श्री कृष्ण शलाका प्रश्नावली (Shri Krishna Shalaka Prashnavali)
श्री कृष्ण शलाका प्रश्नावली online
अभीष्ट प्रश्न का उत्तर जानने के लिये सर्वप्रथम भगवान श्री कृष्ण का ध्यान करें।
फिर श्रद्धापूर्वक किसी भी कोष्ठक में उंगली या शलाका रखें।
जैसे ही आप किसी कोष्ठक को चुनेंगे, उससे बनने वाली चौपाई और फलादेश आप नीचे देख पाएंगे।
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मिलहहिं तुमहि विजय रन माहीं। जीत न सकत इन्द्रहू चाहीं॥
अर्थ: यह चौपाई उस समय की है जब युद्ध के लिए तैयार अर्जुन, माँ दुर्गा की स्तुति करता है, तो माँ दुर्गा उसे आशीर्वाद देते हुए ये पंक्तियाँ कहती हैं।
प्रश्न का फल: इस प्रश्न का फल अत्यंत श्रेष्ठ है। कार्य की सिद्धि अवश्य होगी एवं शीघ्र होगी।
मार्गदर्शन: इस प्रश्न का फल जान कर कहीं आप प्रयास करना न छोड़ दें। कार्य के सिद्ध होने का कारण आपका अब तक का प्रयास तथा आपका शुभ समय है, प्रयास जारी रखें।
भागि तुम्हारि न जाय बखानी। धन्य न कोउ तुम सम जग प्रानी॥
अर्थ: यह चौपाई भारतकाण्ड से ली गई है। इसमें सूर्यग्रहण के अवसर पर इकट्ठे हुए राजा, महाराजा उग्रसेन की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि तुम बड़े भाग्यशाली हो, संसार का कोई भी प्राणी तुम्हारी भांति धन्य नहीं है।
प्रश्न का फल: प्रश्न का फल उत्तम है कार्य की सिद्धि होगी।
मार्गदर्शन: इस प्रश्न के उत्तम फल को जानकर परिश्रम करना न छोड़ें। याद रहे इस प्रश्न का यह फल आपके इस समय किये जाने वाले प्रयास के कारण आया है। यदि आप भाग्य पर अत्यधिक भरोसा करके परिश्रम करना छोड़ देंगे तो कार्य सिद्ध कैसे होगा। प्रयास एवं परिश्रम जारी रखें।
मन अनुकूल सदा होइ जाई। विधि विधान में यह नहीं भाई॥
अर्थ: यह चौपाई द्वारकाकाण्ड से ली गई है। इस चौपाई में रुकमणी स्वयंवर में शिशुपाल के हार जाने पर जरासंध उसे समझाते हुए कहता है कि जैसा मन की इच्छा हो वैसा हमेंशा हो जाये ऐसा विधि का विधान नहीं है।
प्रश्न का फलः प्रश्न का फल मध्यम है। कुछ अनिष्ट होने की आशंका तो नहीं किन्तु कार्य सिद्ध भी नहीं होगा।
मार्गदर्शन: परिश्रम करते रहें। इस कार्य में किसी का कोई अहित नहीं होगा, इसलिए मन लगा कर कार्य करते रहें। यदि इस कार्य में आपको सफलता नहीं भी मिलेगी तो भी सबक तो अवश्य ही मिलेगा। कार्य में सफलता नहीं मिलेगी, ये सोच कर कार्य को यदि पूरे मन से नहीं करेंगे तो असफलता का कारण आपका मन लगाकर कार्य न करना होगा और ये आपके लिए अच्छा नहीं है।
हरि इच्छा हरिसन नहीं पूछा। होइहहु अवसि मनोरथ छूछा॥
अर्थ: यह चौपाई स्वर्गारोहण काण्ड से ली गई है। इसमें बताया गया है कि ऋषियों ने बिना भगवान श्रीकृष्ण से पूछे शाप के प्रभाव से साम्ब के पेट से निकले मूसल को चूर्ण करके समुद्र में फेंक दिया था।
