श्री कमला स्तोत्रम अर्थ सहित (Shri Kamala Stotram)

श्री कमला स्तोत्रम अर्थ सहित, Shri Kamala Stotram

श्री कमला स्तोत्रम

ओंकाररूपिणी देवि विशुद्धसत्त्वरूपिणी,
देवानां जननी त्वं हि प्रसन्ना भव सुन्दरि॥१॥

तन्मात्रंचैव भूतानि तव वक्षस्थलं स्मृतम्,
त्वमेव वेदगम्या तु प्रसन्ना भव सुंदरि॥२॥

देवदानवगन्धर्वयक्षराक्षसकिन्नरः,
स्तूयसे त्वं सदा लक्ष्मि प्रसन्ना भव सुन्दरि॥३॥

लोकातीता द्वैतातीता समस्तभूतवेष्टिता,
विद्वज्जनकीर्त्तिता च प्रसन्ना भव सुंदरि॥४॥

परिपूर्णा सदा लक्ष्मि त्रात्री तु शरणार्थिषु,
विश्वाद्या विश्वकत्रीं च प्रसन्ना भव सुन्दरि॥५॥

ब्रह्मरूपा च सावित्री त्वद्दीप्त्या भासते जगत्।
विश्वरूपा वरेण्या च प्रसन्ना भव सुंदरि॥६॥

क्षित्यप्तेजोमरूद्धयोमपंचभूतस्वरूपिणी।
बन्धादेः कारणं त्वं हि प्रसन्ना भव सुंदरि॥७॥

महेशे त्वं हेमवती कमला केशवेऽपि च,
ब्रह्मणः प्रेयसी त्वं हि प्रसन्ना भव सुंदरि॥८॥

चंडी दुर्गा कालिका च कौशिकी सिद्धिरूपिणी।
योगिनी योगगम्या च प्रसन्ना भव सुन्दरि॥९॥

बाल्ये च बालिका त्वं हि यौवने युवतीति च,
स्थविरे वृद्धरूपा च प्रसन्ना भव सुन्दरि॥१०॥

गुणमयी गुणातीता आद्या विद्या सनातनी,
महत्तत्त्वादिसंयुक्ता प्रसन्ना भव सुन्दरि॥११॥

तपस्विनी तपः सिद्धि स्वर्गसिद्धिस्तदर्थिषु,
चिन्मयी प्रकृतिस्त्वं तु प्रसन्ना भव सुंदरि॥१२॥

त्वमादिर्जगतां देवि त्वमेव स्थितिकारणम्,
त्वमन्ते निधनस्थानं स्वेच्छाचारा त्वमेवहि॥१३॥

चराचराणां भूतानां बहिरन्तस्त्वमेव हि,
व्याप्यव्याकरूपेण त्वं भासि भक्तवत्सले॥१४॥

त्वन्मायया हृतज्ञाना नष्टात्मानो विचेतसः,
गतागतं प्रपद्यन्ते पापपुण्यवशात्सदा॥१५॥

तावन्सत्यं जगद्भाति शुक्तिकारजतं यथा,
यावन्न ज्ञायते ज्ञानं चेतसा नान्वगामिनी॥१६॥

त्वज्ज्ञानात्तु सदा युक्तः पुत्रदारगृहादिषु,
रमन्ते विषयान्सर्वानन्ते दुखप्रदान् ध्रुवम्॥१७॥

त्वदाज्ञया तु देवेशि गगने सूर्यमण्डलम्,
चन्द्रश्च भ्रमते नित्यं प्रसन्ना भव सुन्दरि॥१८॥

ब्रह्मेशविष्णुजननी ब्रह्माख्या ब्रह्मसंश्रया,
व्यक्ताव्यक्त च देवेशि प्रसन्ना भव सुन्दरि॥१९॥

अचला सर्वगा त्वं हि मायातीता महेश्वरि,
शिवात्मा शाश्वता नित्या प्रसन्ना भव सुन्दरि॥२०॥

