सम्पूर्ण श्रीमद भगवद गीता हिन्दी अर्थ सहित (Shrimad Bhagavad Gita in Hindi)
श्रीमद भगवद गीता हिन्दी में (Shrimad Bhagavad Gita in Hindi) पढ़ें। यह सनातन (हिन्दू) धर्म का धार्मिक ग्रंथ है। यह महाभारत के भीष्मपर्व के अन्तर्गत एक उपनिषद् है। जिसमें कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का संदेश (उपदेश) दिया था। क्योंकि अर्जुन युद्ध भूमि में अपने सगे संबंधियों को देखकर विचलित हो गए थे।
इसलिए सारथी के रूप में उपस्थित श्रीकृष्ण ने अर्जुन की ऐसी स्थिति देखकर कर्म और धर्म के सच्चे ज्ञान का उपदेश दिया, जिनका संग्रह और संकलन को "श्रीमद भगवद्गीता" के नाम से जाना जाता है। इसमें भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन के सभी सवालों का उत्तर दिया। जिससे वह कर्म की ओर उन्मुख हुये।
आज के समय में भी गीता का ज्ञान अनमोल है, इसमें कर्म की प्रधानता पर ज़ोर दिया गया है। जिस प्रकार अर्जुन युद्ध क्षेत्र में निराश होकर युद्ध को छोडने का मन बना रहे थे, उसी प्रकार आज के समय में मनुष्य भी अपनी समस्याओं और परिस्थितियों से लड़ने की बजाय उनसे भागते रहते हैं और उस परिस्थिति को भोगते रहते हैं। इसलिए गीता कर्तव्यनिष्ठ होने का संदेश देती है।
भगवद गीता के ज्ञान से किसी भी परिस्थितियों से गुजर रहे व्यक्ति को नई ऊर्जा और सकारात्मकता मिलती है। व्यक्ति कर्म की ओर उन्मुख (कर्तव्यनिष्ठ) होता है। देश-विदेश के कुछ महानुभाओं ने भी गीता ज्ञान की महत्ता के बारे में बताया है, जिन्हे आप आगे पढ़ सकते हैं।
सम्पूर्ण श्रीमद भगवद्गीता (Complete Shrimad Bhagvad Gita in Hindi)
11. भगवद्गीता का ग्यारहवाँ अध्याय (विश्वरूपदर्शनयोग)
इन सभी अध्यायों के पाठ के पश्चात श्रीमद भगवतगीता माहात्म्य का पाठ अवश्य करना चाहिए। इससे ही इस पाठ का फल प्राप्त होता है।
श्रीमद भगवद्गीता के बारे में महापुरुषों के कथन व विचार
भगवान श्री कृष्ण जिनके मुख से अमृत रूपी गीता ज्ञान की वर्षा जनकल्याण के लिए हुई थी, उनका इसके बारे में क्या कथन है? सर्वप्रथम उसे जानना चाहिए।
गीता मे हृदयं पार्थ गीता मे सारमुत्तमम्।
गीता मे ज्ञानमत्युग्रं गीता मे
ज्ञानमव्ययम्॥
गीता मे चोत्तमं स्थानं गीता मे परमं पदम्।
गीता मे परमं
गुह्यं गीता मे परमो गुरुः॥
गीता मेरा हृदय है। गीता मेरा उत्तम सार है। गीता मेरा अति उग्र ज्ञान है। गीता मेरा अविनाशी ज्ञान है। गीता मेरा श्रेष्ठ निवासस्थान है। गीता मेरा परम पद है। गीता मेरा परम रहस्य है। गीता मेरा परम गुरु है। –भगवान श्री कृष्ण
इसके पश्चात सभी वेदों के रचयिता महर्षि वेदव्यास जी के श्रीमद भगवद्गीता के बारे में कथन प्रस्तुत है, इसे भी अवश्य जानना चाहिए।
गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः।
या स्वयं पद्मनाभस्य
मुखपद्माद्विनिःसृता॥
जो अपने आप श्रीविष्णु भगवान के मुखकमल से निकली हुई है वह गीता अच्छी तरह कण्ठस्थ करना चाहिए।अन्य शास्त्रों के विस्तार से क्या लाभ? -महर्षि व्यास
