श्री शिव प्रातः स्मरण स्तोत्रम् (Shri Shiv Pratah Smaran Stotram)

'शिव प्रातः स्मरण स्तोत्र' एक संक्षिप्त किन्तु अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है, जिसकी रचना आदि शंकराचार्य ने की थी। इस स्तोत्र में तीन श्लोक हैं, जो भगवान शिव के विभिन्न स्वरूपों और उनकी महिमा का वर्णन करते हैं। प्रतिदिन प्रातःकाल इसका श्रद्धापूर्वक पाठ करने से साधक के अनेक जन्मों के संचित दुःखों का नाश होता है और वह भगवान शिव की कृपा प्राप्ति करता है।
शिव प्रातः स्मरण स्तोत्रम्
प्रातः स्मरामि भवभीतिहरं सुरेशं
गङ्गाधरं वृषभवाहनमम्बिकेशम्।
खट्वाङ्गशूलवरदाभयहस्तमीशं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्॥१॥
प्रातर्नमामि गिरिशं गिरिजार्धदेहं
सर्गस्थितिप्रलयकारणमादिदेवम्।
विश्वेश्वरं
विजितविश्वमनोSभिरामं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्॥२॥
प्रातर्भजामि शिवमेकमनन्तमाद्यं
वेदान्तवेद्यमनघं पुरुषं महान्तम्।
नामादिभेदरहितं
षड्भावशून्यं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्॥३॥
फलश्रुति-
प्रातः समुत्थाय शिवं विचिन्त्य
श्लोकत्रयं येSनुदिनं पठन्ति।
ते
दुःखजातं बहुजन्मसंचितं
हित्वा पदं यान्ति तदेव शम्भो:॥
Shiv Pratah Smaran Stotram Images
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हिन्दी अर्थ
शिव प्रातः स्मरण स्तोत्र हिन्दी अर्थ सहित
प्रातः स्मरामि भवभीतिहरं सुरेशं
गङ्गाधरं वृषभवाहनमम्बिकेशम्।
खट्वाङ्गशूलवरदाभयहस्तमीशं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्॥१॥
मैं प्रातःकाल उन ईश्वर (शिवजी) का स्मरण करता हूँ जो संसार के भय को हरने वाले, देवताओं के स्वामी, गंगा को धारण करने वाले, वृषभ (बैल) को वाहन बनाने वाले, अम्बिका (पार्वती) के पति हैं। जिनके हाथों में खट्वांग, त्रिशूल, वरद (वरदान देने की मुद्रा) और अभय (भय दूर करने की मुद्रा) हैं, जो संसार रूपी रोग को हरने के लिए अद्वितीय औषधि स्वरूप हैं।
प्रातर्नमामि गिरिशं गिरिजार्धदेहं
सर्गस्थितिप्रलयकारणमादिदेवम्।
विश्वेश्वरं
विजितविश्वमनोSभिरामं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्॥२॥
मैं प्रातःकाल उन गिरिश (पर्वतों के स्वामी) भगवान शिव को नमस्कार करता हूँ, जिनके अर्धांग में गिरिजा (पार्वती) विराजमान हैं, जो सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय के कारण हैं, आदिदेव हैं, विश्व के ईश्वर हैं, जिन्होंने विश्व के मन को जीता है और जो मनोहर हैं। वे संसार रूपी रोग को हरने के लिए अद्वितीय औषधि स्वरूप हैं।
प्रातर्भजामि शिवमेकमनन्तमाद्यं
वेदान्तवेद्यमनघं पुरुषं महान्तम्।
नामादिभेदरहितं
षड्भावशून्यं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्॥३॥
मैं प्रातःकाल उस एकमात्र शिव का भजन करता हूँ, जो अनंत, आदिदेव, वेदांत से जानने योग्य, निष्पाप, महान पुरुष हैं; जो नाम आदि भेदों से रहित और षड्भाव (जन्म, वृद्धि, स्थिरता, परिवर्तन, ह्रास, नाश) से शून्य हैं। वे संसार रूपी रोग को हरने के लिए अद्वितीय औषधि स्वरूप हैं।
फलश्रुति-
प्रातः समुत्थाय शिवं विचिन्त्य
श्लोकत्रयं येSनुदिनं पठन्ति।
ते
दुःखजातं बहुजन्मसंचितं
हित्वा पदं यान्ति तदेव शम्भो:॥
जो व्यक्ति प्रतिदिन प्रातःकाल उठकर शिव का चिंतन करते हुए इन तीन श्लोकों का पाठ करता है, वह अनेक जन्मों से संचित दुःखों को त्यागकर, शिव के उसी परम पद को प्राप्त करता है।
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प्रातः स्मरण का पाठ करने से क्या लाभ होता है? ▼
प्रातः स्मरण का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में मानसिक शांति, आध्यात्मिक उन्नति और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह न केवल दिन की शुभ शुरुआत सुनिश्चित करता है, बल्कि अनेक जन्मों के संचित दुःखों से मुक्ति दिलाकर भगवान शिव के आनंदमय चरणों की प्राप्ति में सहायक होता है।
प्रातः स्मरणम् क्या है? ▼
प्रातः स्मरणम् एक पवित्र स्तोत्र है, जिसमें भगवान शिव की महिमा का वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र प्रातःकाल के समय भगवान शिव का स्मरण करने के लिए विशेष रूप से रचित है, जिससे साधक के जीवन में शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है।
प्रातः स्मरण का प्रथम श्लोक क्या है? ▼
प्रातः स्मरण स्तोत्र का प्रथम श्लोक इस प्रकार है:
प्रातः स्मरामि भवभीतिहरं सुरेशं
गङ्गाधरं वृषभवाहनमम्बिकेशम्।
खट्वाङ्गशूलवरदाभयहस्तमीशं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्॥१॥
इसका अर्थ है: "मैं प्रातःकाल उन ईश्वर का स्मरण करता हूँ जो संसार के भय को हरने वाले, देवताओं के स्वामी, गंगा को धारण करने वाले, वृषभ (बैल) को वाहन बनाने वाले, अम्बिका (पार्वती) के पति हैं। जिनके हाथों में खट्वांग, त्रिशूल, वरद (वरदान देने की मुद्रा) और अभय (भय दूर करने की मुद्रा) हैं, जो संसार रूपी रोग को हरने के लिए अद्वितीय औषधि स्वरूप हैं।"