सर्वकायनियन्त्री च सर्वभूतेश्वरी,
अनन्ता निष्काला त्वं हि प्रसन्ना भवसुन्दरि॥२१॥

सर्वेश्वरी सर्ववद्या अचिन्त्या परमात्मिका,
भुक्तिमुक्तिप्रदा त्वं हि प्रसन्ना भव सुन्दरि॥२२॥

ब्रह्माणी ब्रह्मलोके त्वं वैकुण्ठे सर्वमंगला,
इंद्राणी अमरावत्यामम्बिका वरूणालये॥२३॥

यमालये कालरूपा कुबेरभवने शुभा,
महानन्दाग्निकोणे च प्रसन्ना भव सुन्दरि॥२४॥

नैरृत्यां रक्तदन्ता त्वं वायव्यां मृगवाहिनी,
पाताले वैष्णवीरूपा प्रसन्ना भव सुन्दरि॥२५॥

सुरसा त्वं मणिद्वीपे ऐशान्यां शूलधारिणी,
भद्रकाली च लंकायां प्रसन्ना भव सुन्दरि॥२६॥

रामेश्वरी सेतुबन्धे सिंहले देवमोहिनी,
विमला त्वं च श्रीक्षेत्रे प्रसन्ना भव सुन्दरि॥२७॥

कालिका त्वं कालिघाटे कामाख्या नीलपर्वत,
विरजा ओड्रदेशे त्वं प्रसन्ना भव सुंदरि॥२८॥

वाराणस्यामन्नपूर्णा अयोध्यायां महेश्वरी,
गयासुरी गयाधाम्नि प्रसन्ना भव सुंदरि॥२९॥

भद्रकाली कुरूक्षेत्रे त्वंच कात्यायनी व्रजे,
माहामाया द्वारकायां प्रसन्ना भव सुन्दरि॥३०॥

क्षुधा त्वं सर्वजीवानां वेला च सागरस्य हि,
महेश्वरी मथुरायां च प्रसन्ना भव सुन्दरि॥३१॥

रामस्य जानकी त्वं च शिवस्य मनमोहिनी,
दक्षस्य दुहिता चैव प्रसन्ना भव सुन्दरि॥३२॥

विष्णुभक्तिप्रदां त्वं च कंसासुरविनाशिनी,
रावणनाशिनां चैव प्रसन्ना भव सुन्दरि॥३३॥

लक्ष्मीस्तोत्रमिदं पुण्यं यः पठेद्भक्सिंयुतः,
सर्वज्वरभयं नश्येत्सर्वव्याधिनिवारणम्॥३४॥

इदं स्तोत्रं महापुण्यमापदुद्धारकारणम्,
त्रिसंध्यमेकसन्ध्यं वा यः पठेत्सततं नरः॥३५॥

मुच्यते सर्वपापेभ्यो तथा तु सर्वसंकटात्,
मुच्यते नात्र सन्देहो भुवि स्वर्गे रसातले॥३६॥

समस्तं च तथा चैकं यः पठेद्भक्तित्परः,
स सर्वदुष्करं तीर्त्वा लभते परमां गतिम्॥३७॥

सुखदं मोक्षदं स्तोत्रं यः पठेद्भक्तिसंयुक्तः,
स तु कोटीतीर्थफलं प्राप्नोति नात्र संशयः॥३८॥

एका देवी तु कमला यस्मिंस्तुष्टा भवेत्सदा,
तस्याऽसाध्यं तु देवेशि नास्तिकिंचिज्जगत् त्रये॥३९॥

पठनादपि स्तोत्रस्य किं न सिद्धयति भूतले,
तस्मात्स्तोत्रवरं प्रोक्तं सत्यं हि पार्वति॥४०॥

॥ इति श्रीकमला स्तोत्रं सम्पूर्णम्॥


हिन्दी अर्थ

श्री कमला स्तोत्रम हिन्दी अर्थ सहित

ओंकाररूपिणी देवि विशुद्धसत्त्वरूपिणी,
देवानां जननी त्वं हि प्रसन्ना भव सुन्दरि॥१॥

हे देवी लक्ष्मी! आप ओंकारस्वरूपिणी हैं। आप विशुद्धसत्त्व गुणरूपिणी और देवताओं की माता है। हे सुंदरी! आप हम पर प्रसन्न हो।