श्रीमद भगवद गीता एक विश्वविख्यात ग्रंथ है, भारत के अतिरिक्त अन्य देशों के महान विभूतियों ने इसकी महत्ता के बारे में बात की है।
कनाडा के प्रधानमंत्री रहे मिस्टर पियरे ट्रूडो ने श्रीमद भगवद्गीता के बारे में कहा है- ‘‘मैंने बाइबिल पढ़ी, एंजिल पढ़ी और अन्य धर्मग्रंथ पढ़े। सब ग्रंथ अपने-अपने स्थान पर ठीक हैं किंतु हिन्दुओं का यह ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ ग्रंथ तो अद्भुत है। इसमें किसी मत-मजहब, पंथ या सम्प्रदाय की निंदा-स्तुति नहीं है वरन् इसमें तो मनुष्यमात्र के विकास की बातें हैं। गीता मात्र हिन्दुओं का ही धर्मग्रंथ नहीं है बल्कि मानवमात्र का धर्मग्रंथ है।’’
गीता के अनमोल ज्ञान से प्रभावित होकर अमेरिकन महात्मा थॉरो जीवन की भौतिकता से मुक्त होकर जंगल में कुटिया बनाकर एकांतवास में रहते थे।
वह भगवद गीता के बारे में कहते हैं- "प्राचीन युग की सर्व रमणीय वस्तुओं में गीता से श्रेष्ठ कोई वस्तु नहीं है। गीता में ऐसा उत्तम और सर्वव्यापी ज्ञान है कि उसके रचयिता देवता को असंख्य वर्ष हो गये फिर भी ऐसा दूसरा एक भी ग्रन्थ नहीं लिखा गया है।"
थॉरो के शिष्य, अमेरिका के सुप्रसिद्ध साहित्यकार एमर्सन का भी भगवद गीता के प्रति अदभुत आदर था। 'सर्वभुतेषु चात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि' यह श्लोक पढ़ते समय वह नाच उठता था।
"बाईबल का मैंने यथार्थ अभ्यास किया है। उसमें जो दिव्यज्ञान लिखा है वह केवल गीता के उद्धरण के रूप में है। मैं ईसाई होते हुए भी गीता के प्रति इतना सारा आदरभाव इसलिए रखता हूँ कि जिन गूढ़ प्रश्नों का समाधान पाश्चात्य लोग अभी तक नहीं खोज पाये हैं, उनका समाधान गीता ग्रंथ ने शुद्ध और सरल रीति से दिया है। उसमें कई सूत्र अलौकिक उपदेशों से भरूपूर लगे इसीलिए गीता जी मेरे लिए साक्षात् योगेश्वरी माता बन रही हैं। वह तो विश्व के तमाम धन से भी नहीं खरीदा जा सके ऐसा भारतवर्ष का अमूल्य खजाना है।" – एफ.एच.मोलेम (इंग्लैन्ड)
"श्रीमद्भगवद्गीता भारत के विभिन्न मतों को मिलाने वाली रज्जु तथा राष्ट्रीय-जीवन की अमूल्य संपत्ति है। भारतवर्ष का राष्ट्रीय धर्मग्रंथ बनने के लिए जिन-जिन विशेष गुणों की आवश्यकता है, वे सब श्रीमद्भगवद्गीता में मिलते हैं। इसमें केवल उपयुक्त बातें ही नहीं हैं अपितु यह भावी विश्वधर्म का सर्वोपरि धर्मग्रंथ है। भारतवर्ष के प्रकाशपूर्ण अतीत का यह महादान मनुष्य-जाति के और भी उज्जवल भविष्य का निर्माता है।" – मि. एफ.टी. बू्रक्स
"किसी भी जाति को उन्नति के शिखर पर चढ़ाने के लिए गीता का उपदेश अद्वितीय है।" – वॉरेन हेस्टिंग्स
"भगवद्गीता में दर्शनशास्त्र और धर्म की धाराएँ साथ-साथ प्रवाहित होकर एक-दूसरे के साथ मिल जाती हैं। भगवद्गीता और भारत के प्रति हम लोग (जर्मन लोग) आकर्षित होते रहते हैं।" – डॉ. एल्जे. ल्युडर्स (जर्मनी)
"भारतवर्ष के धार्मिक-साहित्य का कोई अन्य ग्रंथ भगवद्गीता के समान स्थान प्राप्त करने योग्य नहीं प्रतीत होता।" – डॉ. रिचार्ड गार्वे
"सत् क्या है इसका विवेचन भगवद्गीता में बहुत अच्छी तरह से किया गया है। विश्व में यह ग्रंथ-रत्न अप्रतिम है, अद्भुत है।" – लॉर्ड रोनाल्डशे