प्रश्न का फल: प्रश्न का फल बहुत बुरा है। इस कार्य की सिद्धि कभी नहीं होगी।
मार्गदर्शन: इस कार्य के लिए आपका परिश्रम करना व्यर्थ है। कुछ कार्यों के लिए प्रयास करना अपनी ऊर्जा को व्यर्थ में गंवाना ही होता हैं। इसलिए उत्तम यही है कि समय रहते उस कार्य से हट जाएं एवं अपनी ऊर्जा को किसी अन्य कार्य में लगाएं। समय न गंवाएं। गया हुआ समय वापिस नहीं आ सकता।
होइहहु सफल सदा सब ठांही। नहीं तनिक संशय यहि माहीं।।
अर्थ: यह चौपाई ज्ञान काण्ड से ली गई है, जिसमें भीष्म राजनितिक ज्ञान दे रहे हैं।
प्रश्न का फल: इस प्रश्न का फल उत्तम है। कार्य की सिद्धि अवश्य होगी।
मार्गदर्शन: इस प्रश्न के उत्तम फल को जानकर परिश्रम करना न छोड़ें। याद रहे इस प्रश्न का यह फल आपके इस समय किये जाने वाले प्रयास के कारण आया है। यदि आप भाग्य पर अत्यधिक भरोसा करके परिश्रम करना छोड़ देंगे तो कार्य सिद्ध कैसे होगा। प्रयास एवं परिश्रम जारी रखें।
असफल होइ निराश न होई। सफल होत संशय नहीं कोई॥
अर्थ: यह चौपाई ब्रजकाण्ड से ली गई है। यह चौपाई उस समय की है जब भगवान श्रीकृष्ण जी ने अपने सखाओं को समझाया था कि वे भोजन के लिए द्विज पत्नियों के पास जाएं।
प्रश्न का फल: प्रश्न का फल सामान्य है। फल तो मिलेगा किन्तु उसके लिए निरन्तर प्रयास करना होगा।
मार्गदर्शन: यदि असफलता दिखाई भी दे तो हार न मानें। निरन्तर प्रयास जारी रखें। सफलता अवश्य मिलेगी। यदि कार्य के बीच में हार मान लेंगे तो असफल होना तय है, किन्तु यदि आप दृढ़ निश्चय करके प्रयास जारी रखेंगे तो आप सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
तन मन कर जहं मेल न होई। बनत न काज कहत सब कोई॥
अर्थ: भारतकाण्ड से ली गई इस चौपाई में गांधारी अपने पुत्र को समझाते हुए कहती है कि जहाँ तन और मन का मेल नहीं होता अर्थात जिस कार्य मैं तन और मन एक साथ नहीं लगते उस कार्य में सफलता नहीं मिलती है।
प्रश्न का फल: प्रश्न का फल उत्तम नहीं है। कार्य के सिद्ध होने में संदेह है, और इसका कारण है कार्य में पूरी तरह मन न लगना।
मार्गदर्शन: प्रश्न का उत्तर जान कर घबराएं नहीं, अपितु और भी अधिक परिश्रम करें। ऐसा कोई भी कार्य जिसे आप पूरे मन के साथ नहीं कर रहे, उसका सफल होना संभव नहीं है। इसलिए पूरा मन लगा कर ही उस कार्य को करें। जय श्री कृष्ण
विधि विधान कर उलटन हारा। नहीं समर्थ कोउ यहि संसारा॥
अर्थ: यह चौपाई मथुरा काण्ड से ली गई है। जब अक्रूर जी धृतराष्ट्र को समझाते हैं तो धृतराष्ट्र उनको उत्तर देते हुए ये पंक्तियाँ कहता है।
प्रश्न का फल: प्रश्न का फल उत्तम नहीं है। कार्य की सिद्धि होने में संदेह है।