तन्मात्रंचैव भूतानि तव वक्षस्थलं स्मृतम्,
त्वमेव वेदगम्या तु प्रसन्ना भव सुंदरि॥२॥

हे सुंदरी! पंचभूत और पंचतन्मात्रा आपके वक्षस्थल हैं, केवल वेद द्वारा ही आपको जाना जाता है। आप मुझ पर कृपा करें।

देवदानवगन्धर्वयक्षराक्षसकिन्नरः,
स्तूयसे त्वं सदा लक्ष्मि प्रसन्ना भव सुन्दरि॥३॥

हे देवी लक्ष्मी! देव, दानव, गंधर्व, यक्ष, राक्षस् और किन्नर सभी आपकी स्तुति करते है।  आप हम पर प्रसन्न हो।

लोकातीता द्वैतातीता समस्तभूतवेष्टिता,
विद्वज्जनकीर्त्तिता च प्रसन्ना भव सुंदरि॥४॥

हे जननी! आप लोक और द्वैत से परे और सम्पूर्ण भूतगणों से घिरी हुई रहती हैं। विद्वान लोग सदा आपका गुण-कीर्तन करते हैं। हे सुंदरी! आप मुझ पर प्रसन्न हो।

परिपूर्णा सदा लक्ष्मि त्रात्री तु शरणार्थिषु,
विश्वाद्या विश्वकत्रीं च प्रसन्ना भव सुन्दरि॥५॥

हे देवी लक्ष्मी! आप नित्यपूर्णा शरणागतों का उद्धार करने वाली विश्व की आदि और रचना करने वाली हैं। हे सुन्दरी! आप मुझ पर प्रसन्न हो।

ब्रह्मरूपा च सावित्री त्वद्दीप्त्या भासते जगत्।
विश्वरूपा वरेण्या च प्रसन्ना भव सुंदरि॥६॥

हे माता! आप ब्रह्मरूपिणी, सावित्री हैं। आपकी दीप्ति से ही त्रिजगत प्रकाशित होता है। आप विश्वरूपा और वर्णन करने योग्य हैं। हे सुंदरी! आप मुझ पर कृपा करें।

क्षित्यप्तेजोमरूद्धयोमपंचभूतस्वरूपिणी।
बन्धादेः कारणं त्वं हि प्रसन्ना भव सुंदरि॥७॥

हे जननी! क्षिति, जल, तेज, मरूत् और व्योम पंचभूतों की स्वरूप आप ही हैं। गंध, जल का रस, तेज का रूप, वायु का स्पर्श और आकाश में शब्द आप ही हैं। आप इन पंचभूतों के गुण प्रपंच का कारण हैं। आप हम पर प्रसन्न हो।

महेशे त्वं हेमवती कमला केशवेऽपि च,
ब्रह्मणः प्रेयसी त्वं हि प्रसन्ना भव सुंदरि॥८॥

हे देवी! आप शूलपाणि महादेवजी की प्रियतमा हैं। आप केशव की प्रियतमा कमला और ब्रह्मा की प्रेयसी ब्रह्माणी हैं।
आप हम पर प्रसन्न हो।

चंडी दुर्गा कालिका च कौशिकी सिद्धिरूपिणी।
योगिनी योगगम्या च प्रसन्ना भव सुन्दरि॥९॥

हे देवी! आप चंडी, दुर्गा, कालिका, कौशिकी, सिद्धिरूपिणी, योगिनी हैं। आपको केवल योग से ही प्राप्त किया जाता है। आप हम पर प्रसन्न हो।

बाल्ये च बालिका त्वं हि यौवने युवतीति च,
स्थविरे वृद्धरूपा च प्रसन्ना भव सुन्दरि॥१०॥

हे देवी! आप बाल्यकाल में बालिका, यौवनकाल में युवती और वृद्धावस्था में वृद्धारूप होती हैं। हे सुन्दरी! आप हम पर प्रसन्न हो।

गुणमयी गुणातीता आद्या विद्या सनातनी,
महत्तत्त्वादिसंयुक्ता प्रसन्ना भव सुन्दरि॥११॥

