोरात्र वंचना करने में निपुण, सुन्दर नन्दनन्दन श्रीकृष्ण के (श्यामल वर्ण) श्रीअंग के सान्निध्य के फलस्वरूप उसकी (श्यामल) कान्ति से रंजित, (सज्जनों की) हितकारिणी कलिन्द-कन्या यमुना मेरे मन की मलिनता का सर्वदा प्रक्षालन करे ॥२॥

लसत्तरङ्गसङ्गधूतभूतजातपातका
नवीनमाधुरीधुरीणभक्तिजातचातका।
तटान्तवासदासहंससंसृता हि कामदा
धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा॥३॥

क्रीड़ा करती हुई अपनी द्युतिमान तरंगों के संस्पर्श से प्राणिमात्र के पातकों की प्रक्षालनकारिणी, नवीन माधुर्य से परिपूर्ण अपने जल से चातकों में भक्ति उत्पन्न करने वाली, तटवासी असंख्य दास-हंसों से व्याप्त, मनोकामना की पूर्ति विधायिनी कलिन्द-नन्दिनी यमुना मेरे मन की मलिनता का सर्वदा प्रक्षालन करे ॥३॥

विहाररासखेदभेदधीरतीरमारुता
गता गिरामगोचरे यदीयनीरचारुता।
प्रवाहसाहचर्यपूतमेदिनीनदीनदा
धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा॥४॥

जिसके तट की सौम्य वायु क्रीड़ा कल्लोल तथा विहार-विचरण आदि से जनित श्रम का परिहार करती है, जिसके जल-माधुर्य का वर्णन वाणी के अगोचर है, जिसने अपने प्रवाह की सहवर्ती पृथ्वी तथा नद॑-नदियों को पुनीत किया है, वह कलिन्द-कन्या यमुना मेरे मन की मलिनता का सर्वदा प्रक्षालन करे ॥४॥

तरङ्गसङ्गसैकताञ्चितान्तरा सदासिता
शरन्निशाकरांशुमञ्जुमञ्जरीसभाजिता।
भवार्चनाय चारुणाम्बुनाधुना विशारदा
धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा॥५॥

जिसकी तरंगों के संस्पर्श से बालुकामय तट शोभित है, सर्वदा श्यामल कान्तियुक्त जो शरत्कालीन चन्द्रकिरणों से आलोकित सुन्दर 'नवपल्लवित लताओं आदि से शोभित है, आज भी अपने सुन्दर जल से जगत्‌ की तुष्टि करने में निपुण (अथवा भगवान्‌ शिव की अर्चना में कुशल) वह कलिन्द-कन्या यमुना मेरे मन की मलिनता का सर्वदा प्रक्षालन करे ॥५॥

जलान्तकेलिकारिचारुराधिकाङ्गरागिणी
स्वभर्तुरन्यदुर्लभाङ्गसङ्गतांशभागिनी।
स्वदत्तसुप्तसप्तसिन्धुभेदनातिकोविदा
धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा॥६॥

अपने (तटवर्ती) जल में क्रीड़ाकारिणी सुन्दर राधिका के अंगराग से रडिजित, अन्य किसी के लिये भी दुर्लभ अपने पति श्रीकृष्ण की संगति (अर्थात्‌ श्रीकृष्ण द्वारा अपने जल में स्नान-क्रीड़ा आदि) का अल्प-सा भी सौभाग्य जिसे प्राप्त हुआ है एवं प्रशान्त सप्तसिन्धुओं को अपने जलप्रदान से प्रक्षोभित करने में अतिनिपुण वह कलिन्द-कन्या यमुना मेरे मन की मलिनता का सर्वदा प्रक्षालन करे॥६॥

जलच्युताच्युताङ्गरागलम्पटालिशालिनी
विलोलराधिकाकचान्तचम्पकालिमालिनी।
सदावगाहनावतीर्णभर्तृभृत्यनारदा
धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा॥७॥

जल में उतरकर स्नान करते अच्चयुत श्रीकृष्ण के अंगराग (से मिश्रित सुगन्धित जल) से लुब्ध सखियों (अथवा भ्रमरं) से सुशोभित, राधिका के दोलायमान केशकलाप में गूँथे चम्पक-पुष्पगुच्छों को माला के समान धारिणी, अपने जल में सर्वदा अवगाहन हेतु अवतीर्ण अपने पति श्रीकृष्ण, उनके सेवकों एवं भक्त नारदादि से समन्वित कलिन्दनन्दिनी यमुना मेरे मन की मलिनता का सर्वदा प्रक्षालन करे॥७॥

सदैव नन्दनन्दकेलिशालिकुञ्जमञ्जुला
तटोत्थफुल्लमल्लिकाकदम्बरेणुसूज्ज्वला।
जलावगाहिनां नृणां भवाब्धिसिन्धुपारदा
धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा॥८॥

नन्दनन्दन श्रीकृष्ण की लीलाक्रीड़ाओं से रम्य लताकुंजों से सुशोभित, तट पर वृद्धिगत मल्लिका-कदम्बादि के प्रफुल्लित पुष्पों के परागक्णों से अति उज्ज्वल अपने जल में अवगाहन करनेवाले मनुष्यों को भवसागर पार करानेवाली कलिन्द-कन्या यमुना मेरे मन की मलिनता का सर्वदा प्रक्षालन करे॥८॥

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