मार्गदर्शन: इस कार्य को करने के लिए एक बार फिर से विचार कर लें। यदि इस कार्य में आपका एवं दूसरों का भला है तो प्रयास पूरे मन के साथ जारी रखें, किन्तु यदि इस कार्य को करने में किसी का भला नहीं होगा तो इस कार्य को यहीं बंद कर दें। अपनी ऊर्जा एवं समय को व्यर्थ न गवाएं। जो उचित हो वही करें।
किये सुकृत बहु पावत नाहीं। वह गति दीन आजु तेहि काहीं॥
अर्थ: यह चौपाई स्वर्गारोहण काण्ड से ली गई है। इस चौपाई में भगवान् श्रीकृष्ण अपने पैर के तलवे में बाण मारने वाले व्याध (शिकारी) को सद्गति दे रहे हैं।
प्रश्न का फल: प्रश्न का फल अति श्रेष्ठ है। कार्य की शीघ्र सिद्धि होगी।
मार्गदर्शन: इस प्रश्न के उत्तम फल को जानकर परिश्रम करना न छोड़ें। याद रहे इस प्रश्न का यह फल आपके इस समय किये जाने वाले प्रयास के कारण आया है। यदि आप भाग्य पर अत्यधिक भरोसा करके परिश्रम करना छोड़ देंगे तो कार्य सिद्ध कैसे होगा। प्रयास एवं परिश्रम जारी रखें।
कह धर्मज जेहि पर तव दाया। सहजहीं सुलभ विजय यदुराया॥
अर्थ: यह चौपाई भरतकाण्ड से ली गई है। भीष्म पितामह के रथ से गिर जाने पर धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्रीकृष्ण जी से ये पंक्तियाँ कहते हैं।
प्रश्न का फल: इस प्रश्न का फल श्रेष्ठ है। कार्य की सिद्धि होगी।
मार्गदर्शन: इस प्रश्न के उत्तम फल को जानकर परिश्रम करना न छोड़ें। याद रहे इस प्रश्न का यह फल आपके इस समय किये जाने वाले प्रयास के कारण आया है। यदि आप भाग्य पर अत्यधिक भरोसा करके परिश्रम करना छोड़ देंगे तो कार्य सिद्ध कैसे होगा। प्रयास एवं परिश्रम जारी रखें।
काम न होई असंभव कोई। साहस करइ लहइ फल सोई॥
अर्थ: यह चौपाई ब्रजकाण्ड से ली गई है। जब ब्रजवासी वृषभासुर से भयभीत हो जाते हैं तो भगवान श्रीकृष्ण उनका साहस बढ़ाने और डर दूर करने के लिए ये पंक्तियाँ कहते हैं।
प्रश्न का फल: प्रश्न का फल उत्तम है। यदि साहसपूर्वक निरन्तर प्रयास करते रहे तभी कार्य की सिद्धि होगी।
मार्गदर्शन: इस प्रश्न के उत्तम फल को जानकर परिश्रम करना न छोड़ें, क्योंकि इस कार्य के सिद्ध होने का सबसे बड़ा कारण आपका, साहसपूर्व किया गया प्रयास ही है। यदि आप साहस एवं सद्बुद्धि के साथ प्रयास करते रहेंगे तो अवश्य सफल होंगे।
मिलत न शांति कुसंगति माहीं। नित नव व्याधि ग्रसत नर काहीं॥
अर्थ: ये चौपाई भरतकाण्ड से ली गई है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण दुर्योधन को धृतराष्ट्र के दरबार में संधि के लिए समझा रहे हैं।
प्रश्न का फल: इस प्रश्न का फल अत्यंत बुरा है। कार्य सिद्ध नहीं होगा और इसके करने में अनिष्ट की आशंका भी है।
मार्गदर्शन: इस प्रश्न का फल अत्यंत बुरा है। उत्तम होगा इस कार्य को यहीं रोक दें। अनिष्ट से बचने का यहीं एक तरीका है और जितना कार्य अब तक कर चुके हैं उसे भी भूल जाएं।
श्री कृष्ण शलाका प्रश्नावली
श्री कृष्ण शलाका प्रश्नावली का उपयोग कैसे करें?