हे जननी! आप गुणमयी, गुणों से परे, आप आदि, आप सनातनी और महत्तत्त्वादिसंयुक्त हैं। हे सुंदरी! आप हम पर प्रसन्न हो।

तपस्विनी तपः सिद्धि स्वर्गसिद्धिस्तदर्थिषु,
चिन्मयी प्रकृतिस्त्वं तु प्रसन्ना भव सुंदरि॥१२॥

हे माता! आप तपस्वियों की तपःसिद्धि स्वर्गार्थिगणों की स्वर्गसिद्धि, आनंदस्वरूप और मूल प्रकृति हैं। हे सुंदरी! आप हम पर प्रसन्न हो।

त्वमादिर्जगतां देवि त्वमेव स्थितिकारणम्,
त्वमन्ते निधनस्थानं स्वेच्छाचारा त्वमेवहि॥१३॥

हे जननी! आप जगत् की आदि, स्थिति का एकमात्र कारण हैं। देह के अंत में जीवगण आपके ही निकट जाते हैं।
आप स्वेच्छाचारिणी हैं। आप हम पर प्रसन्न हो।

चराचराणां भूतानां बहिरन्तस्त्वमेव हि,
व्याप्यव्याकरूपेण त्वं भासि भक्तवत्सले॥१४॥

हे भक्तवत्सले! आप चराचर जीवगणों के बाहर और भीतर दोनों स्थलों में विराजमान रहती हैं। आपको नमस्कार है।

त्वन्मायया हृतज्ञाना नष्टात्मानो विचेतसः,
गतागतं प्रपद्यन्ते पापपुण्यवशात्सदा॥१५॥

हे माता! जीवगण आपकी माया से ही अज्ञानी और चेतनारहित होकर पुण्य के वश से बारम्बार इस संसार में आवागमन करते हैं।

तावन्सत्यं जगद्भाति शुक्तिकारजतं यथा,
यावन्न ज्ञायते ज्ञानं चेतसा नान्वगामिनी॥१६॥

जैसे सीपी में अज्ञानतावश चांदी का भ्रम हो जाता है और फिर उसके स्वरूप का ज्ञान होने पर वह भ्रम दूर हो जाता है वैसे ही जब तक ज्ञानमयी चित्त में आपका स्वरूप नहीं जाना जाता है। तब तक ही यह जगत् सत्य भासित होता है। परन्तु आपके स्वरूप का ज्ञान हो जाने से यह सारा संसार मिथ्या लगने लगता है।

त्वज्ज्ञानात्तु सदा युक्तः पुत्रदारगृहादिषु,
रमन्ते विषयान्सर्वानन्ते दुखप्रदान् ध्रुवम्॥१७॥

जो मनुष्य आपके ज्ञान से पृथक रहते हुए जगत् को ही सत्य मानकर विषयों में लगे रहते हैं। निःसंदेह अंत में उनको महादुख मिलता है।

त्वदाज्ञया तु देवेशि गगने सूर्यमण्डलम्,
चन्द्रश्च भ्रमते नित्यं प्रसन्ना भव सुन्दरि॥१८॥

हे देवेश्वरी! आपकी आज्ञा से ही सूर्य और चंद्रमा आकाश मण्डल में नियमित भ्रमण करते है। आप हम पर प्रसन्न हो।

ब्रह्मेशविष्णुजननी ब्रह्माख्या ब्रह्मसंश्रया,
व्यक्ताव्यक्त च देवेशि प्रसन्ना भव सुन्दरि॥१९॥

हे देवेश्वरी! आप ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर की भी जननी हैं। आप ब्रह्माख्या और ब्रह्मासंश्रया हैं। आप ही प्रगट और गुप्त रूप से विराजमान रहती है। हे देवी! आप हम पर प्रसन्न हो।

अचला सर्वगा त्वं हि मायातीता महेश्वरि,
शिवात्मा शाश्वता नित्या प्रसन्ना भव सुन्दरि॥२०॥

हे देवी! आप अचल, सर्वगामिनी, माया से परे, शिवात्मा और नित्य है। हे देवी! आप हम पर प्रसन्न हो।