भगवत गीता के बारे में ख्वाजा दिल मुहम्मद ने लिखा है-‘‘रूहानी गुलों से बना यह गुलदस्ता हजारों वर्ष बीत जाने पर भी दिन दूना और रात चौगुना महकता जा रहा है। यह गुलदस्ता जिसके हाथ में भी गया, उसका जीवन महक उठा। ऐसे गीतारूपी गुलदस्ते को मेरा प्रणाम है। सात सौ श्लोकरूपी फूलों से सुवासित यह गुलदस्ता करोड़ों लोगों के हाथ गया, फिर भी मुरझाया नहीं।’’
इसके अतिरिक्त भारत के महापुरुषों के गीता के बारे में कुछ विचार और कथन निमन्वत हैं।
गेयं गीतानामसहस्रं ध्येयं श्रीपतिरूपमजस्रम्।
नेयं सज्जनसंगे चित्तं देयं
दीनजनाय च वित्तम॥
गाने योग्य तो श्री गीता का और श्री विष्णुसहस्रनाम का गान है। धरने योग्य तो श्री विष्णु भगवान का ध्यान है। चित्त तो सज्जनों के संग पिरोने योग्य है और वित्त तो दीन-दुखियों को देने योग्य है। -श्रीमद् आद्य शंकराचार्य
"गीता में वेदों के तीनों काण्ड स्पष्ट किये गये हैं अतः वह मूर्तिमान वेदरूप हैं और उदारता में तो वह वेद से भी अधिक है। अगर कोई दूसरों को गीताग्रंथ देता है तो जानो कि उसने लोगों के लिए मोक्षसुख का सदाव्रत खोला है। गीतारूपी माता से मनुष्यरूपी बच्चे वियुक्त होकर भटक रहे हैं । अतः उनका मिलन कराना यह तो सर्व सज्जनों का मुख्य धर्म है।" -संत ज्ञानेश्वर
'श्रीमद् भगवदगीता' उपनिषद रूपी बगीचों में से चुने हुए आध्यात्मिक सत्यरूपी पुष्पों से गुँथा हुआ पुष्पगुच्छ है। -स्वामी विवेकानन्द
महामना मदन मोहन मालवीय जी श्रीमद भगवद गीता के बारे में कहते हैं, कि "इस अदभुत ग्रन्थ के 18 छोटे अध्यायों में इतना सारा सत्य, इतना सारा ज्ञान और इतने सारे उच्च, गम्भीर और सात्त्विक विचार भरे हुए हैं कि वे मनुष्य को निम्न-से-निम्न दशा में से उठा कर देवता के स्थान पर बिठाने की शक्ति रखते हैं। वे पुरुष तथा स्त्रियाँ बहुत भाग्यशाली हैं जिनको इस संसार के अन्धकार से भरे हुए सँकरे मार्गों में प्रकाश देने वाला यह छोटा-सा लेकिन अखूट तेल से भरा हुआ धर्मप्रदीप प्राप्त हुआ है।"
"एक बार मैंने अपना अंतिम समय नजदीक आया हुआ महसूस किया तब गीता मेरे लिए अत्यन्त आश्वासनरूप बनी थी। मैं जब-जब बहुत भारी मुसीबतों से घिर जाता हूँ तब-तब मैं गीता माता के पास दौड़कर पहुँच जाता हूँ और गीता माता में से मुझे समाधान न मिला हो ऐसा कभी नहीं हुआ है।" -राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी
"जीवन के सर्वांगीण विकास के लिए गीता ग्रंथ अदभुत है। विश्व की 578 भाषाओं में गीता का अनुवाद हो चुका है। हर भाषा में कई चिन्तकों, विद्वानों और भक्तों ने मीमांसाएँ की हैं और अभी भी हो रही हैं, होती रहेंगी। क्योंकि इस ग्रन्थ में सब देशों, जातियों, पंथों के तमाम मनुष्यों के कल्याण की अलौकिक सामग्री भरी हुई है। अतः हम सबको गीताज्ञान में अवगाहन करना चाहिए। भोग, मोक्ष, निर्लेपता, निर्भयता आदि तमाम दिव्य गुणों का विकास करने वाला यह गीता ग्रन्थ विश्व में अद्वितिय है।" -पूज्यपाद स्वामी श्री लीलाशाहजी महाराज