अभीष्ट प्रश्न का उत्तर जानने के लिये सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करें। फिर श्रद्धापूर्वक किसी भी कोष्ठक में उंगली या शलाका रखें। इसके बाद, उस अक्षर तथा उससे क्रमशः बारहवें अक्षर को लिख लें। तदनुसार चौपाई बनेगी, जो अभीष्ट प्रश्न का उत्तर होगी।
१- तन मन कर जहं मेल न होई।
बनत काज कहत सब कोई॥
फल - भारतकाण्ड में गांधारी अपने पुत्र को समझा रही है। फल उत्तम नहीं है। कार्य में पूर्ण रुप से मन नहीं लग रहा है। इससे अभीष्ट कार्य के सिद्ध होने में संदेह है।
२- मन अनुकूल सदा होइ जाई।
विधि विधान में यह नहीं भाई॥
फल - द्वारकाकाण्ड में जरासन्ध शिशुपाल को रुक्मणी स्वयंवर के समय हार जाने पर समझा रहा है। इसका फल मध्यम है। किसी अभीष्ट की आशंका तो नहीं है, परन्तु अभीष्ट कार्य की सिद्धि भी नहीं होगी।
३- हरि इच्छा हरिसन नहीं पूछा।
होइहहु अवसि मनोरथ छूछा॥
फल - स्वर्गारोहण काण्ड में बिना भगवान् कृष्ण से पूछे ऋषियों का शाप से साम्ब के पेट से निकले मूसल को चूर्ण करके समुद्र में फेंक दिया था। इसका फल खराब है। अभीष्ट कार्य की सिद्धि कभी भी नहीं होगी।
४- होइहहु सफल सदा सब ठांही।
नहीं तनिक संशय यहि माहीं॥
फल - यह चौपाई भीष्म जी के राजनीतिक उपदेश के ज्ञान-काण्ड में है। प्रश्न-फल उत्तम है। अभीष्ट कार्य की सिद्धि अवश्य होगी।
५- असफल होइ निराश न होई।
सफल होत संशय नहीं कोई॥
फल - यह चौपाई उस समय की है, जब श्रीकृष्ण ने अपने सखाओं को समझाकर ब्रजकाण्ड में भोजन हेतु द्विज-पत्नियों के पास भेजा था। फल सामान्य है। निरन्तर प्रयत्न करने से ही फल मिलना सम्भव है।
६- भागि तुम्हारि न जाय बखानी।
धन्य न कोउ तुम सम जग प्रानी॥
फल - भारत-काण्ड में इसको सूर्य-ग्रहण के अवसर पर एकत्रित हुए राजा-महाराजा उग्रसेन से कहते हैं। यह फल उत्तम है। अभीष्ट कार्य की सिद्धि होगी।
७- विधि विधान कर उलटन हारा।
नहीं समर्थ कोउ यहि संसारा॥
फल - मथुरा काण्ड में अक्रूरजी के समझाने पर धृतराष्ट्र का कथन है। प्रश्न-फल सामान्यतया उत्तम नहीं है, अभीष्ट कार्य की सिद्धि पाना सन्देहास्पद जान पड़ता है।
८- किये सुकृत बहु पावत नाहीं।
वह गति दीन आजु तेहि काहीं॥
फल - स्वर्गारोहण काण्ड में भगवान् कृष्ण अपने पैर के तलवे में बाण मारने वाले व्याध को शुभ गति दे रहे हैं। प्रश्न-फल अतीव श्रेष्ठ है। अभीष्ट कार्य की शीघ्र सिद्धि ही मिलेगी।
९- कह धर्मज जेहि पर तव दाया।
सहजहीं सुलभ विजय यदुराया॥
फल - भरतकाण्ड में भीष्म पितामह के रथ से गिर जाने पर युधिष्ठिर भगवान् श्रीकृष्ण से कह रहे हैं। प्रश्नफल श्रेष्ठ है। अभीष्ट कार्य की सिद्धि होगी।
१०- काम न होई असंभव कोई।
साहस करइ लहइ फल सोई॥
फल - ब्रजकाण्ड में भगवान् कृष्ण ब्रजवासियों से वृषभासुर द्वारा भयभीत होने पर कह रहे हैं। प्रश्नफल सामान्यतया उत्तम है। साहस पूर्वक निरन्तर प्रयत्न करने पर ही अभीष्ट कार्य की सिद्धि होगी।
११- मिलत न शांति कुसंगति माहीं।
नित नव व्याधि ग्रसत नर काहीं॥
फल - भरतकाण्ड में धृतराष्ट्र के दरबार में जाकर भगवान् श्रीकृष्ण दुर्योधन को संधि के लिए समझा रहे हैं। प्रश्नफल अत्यन्त नेष्ट है। अभीष्ट कार्य के अतिरिक्त अनिष्ट होने की संभावना भी है।
१२- मिलहहिं तुमहि विजय रन माहीं।
जीत न सकत इन्द्रहू चाहीं॥
फल - युद्ध के लिए तैयार अर्जुन ने जब भगवती दुर्गा देवी की स्तुति की तो भगवती दुर्गा ने उन्हें आशीर्वाद दिया। यह उसी समय की चौपाई है। प्रश्न-फल अतीव श्रेष्ठ है। अभीष्ट कार्य की शीघ्र सिद्धि ही मिलेगी।