सर्वकायनियन्त्री च सर्वभूतेश्वरी,
अनन्ता निष्काला त्वं हि प्रसन्ना भवसुन्दरि॥२१॥

हे देवी! आप सबकी देह की रक्षक हैं। आप सम्पूर्ण जीवों की ईश्वरी, अनन्त और अखंड है। आप हम पर प्रसन्न हो।

सर्वेश्वरी सर्ववद्या अचिन्त्या परमात्मिका,
भुक्तिमुक्तिप्रदा त्वं हि प्रसन्ना भव सुन्दरि॥२२॥

हे माता! सभी भक्तिपूर्वक आपकी वंदना करते हैं। आपकी कृपा से ही भुक्ति और मुक्ति प्राप्त होती है। हे सुंदरि! आप हम पर प्रसन्न हो। 

ब्रह्माणी ब्रह्मलोके त्वं वैकुण्ठे सर्वमंगला,
इंद्राणी अमरावत्यामम्बिका वरूणालये॥२३॥

हे माता! आप ब्रह्मलोक में ब्रह्माणी, वैकुण्ठ में सर्वमंगला अमरावती में इंद्राणी और वरूणालय में अम्बिकास्वरूपिणी हैं। आपको नमस्कार है।

यमालये कालरूपा कुबेरभवने शुभा,
महानन्दाग्निकोणे च प्रसन्ना भव सुन्दरि॥२४॥

हे देवी! आप यम के गृह में कालरूप, कुबेर के भवन में शुभदायिनी और अग्निकोण में महानन्दस्वरूपिणी हैं। हे सुन्दरी! आप हम पर प्रसन्न हो।

नैरृत्यां रक्तदन्ता त्वं वायव्यां मृगवाहिनी,
पाताले वैष्णवीरूपा प्रसन्ना भव सुन्दरि॥२५॥

हे देवी! आप नैरृत्य में रक्तदन्ता, वायव्य कोण में मृगवाहिनी और पाताल में वैष्णवी रूप से विराजमान रहती हैं। हे सुंदरी! आप हम पर प्रसन्न हो।

सुरसा त्वं मणिद्वीपे ऐशान्यां शूलधारिणी,
भद्रकाली च लंकायां प्रसन्ना भव सुन्दरि॥२६॥

हे देवी! आप मणिद्वीप में सुरसा, ईशान कोण में शूलधारिणी और लंकापुरी में भद्रकाली रूप में स्थित रहती हैं। हे सुंदरी! आप हम पर प्रसन्न हो।

रामेश्वरी सेतुबन्धे सिंहले देवमोहिनी,
विमला त्वं च श्रीक्षेत्रे प्रसन्ना भव सुन्दरि॥२७॥

हे देवी! आप सेतुबन्ध में रामेश्वरी, सिंहद्वीप में देवमोहिनी और पुरूषोत्तम में विमला नाम से स्थित रहती हैं। हे सुंदरी! आप हम पर प्रसन्न हो।

कालिका त्वं कालिघाटे कामाख्या नीलपर्वत,
विरजा ओड्रदेशे त्वं प्रसन्ना भव सुंदरि॥२८॥

हे देवी! आप कालीघाट पर कालिका, नीलपर्वत पर कामाख्या और औड्र देश में विरजारूप में विराजमान रहती हैं।
हे सुंदरी! आप हम पर प्रसन्न हो।

वाराणस्यामन्नपूर्णा अयोध्यायां महेश्वरी,
गयासुरी गयाधाम्नि प्रसन्ना भव सुंदरि॥२९॥

हे देवी! आप वाराणसी क्षेत्र में अन्नपूर्णा, अयोध्या नगरी में माहेश्वरी और गयाधाम में गयासुरी रूप से विराजमान रहती हैं। हे सुंदरी! आप हम पर प्रसन्न हो।

भद्रकाली कुरूक्षेत्रे त्वंच कात्यायनी व्रजे,
माहामाया द्वारकायां प्रसन्ना भव सुन्दरि॥३०॥

हे देवी! आप कुरूक्षेत्र में भद्रकाली, वज्रधाम में कात्यायनी और द्वारकापुरी में महामाया रूप में विराजमान रहती हैं।हे देवी! आप हम पर प्रसन्न हो।

क्षुधा त्वं सर्वजीवानां वेला च सागरस्य हि,
महेश्वरी मथुरायां च प्रसन्ना भव सुन्दरि॥३१॥

हे देवी! आप सम्पूर्ण जीवों में क्षुधारूपिणी हैं। आप मथुरानगरी में महेश्वरी रूप में विराजमान रहती हैं। हे देवी! आप हम पर प्रसन्न हो।

रामस्य जानकी त्वं च शिवस्य मनमोहिनी,
दक्षस्य दुहिता चैव प्रसन्ना भव सुन्दरि॥३२॥

हे देवी! आप रामचंद्र की जानकी और शिव को मोहने वाली दक्ष की पुत्री है। हे देवी! आप हम पर प्रसन्न हो।

विष्णुभक्तिप्रदां त्वं च कंसासुरविनाशिनी,
रावणनाशिनां चैव प्रसन्ना भव सुन्दरि॥३३॥

हे माता! आप विष्णु की भक्ति देने वाली, कंस और रावण का नाश करने वाली है। हे देवी! आप हम पर प्रसन्न हो।

लक्ष्मीस्तोत्रमिदं पुण्यं यः पठेद्भक्सिंयुतः,
सर्वज्वरभयं नश्येत्सर्वव्याधिनिवारणम्॥३४॥

जो प्राणी भक्ति सहित सर्वव्याधि के नाशक इस पवित्र लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करता है। उसे किसी प्रकार का ज्वर का भय नहीं रहता है।

इदं स्तोत्रं महापुण्यमापदुद्धारकारणम्,
त्रिसंध्यमेकसन्ध्यं वा यः पठेत्सततं नरः॥३५॥

मुच्यते सर्वपापेभ्यो तथा तु सर्वसंकटात्,
मुच्यते नात्र सन्देहो भुवि स्वर्गे रसातले॥३६॥

यह लक्ष्मी स्तोत्र परम पवित्र और विपत्ति का नाशक है। जो प्राणी तीनों संध्याओं में अथवा केवल एक बार ही इसका पाठ करता है। वह सभी पापों से छूट जाता है। स्वर्ग, मर्त्य, पाताल आदि में कहीं भी उसको किसी प्रकार का संकट नहीं होता।इसमें संदेह नहीं है।

समस्तं च तथा चैकं यः पठेद्भक्तित्परः,
स सर्वदुष्करं तीर्त्वा लभते परमां गतिम्॥३७॥

जो प्राणी भक्तियुक्त चित्त से सम्पूर्ण स्तोत्र अथवा इसका एक श्लोक भी पढ़ता है। वह सम्पूर्ण पापों से मुक्त होकर परमगति को प्राप्त होता है।

सुखदं मोक्षदं स्तोत्रं यः पठेद्भक्तिसंयुक्तः,
स तु कोटीतीर्थफलं प्राप्नोति नात्र संशयः॥३८॥

जो मनुष्य भक्तियुक्त होकर सुख और मोक्ष के देने वाले इस लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करता है। उसको करोड़ तीर्थों का फल प्राप्त होता है इसमें संदेह नहीं है।

एका देवी तु कमला यस्मिंस्तुष्टा भवेत्सदा,
तस्याऽसाध्यं तु देवेशि नास्तिकिंचिज्जगत् त्रये॥३९॥

हे देवेशि! जिस पर आपकी कृपा हो, उसको तीनों लोकों में कुछ भी असंभव नहीं है।

पठनादपि स्तोत्रस्य किं न सिद्धयति भूतले,
तस्मात्स्तोत्रवरं प्रोक्तं सत्यं हि पार्वति॥४०॥

हे पार्वती! मैं सत्य कहता हूं कि पृथ्वी पर ऐसा कुछ भी नहीं है। जो इस स्तोत्र का पाठ करने से सुलभ न हो। यह स्तोत्र मैंने तुम्हें सत्य कहा है।

॥ इति श्रीकमला स्तोत्रं सम्पूर्णम्॥

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